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सुप्रीम कोर्ट ने मांगी आरजी कर अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं की जांच पर रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी आरजी कर अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं की जांच पर रिपोर्ट - Supreme Court seeks report on investigation of financial irregularities in RG Kar Hospital
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच पर एक वस्तु स्थिति रिपोर्ट सौंपने का मंगलवार को निर्देश दिया, जहां पिछले महीने एक प्रशिक्षु चिकित्सक से कथित दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी।
 
शीर्ष न्यायालय ने दुष्कर्म तथा हत्या की घटना के संबंध में सीबीआई द्वारा दाखिल वस्तु स्थिति रिपोर्ट पर भी गौर किया और कहा कि स्थिति का खुलासा करने से आगे की जांच खतरे में पड़ जाएगी। घटना से संबंधित स्वत: सज्ञान मामले में सुनवाई के सीधे प्रसारण पर रोक लगाने से इनकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह जनहित का मामला है और जनता को पता होना चाहिए कि अदालत कक्ष में क्या हो रहा है।

 
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्रीय जांच एजेंसी को अस्पताल के चिकित्सा विभागों में कथित वित्तीय अनियमितताओं पर अभी तक की जांच पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
 
न्यायालय ने बाद में मामले की सुनवाई स्थगित कर दी और इस पर एक सप्ताह बाद सुनवाई की तारीख तय की। उसने दुष्कर्म एवं हत्या मामले में सीबीआई की रिपोर्ट पर गौर किया और कहा कि एजेंसी की जांच के बारे में खुलासा करना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे आगे की जांच पर असर पड़ेगा। पीठ ने कहा कि मृतका के पिता ने कुछ सुरागों को लेकर कुछ सुझाव दिए हैं जिनकी जांच की जानी चाहिए। हम उन्हें सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं, हम कहेंगे कि ये महत्वपूर्ण सूचनाएं हैं और सीबीआई को इन पर विचार करना चाहिए।
 
सुनवाई शुरू होने पर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई के सीधे प्रसारण पर रोक लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि चैम्बर की महिला वकीलों को तेजाब हमले और दुष्कर्म की धमकियां मिल रही हैं।
 
सिब्बल ने कहा कि जो कुछ हो रहा है, उसकी मुझे बहुत फिक्र है। क्या होता है कि जब आप इस तरह के मामले का सीधा प्रसारण करते हैं तो इनका बहुत ज्यादा भावनात्मक असर होता है। हम आरोपियों की पैरवी नहीं कर रहे हैं। हम राज्य सरकार की ओर से पेश हुए हैं और जैसे ही अदालत कोई टिप्पणी करती है तो हमारी साख रातोंरात बर्बाद हो जाती है। हमारी 50 वर्षों की साख है।

 
न्यायालय ने सिब्बल को आश्वस्त किया कि अगर वकीलों और अन्य लोगों को कोई खतरा होगा तो वह कदम उठाएगा। पीठ ने कहा कि हम सुनवाई के सीधे प्रसारण पर रोक नहीं लगाएंगे। यह जनहित में है। सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार के रात्रियर साथी कार्यक्रम पर आपत्ति जताई जिसमें महिला चिकित्सकों की रात की ड्यूटी लगाने से बचने और महिला चिकित्सकों के कामकाजी घंटे एक वक्त में 12 घंटे से ज्यादा न होने का प्रावधान है।
 
पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार को अधिसूचना में सुधार करना चाहिए। आपका कर्तव्य सुरक्षा प्रदान करना है, आप यह नहीं कह सकते कि महिलाएं (चिकित्सक) रात में काम नहीं कर सकतीं। पायलट, सेना आदि सभी में कर्मी रात में काम करते हैं। इससे उनके (चिकित्सकों के) करियर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। सभी चिकित्सकों के लिए ड्यूटी के घंटे उचित होने चाहिए।

 
उच्चतम न्यायालय की आपत्ति के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने पीठ से कहा कि वह महिला चिकित्सकों के लिए अधिसूचना वापस लेगी। पीठ ने अस्पतालों में चिकित्सकों और अन्य कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठेके पर कर्मचारियों की भर्ती करने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले पर भी सवाल उठाया।
 
पीठ ने कहा कि हम ऐसी स्थिति में हैं जहां चिकित्सकों के लिए सुरक्षा का अभाव है। राज्य सरकार को कम से कम सरकारी अस्पतालों में पुलिस को तैनात करना चाहिए। हमारे सामने युवा प्रशिक्षु और छात्राओं का मसला है जो काम के लिए कोलकाता आ रही हैं।
 
पश्चिम बंगाल सरकार ने पीठ को यह भी आश्वासन दिया कि प्रदर्शनरत चिकित्सकों के खिलाफ कोई दंडात्मक या प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जाएगी। इससे पहले जूनियर चिकित्सकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत से यह दर्ज करने का अनुरोध किया था कि चिकित्सकों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए। जयसिंह ने यह भी कहा कि जूनियर चिकित्सक उन लोगों को जानते हैं जो अपराध स्थल पर मौजूद थे और यह सूचना सीलबंद लिफाफे में सीबीआई के साथ साझा की जाए।
 
इस बीच, सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय में कहा कि विकिपीडिया अब भी मृतका का नाम और तस्वीर दिखा रहा है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने विकिपीडिया को मृतका का नाम हटाने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि मृतका की गरिमा और निजता बनाए रखने के लिए, शासकीय सिद्धांत यह है कि बलात्कार और हत्या के मामले में मृतका की पहचान का खुलासा नहीं किया जाता है। विकिपीडिया पहले दिए आदेश के अनुपालन के लिए कदम उठाए।
 
न्यायालय ने यह भी कहा कि कोई यह नहीं कह सकता है कि सीबीआई ने अपराध, घटनास्थल या 27 मिनट की सीसीटीवी फुटेज से संबंधित कुछ भी नष्ट कर दिया है। पश्चिम बंगाल पुलिस ने अदालत को बताया कि सीसीटीवी फुटेज समेत अपराध से संबंधित कोई भी सामग्री उसके पास नहीं है तथा सब कुछ सीबीआई को सौंप दिया गया है।
 
महिला चिकित्सक का शव 9 अगस्त को अस्पताल के सेमिनार हॉल में मिला था। शव पर गंभीर चोटों के निशान थे। कोलकाता पुलिस ने अगले दिन इस मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार किया था। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 13 अगस्त को जांच कोलकाता पुलिस से सीबीआई को सौंपे जाने का निर्देश दिया था। सीबीआई ने अगले दिन यानी 14 अगस्त को जांच संभाल ली थी।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta