न्यूनतम वेतन अब 24000, नहीं दिया तो नियोक्ता की खैर नहीं
नई दिल्ली। सरकार ने कहा है कि कर्मचारियों को उनके काम के बदले न्यूनतम वेतन देना आवश्यक है और जिन कंपनियों के खिलाफ इस संबंध में शिकायतें आएंगी, उनकी जांच कराई जाएगी और मानकों का पालन नहीं करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में बुधवार को एक पूरक प्रश्न के जवाब में कहा कि मोदी सरकार ने 2017 में न्यूनतम वेतन में संशोधन कर इसे 40 प्रतिशत बढ़ाया है। इसके लिए कानून बनाया गया है और जो भी लोग इस कानून का अनुपालन नहीं कर रहे हैं उनकी शिकायत आने पर मामले की जांच कराई जाएगी और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के हितों के लिए उनकी सरकार प्रतिबद्ध है। इसी प्रतिबद्धता का पालन करते हुए पिछले वर्ष सरकार ने पीएफ में सरकार की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत कर दी है। प्रसवकालीन अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है।
सरकार ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना आरंभ की है, जिसे एक अप्रैल 2016 से सरल बनाया गया है। न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपए से बढ़ाकर 24 हजार रुपए किया गया है। श्रमिकों की सुविधा के लिए एक पोर्टल भी है, जिसमें शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं।
अनुबंध आधारित नियुक्तियों में आरक्षण देने संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि जिन संस्थानों में 45 दिन से ज्यादा समय के लिए नियुक्ति की जाती है, वहां इस तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन जहां ठेकेदार नियुक्तियां दे रहे हैं, वहां आरक्षण लागू करना संभव नहीं है। ठेकेदार अपने हिसाब से लोगों को नियुक्त करते हैं।
उल्लेखनीय है कि श्रमिकों के लिए कार्यस्थल पर अच्छा माहौल, मजदूरी तथा बोनस जैसी कई सुविधाओं को ज्यादा बेहतर बनाने के प्रावधान वाले ‘मजदूरी संहिता 2019’ तथा ‘कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2019’ विधेयक विपक्ष के कड़े विरोध के बीच मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। (वार्ता)