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तकनीक ने बदलकर रख दी समाज की तस्वीर

1 जुलाई को डिजिटल इंडिया डे पर विशेष

तकनीक ने बदलकर रख दी समाज की तस्वीर - Technology changed the picture of the society
'हथेली पर सरसों जमाना' मुहावरे का प्रयोग असंभव कार्य के लिए किया जाता है, लेकिन तकनीक ने इससे कई गुना आगे जाकर असंभव लगने वाली बहुत-सी सुविधाएं और जानका‍रियां 'हथेली' पर ही उपलब्ध करवा दी हैं। आज सरकारी विभाग हों, औद्योगिक क्षेत्र हों या फिर समाज, तकनीक ने हर क्षेत्र में न सिर्फ अपनी पैठ बनाई बल्कि राह भी आसान बना दी है। कई क्षे‍त्र तो ऐसे हैं, जहां तकनीक के प्रवेश के बाद क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं।


बायोमैट्रिक की मदद से वित्तीय लेनदेन आसान हो गया और सरकारी सुविधाओं का फायदा समय पर लोगों को मिलने लगा। जिन जानकारियों के लिए आम आदमी सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाकर परेशान हो जाता था, उन्हें आज वह अपने 'पॉकेट' में लेकर घूमता है। यूनिक आईडी 'आधार' के बाद तो अब 'वन नेशन वन राशन कार्ड' की बात कही जा रही है।

बैंकिंग क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन : तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से सबसे ज्यादा बदलाव बैंकिंग क्षेत्र में देखने को मिला। जहां कुछ सालों पहले लोगों की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलती थीं और एक छोटे से लेनदेन के लिए व्यक्ति का आधा दिन खराब हो जाता था, अब वही व्यक्ति कुछ ही सेकंड्‍स में अपने स्मार्ट फोन से देशभर में कहीं भी ट्रांजेक्शन कर सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के विजन दस्तावेज 2016-18 के मुताबिक, दिसंबर 2018 के 2069 करोड़ डिजिटल लेनदेन के 2021 तक 8707 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसमें भीम-यूपीआई, पेटीएम जैसे डिजीटल ऐप ने अहम भूमिका निभाई है। बैंकों ने भी अपने ऐप लांच कर दिए हैं, जिससे लोगों की मुश्किलें और आसान हुई हैं।

सरकार ने भी तकनीक का शानदार ढंग से इस्तेमाल कर कई कार्यक्रमों को डिजाइन कर उन्हें लागू किया। आधार कार्ड से पेनकार्ड, वोटर आईडी, समग्र आईडी, बैंक खातों को जोड़कर सरकार ने समाज में नई क्रांति ला दी। शुरुआत गरीबों के जनधन खातों से हुई। दिसबंर 2018 तक देश में 32 करोड़ से ज्यादा जनधन खाते खोले जा चुके थे। जनधन योजना के तहत खोले गए बैंक खातों में कुल जमा राशि एक लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच गई।

डिजिटल इंडिया अभियान से देश में पारदर्शिता को बढ़ावा मिला। आंकड़ों की जादूगरी नहीं, जनता को वास्तविक काम दिखाई दिया। स्मार्ट सिटी योजना से लेकर स्वच्छ भारत अभियान तक सभी बड़े अभियानों को मूर्तरूप देने में डिजिटलाइजेशन का बड़ा योगदान रहा। सस्ते इंटरनेट से देशभर में ऐसी क्रांति आई कि हर व्यक्ति जागरूक हो गया। चाहे गांव हो या शहर सरकारी योजनाओं की जानकारियां हर व्यक्ति के मोबाइल तक सफलतापूर्वक पहुंची। सोशल मीडिया के बेहतर उपयोग से शहरों में स्वच्छता को लेकर जो होड़ देखी गई उसे देख दुनियाभर के लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं।

रोजगार के द्वार खुले : डिजिटल तकनीक के बाद सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बहुत ज्यादा बढ़े। 1994 में इंदौर में स्थापित डायस्पार्क कंपनी ने मात्र 27 कर्मचारियों की टीम के साथ सॉफ्टवेयर बनाने के क्षेत्र में कदम रखा था, आज इस कंपनी में 1000 से ज्यादा लोग अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डायस्पार्क सेंट्रल इंडिया की सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है।

आईटी सेक्टर की ग्रोथ के लिए सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (STPI) की भूमिका की भी सराहना की जानी चाहिए, जो कि आईटी सेक्टर को ऊंचाई पर ले जाने के लिए अहम रोल निभा रही है। STPI की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि उसने मध्य प्रदेश में क्षेत्रीय कार्यालय के साथ ही इंदौर जैसे शहर में भी अपना नोडल ऑफिस बना दिया है। भारत यदि आज सॉफ्टवेयर क्षेत्र में 'सुपरपॉवर' है तो उसमें STPI की बड़ी भूमिका है।

सामाजिक बदलाव : मोबाइल ने समाज के हर वर्ग तक तकनीक को पहुंचाया है, साथ ही उसके इस्तेमाल को भी आसान बनाया है। अमीर-गरीब, महिला-पुरुष, शिक्षित-अनपढ़ कोई भी उससे अछूता नहीं है। टेक्नोलॉजी कार्यालयों से निकलकर किचन तक पहुंच गई है। खाना बनाने की रेसिपी हो या फिर फूड चेन कंपनी से कोई खाने की वस्तु मंगाना हो, सब कुछ बहुत आसान हो गया है। तकनीक का ही कमाल है कि एक करोड़ से ज्यादा लोग स्वैच्छिक रूप से रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ चुके हैं। जरूरतमंदों को सब्सिडी सीधे उनके बैंक खातों में पहुंच रही है। बिचौलियों से काफी हद तक मुक्ति मिली है।

समाज के परंपरागत धार्मिक पूजा-पाठ में तकनीक का बेहतर इस्तेमाल हो रहा है। अब हनुमान चालीसा या करवाचौथ की कहानी पढ़ने के लिए लोग घर में पुस्तकें नहीं रखते, 'वेबदुनिया' पर जाकर आसानी से ये सभी सामग्री पढ़ सकते हैं। 'वेबदुनिया' ने करवाचौथ के मौके पर प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि महिलाएं बड़ी संख्‍या में कहानी और पूजन विधि ढूंढती हैं। इसी तरह मंगलवार को हनुमान चालीसा भी खूब ढूंढा जाता है।

...और मुश्किलें भी कम नहीं : हालांकि ओशो ने राजनीतिक संदर्भ में कहा था कि बड़े लोगों की गलतियां भी बड़ी होती हैं, लेकिन इस वाक्य को हम तकनीक के संदर्भ में भी देख सकते हैं। बड़ी सुविधाएं बड़ी मुसीबतें भी लेकर आती हैं। यदि व्यक्ति सतर्कता न बरते तो उसके बैंक खातों को एक पल में साफ किया जा सकता है। समाज विरोधी तत्व ई-मेल को हैक कर उसका दुरुपयोग कर सकते हैं। साइबर बुलिंग, हैकिंग और फिशिंग जैसे शब्द इन्हीं संदर्भों में उपयोग किए जाते हैं।

छोटे कस्बों में तो आज भी देखने में आता है कि बैंक एटीएम में बुजुर्ग और ‍अशिक्षित लोग अपने पास खड़े व्यक्ति से पैसा निकालने के लिए पासवर्ड तक शेयर कर लेते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमें इन सुविधाओं को नहीं अपनाना चाहिए। सतर्कता बहुत जरूरी है। हमें उस वाक्य को बिलकुल भी नहीं भूलना चाहिए कि 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी'।
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