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Last Modified: शनिवार, 17 जुलाई 2021 (18:27 IST)

Sharda Act 1929 : 'बालिका वधू' के खिलाफ इस तरह आया शारदा एक्ट, जानिए कौन हैं हरबिलास शारदा

Sharda Act 1929 : 'बालिका वधू' के खिलाफ इस तरह आया शारदा एक्ट, जानिए कौन हैं हरबिलास शारदा - Sharda Act 1929
-शुभम शर्मा
टीवी धारावाहिक 'बालिका वधू सीजन-2' जल्द ही शुरू होने वाला है। राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित इस सीरियल में बाल विवाह की कुरीति को दर्शाया गया है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि सरकारी अंकुश के बावजूद राजस्थान में आज के दौर में बाल विवाह की घटनाएं सामने आती हैं। बाल विवाह की इस बुराई के खिलाफ आवाज भी राजस्थान से ही उठी थी। अजमेर के हरबिलास शारदा नामक समाज सुधारक ने 1929 में बाल विवाह के खिलाफ कानून बनाने में अहम मदद की थी। इसीलिए इस कानून को शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि समय के साथ इस कानून में संशोधन भी हुए। 
 
इस तरह हुई कानून बनाने की शुरुआत : 1890 में 10 साल की फूलमणी की शादी अपनी उम्र से बड़े 32 साल के हरिमोहन से हुई। उम्र में अंतर के चलते फूलमणि को शादीशुदा जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हरिमोहन ने फूलमणि से बिना सहमति के शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए। कम उम्र होने के कारण फूलमणि की मृत्यु हो गई। चूंकि फूलमणि हरिमोहन की पत्नी थी और पत्नी से संबंध बनाना दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं था। उस समय शादी की उम्र भी किसी प्रकार से निश्चित नहीं थी। 
 
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने एक कानून बनाया जिसका नाम ’एज ऑफ कंसेंट एक्ट’ रखा गया और इसे 1891 में पारित किया गया। इस कानून के तहत लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र को 12 साल कर दिया गया। हालांकि इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। मासूम बच्चियों के साथ हो रही इस क्रूरता ने अजमेर में जन्मे हरबिलास शारदा को झकझोर दिया। उन्होंने देश को वो कानून दिया जो नाबालिग लड़कियों के लिए कारगार साबित हुआ। इसके जरिए बाल विवाह पर कानूनी तौर पर रोक लगाई जा सकती थी। स्वयं शारदा भी बाल विवाह का शिकार हुए थे। 
 
वर्ष 1927 में शारदा ने ब्रिटिश सरकार को बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाकर दिया। यह कानून था, बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम, 1929  (Child Marriage Restraint Act 1929) जो 29 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कॉउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ। इस कानून के तहत लड़कियों के विवाह की आयु बढ़ाकर 14 वर्ष कर दी गई, वहीं लड़कों की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई। बाद में इस कानून में संशोधन कर लड़कियों की विवाह की आयु 18 वर्ष एवं लड़कों के विवाह की आयु 21 वर्ष कर दी गई। इस कानून को ‘शारदा अधिनियम’ (Sharda Act) के नाम से जाना जाता है। 
 
यह कानून 1 अप्रैल 1930 को देश में लागू हुआ और यह केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि सभी धर्म के लिए था। हालांकि यह एक समाज सुधारक बिल था, लेकिन सभी धर्म अनुयायियों ने इसका समर्थन किया। साल 2006 में यूपीए सरकार ने शारदा एक्ट को बदल कर नया एक्ट पास किया। इसका नाम बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 रखा गया। इस कानून की नींव शारदा एक्ट से ही पड़ी है। 
कौन थे हरबिलास शारदा : हरबिलास शारदा एक शिक्षाविद, न्यायाधीश, राजनेता एवं समाज सुधारक थे। शारदा का जन्म 3 जून 1867 को अजमेर (राजस्थान) के एक सम्पन्न माहेश्वरी परिवार में हुआ था। उनके पिता हरिनारायण शारदा वेदांती थे और उन्होंने राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में बतौर लाइब्रेरियन काम किया। हरबिलास ने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में शिक्षक के रूप में काम शुरू किया था। 1892 में अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में कार्य किया। 1894 में वह अजमेर के नगर आयुक्त बने। 1923 में उन्हें अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनाया गया। वह दिसंबर 1923 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए। 1925 में उन्हें मुख्य न्यायालय जोधपुर का वरिष्ठ न्यायाधीश नियुक्ति किया गया।
 
उनका राजनीतिक सफर भी शानदार रहा, 1924 में शारदा को केंद्रीय विधान सभा का सदस्य चुना गया। हरबिलास शारदा बचपन से ही हिंदू समाज सुधार के कार्यों में अपना सहयोग करते थे एवं हिंदू सुधारक दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे और आर्य समाज के सदस्य थे।
 
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