1993 सीरियल बम ब्लास्ट केस में अब्दुल करीम टुंडा बरी, अजमेर की टाडा कोर्ट का फैसला
हमीदुद्दीन और इरफान को आजीवन कारावास की सजा
Abdul Karim Tunda : अजमेर की टाडा कोर्ट ने गुरुवार को 1993 सीरियल बम ब्लास्ट केस में अब्दुल करीम टुंडा बरी कर दिया। अदालत ने इस मामले में हमीदुद्दीन और इरफान को दोषी करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। टुंडा फिलहाल अजमेर की जेल में बंद है।
उल्लेखनीय है कि अयोध्य में बाबरी विध्वंस के बाद 1993 में कोटा, लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। टुंडा इन्ही मामले में आरोपी थे। उसे को लश्कर का बम एक्सपर्ट माना जाता है।
लश्कर-ए-तैयबा के आंतकवादी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को 1996 में सोनीपत में हुए सिलसिलेवार 2 बम धमाकों के मामले में अक्टूबर 2017 में जिला एवं सत्र न्यायालय ने उम्रकैद और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
टुंडा का बेटा भी आतंकी : खूंखार आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा की 3 बीवियां और 7 बच्चे हैं। उसकी सभी बीवियां पाकिस्तान में रहती हैं। टुंडा की दूसरी बीवी मुमताज से उसका तीसरा पुत्र अब्दुल वारिस भारत में एक आतंकवादी घटना में शामिल था। जम्मू कश्मीर पुलिस ने उसे एक बार गिरफ्तार किया था। वारिस भी लश्करे तैयबा का एक सक्रिय सदस्य था। उसने एक भारतीय जेल में 8 वर्ष की सजा काटी और उसके बाद पाकिस्तान लौटा।
कैसे पड़ा टुंडा नाम : 40 वर्ष की आयु में जेहादी तत्वों के साथ शामिल होने से पहले टुंडा देश में कई स्थानों पर रहा और कई काम किये। उसने दिल्ली स्थित एक बैंक की शाखा में सुरक्षा गार्ड के रूप में भी काम किया। उसने कपड़े व्यापारी के रूप में अहमदाबाद में काम करने के साथ ही आगरा, इटारसी और खंडवा में विभिन्न काम किए।
वर्ष 1985 में वह राजस्थान के टोंक शहर गया, जहां उसने एक मस्जिद में काम शुरू किया। टोंक में एक पाइप बम बनाने के दौरान उसका हाथ कट गया, जिसके बाद उसके नाम टुंडा पड़ा।