शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Supreme Court's argument regarding Wikipedia
Written By
Last Updated : बुधवार, 18 जनवरी 2023 (15:52 IST)

सुप्रीम कोर्ट ने दी दलील, विकिपीडिया जैसे ऑनलाइन स्रोतों पर पूरी तरह निर्भर नहीं हुआ जा सकता

supreme court
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि विकिपीडिया जैसे ऑनलाइन स्रोत 'क्राउड सोर्स' (विभिन्न लोगों से प्राप्त जानकारी) और उपभोक्ताओं द्वारा तैयार संपादन मॉडल पर आधारित हैं, जो पूरी तरह भरोसेमंद नहीं हैं और भ्रामक सूचनाएं फैला सकते हैं। पीठ ने मंगलवार को कहा कि हमारे यह बात कहने का कारण यह है कि ज्ञान का भंडार होने के बावजूद ये स्रोत पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं हैं।
 
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वह उन मंचों की उपयोगिता को स्वीकार करती है, जो दुनियाभर में ज्ञान तक मुफ्त पहुंच प्रदान करते हैं, लेकिन उसने कानूनी विवाद के समाधान में ऐसे स्रोतों के उपयोग को लेकर सतर्क किया।
 
पीठ ने मंगलवार को कहा कि हमारे यह बात कहने का कारण यह है कि ज्ञान का भंडार होने के बावजूद ये स्रोत 'क्राउड सोर्स' और उपभोक्ताओं द्वारा तैयार संपादन मॉडल पर आधारित हैं, जो अकादमिक पुष्टि के मामले में पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं हैं और भ्रामक जानकारी फैला सकते हैं, जैसा कि इस अदालत ने पहले भी कई बार देखा है।
 
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों और न्यायिक अधिकारियों को वकीलों को अधिक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक स्रोतों पर भरोसा करने के लिए बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए। पीठ ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम 1985 की प्रथम अनुसूची के तहत आयातित 'ऑल इन वन इंटीग्रेटेड डेस्कटॉप कम्प्यूटर' के उचित वर्गीकरण संबंधी एक मामले को लेकर फैसले में ये टिप्पणियां कीं।
 
शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्णायक अधिकारियों, विशेष रूप से सीमा शुल्क आयुक्त (अपील) ने अपने निष्कर्षों को सही ठहराने के लिए विकिपीडिया जैसे ऑनलाइन स्रोतों का व्यापक रूप से उल्लेख किया। दिलचस्प बात यह है कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने 2010 में फैसला सुनाते हुए 'सामान्य कानून विवाह' शब्द की परिभाषा के लिए विकिपीडिया का हवाला दिया था।
 
न्यायमूर्ति काटजू ने 4 सूत्री दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी को आधार बनाया था और फैसला दिया था कि लिव-इन संबंधों को घरेलू हिंसा रोकथाम अधिनियम, 2005 के तहत विवाह की प्रकृति वाले 'रिश्ते' के रूप में वर्गीकरण के लिए इसे संतुष्ट करना होगा।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
ये भी पढ़ें
अपनी स्टडी को प्रोडक्टिव कैसे बनाएं?