किसी बेजुबान जानवर को फांसी लगाकर मार डालने का दृश्य तो शायद आपने कभी किसी समाज, में न देखा होगा और न ही सुना होगा, लेकिन कुछ पलों के लिए ऐसा महसूस कर के देखिए। फर्ज कीजिए कि दो साल का एक बेजुबान बाघ है, और उसे बाइक के क्लच वायर से फांसी लगाकर ऊपर लटका दिया गया है। जाहिर है उसकी सांसें उसी वक्त उखड़ गई होगी, लेकिन उसका शव तीन से चार दिनों तक यूं ही फांसी पर लटका रहता है, शव से बदबू आती है तो वन विभाग की नाक में परेशानी महसूस होती है, अचानक वन विभाग का अमला जागता है और फिर निकलता है बाघ की इस निर्मम हत्या की तफ्तीश के लिए।
लेकिन अब हो ही क्या सकता है, बाघ की जान तो जा चुकी है। कुछ दिन बाद मनुष्यों की तमाम हत्याओं की तरह इस हत्या को भी भुला दिया जाएगा, बल्कि इसलिए जल्दी भुला दिया जाएगा, क्योंकि यह तो महज एक जानवर था, कोई इंसान तो था नहीं कि हम उसके लिए रोते रहेंगे।
यह घटना है टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के पन्ना की। जहां जंगलों में विचरण करने वाला एक बाघ था, वन विभाग ने ध्यान नहीं दिया और शिकारियों ने उसे मौत के घाट उतार दिया। ऐसी लापरवाहियां वन विभाग या देश के किसी भी सरकारी विभाग के लिए कोई नई बात नहीं है। यह होता रहता है, खबरें छपती रहेंगी, शेर, चीता, बाघ, हिरण और तेंदुओं की हत्याओं का हो हल्ला होता रहेगा। भले ही सरकार इन वन्य जीवों को अपनी अमूल्य धरोहर मानती रहे, जंगलों की डाल-डाल और पात-पात पर पसरे शिकारी इन वन्य जीवों की हत्याएं करते रहेंगे। सरकारी अमले तफ्तीश करेंगे और ये निर्ममताएं भुलाई जाती रहेंगी।
मलबे में तब्दील हुई इंसानी मानसिकता
अब सवाल रह जाता है इंसानों की सोच का। विकृत होकर मलबे में तब्दील हो चुकी इंसानी मानसिकता का। आधुनिक दौर में तकनीकी से लेकर तमाम तरह की सुविधाएं जुटा चुका आदमी, विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी और अविष्कार में अपना परचम फहरा चुका आदमी कितना क्रूर हो सकता है। मान लिया कि आदमी क्रूर है, लेकिन क्या उसने अपनी क्रूरता की कोई सीमा तय कर रखी है। जमीन से लेकर आसमान तक की जगह पर अतिक्रमण करने वाले इंसान ने क्या अपने दिल में एक इंच जगह भी बचाकर नहीं रखी कि वो किसी भी वन्य जीव को कम से कम इतनी जघन्यता के साथ कत्ल न करे। वो भी तब, जबकि वो दो साल का बाघ अपने ही अरण्य में था, उसने आपके शहर में कोई दखलअंदाजी नहीं की थी।
न वो आपके शहर आया और न ही वो आपके घर में घुसा। फिर भी वो आपकी विकृति और निर्ममता का शिकार हो गया, जिसमें उसकी कोई गलती नहीं थी। वो सिर्फ एक वन्य जीव था, जो अपनी सीमा में रहना जानता था, लेकिन हम इंसान ने अपनी और अपनी क्रूरता की सारी हदें और निर्मताएं लांघकर उसकी जान ले ली।
एक ऐसा वन्य जीव जो न बोल सकता है और न ही अपनी अंतिम पीड़ा का जिक्र ही कर सका, उसे इतने बेरहमी से मार कर आखिर हमने कौनसी इंसानियत अर्जित कर ली।
बहरहाल, बाघ मारा गया, वायर से फांसी लगाकर पेड़ पर लटकाकर हत्या करने की यह वन्य जीवों के इतिहास की पहली घटना मानी जा रही है। लेकिन क्या साल 2022 के इस आखिरी महीने दिसंबर में हम उम्मीद करें कि फांसी पर लटकाकर दो साल के बाघ की निर्मम हत्या की ये आखिरी खबर होगी।
देश और मध्यप्रदेश में वन्य जीवों की हत्याओं का इतिहास
भारतीय बाघ अनुमान रिपार्ट 2018 के अनुसार देश में सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं। मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या 526 है। लेकिन कुछ समय से बाघों की मौत की खबरें लगातार बढ़ती जा रही है। मध्य प्रदेश में कान्हा, बांधवगढ़, सतपुड़ा, पेंच, और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व सहित कई बाघ अभयारण्य हैं।
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2010 में इंदौर रेंज के नयापुरा में एक घायल तेंदुआ मिला था, सिटी स्कैन में उसके सिर में बंदूक के करीब 42 छरे धंसे मिले थे।
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इंदौर रेंज में पिछले साल 4 महीने के भीतर 5 तेंदुओं की मौत हो चुकी हैं।
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पिछले दिनों देवास में 1 महीने में शिकार की 3 घटनाएं हो चुकी हैं, इनमें बाघ, हिरण और नील गाय का शिकार किया गया।
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नवंबर 2021 में उदयनगर क्षेत्र में तेंदुए का शिकार किया गया।
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2021 में एनटीसीए के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा 126 बाघों की मौत हो गई।
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2021 में ही मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 44 बाघों की मौत हुई।
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2021 में 26 बाघों की मौतें महाराष्ट्र में हुई
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2021 में ही कर्नाटक में 14 बाघों की मौतें हुई।
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2012 से 2021 के बीच देश में हर साल औसतन 98 बाघों की मौत हुई। देश में मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 526 बाघ हैं