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Last Modified: मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023 (13:12 IST)

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं दी समलैंगिक शादियों को मान्यता?

supreme court
Same Sex marriage : सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय खंडपीठ ने समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। 3-2 से अपने फैसले में पीठ ने कहा कि शादी मौलिक अधिकार नहीं है।
 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिकों की शादी का फैसला विधायिका का क्षेत्र। शीर्ष अदालत ने कहा कि शादी मौलिक अधिकार नहीं है।
 
न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को बिना किसी बाधा एवं परेशानी के एक साथ रहने का अधिकार है। न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट के लिखे फैसले से सहमति जताई।
 
यमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट ने कहा कि वह प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ के कुछ विचारों से सहमत और कुछ से असहमत हैं।
न्यायमूर्ति भट्ट ने प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति कौल की इस बात से सहमति जताई कि संविधान में विवाह के किसी मौलिक अधिकार की गारंटी नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि कानून के अभाव में विवाह का कोई योग्य अधिकार नहीं है।
 
न्यायमूर्ति भट्ट ने गोद लेने के समलैंगिक जोड़ों के अधिकार पर प्रधान न्यायाधीश से असहमति जताई और कहा कि उन्होंने कुछ चिंताएं व्यक्त की हैं। समलैंगिक व्यक्तियों को अपना साथी चुनने का अधिकार है, देश के लिए ऐसे संबंधों से जुड़े अधिकारों को मान्यता देना बाध्यकारी नहीं हो सकता।
 
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देना वैवाहिक समानता की दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक और विपरीत लिंग के संबंधों को एक ही सिक्के के दो पहलुओं के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने समलैंगिक जोड़ों को कुछ अधिकार दिए जाने को लेकर प्रधान न्यायाधीश से सहमति जताई।
 
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह मामले पर कहा कि इस प्रकार के संबंध को मान्यता नहीं देना भेदभाव है। अदालत ने माना है कि समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव न किया जाना समानता की मांग है।
 
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कल्पना करना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा, किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है। समलैंगिकता केवल शहरी अवधारणा नहीं है या समाज के उच्च वर्ग तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत होगा कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। 
 
विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, इसका निर्णय संसद को करना है। जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है।
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