पुरोला महापंचायत रोकने के लिए लगी धारा 144, याचिका की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार
देहरादून। उत्तराखंड में कथित लव जिहाद का विवाद खड़ा कर पुरोला में 15 जून को बुलाई गई महापंचायत को रोकने को लेकर एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को इसे हाईकोर्ट में दायर करने को कहा है।
गुरुवार 15 जून को बुलाई गई महापंचायत को लेकर ग्राम प्रधान संगठन के पीछे हटने के बाद बजरंग दल व विहिप ने महापंचायत करने का ऐलान किया है।उधर, दून में मुस्लिम संगठन ने 18 जून को महापंचायत बुलाई है। ओवैसी के ट्वीट व 52 पूर्व नौकरशाह के पत्र लिखने के बाद मामले ने गर्मी पकड़ ली है।
इस बीच, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने महापंचायत रोकने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कह दिया कि हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करें। तनाव को देखते हुए सीमान्त उत्तरकाशी जिले के पुरोला में धारा 144 लगा दी गई है। पुलिस-प्रशासन दून से लेकर उत्तरकाशी तक पीस कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाशकालीन खंडपीठ ने याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने याचिका दायर की थी।
एडवोकेट शाहरुख आलम ने कल (15 जून) को आयोजित होने वाली महापंचायत (कॉन्क्लेव) के रूप में तत्काल लिस्टिंग की मांग वाली याचिका का उल्लेख किया। उन्होंने खंडपीठ से कहा कि कुछ समूहों ने विशेष समुदाय को महापंचायत से पहले जगह छोड़ने का अल्टीमेटम दिया। उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले उत्तराखंड सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने के लिए परमादेश जारी किया था कि कोई भी नफरत फैलाने वाले भाषण नहीं दिए जाएं।
हालांकि खंडपीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट क्यों नहीं जा सकते। जस्टिस नाथ ने पूछा, कानून और व्यवस्था संभालना प्रशासन का काम है। आप हाईकोर्ट जाएं। आप यहां क्यों आए? जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा, आप हाईकोर्ट से संपर्क करने में अविश्वास क्यों व्यक्त करते हैं? यदि इस न्यायालय द्वारा परमादेश दिया गया है तो हाईकोर्ट आदेश पारित करेगा। आपको हाईकोर्ट में कुछ भरोसा होना चाहिए। आप प्रशासन पर भरोसा क्यों नहीं कर सकते?
आलम ने जवाब दिया कि उन्होंने हेट स्पीच के मामले में उत्तराखंड सरकार को पहले जारी किए गए परमादेश के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हालांकि बेंच ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले से ही कोई निर्देश दिया गया तो हाईकोर्ट भी उचित आदेश पारित कर सकता है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को कानून के तहत वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाने की स्वतंत्रता देते हुए याचिका खारिज कर दी। पुरोला में 26 मई को 14 वर्षीय लड़की के कथित अपहरण को लेकर एक मुस्लिम और एक हिंदू युवक की गिरफ्तारी के बाद में गहरे सांप्रदायिक तनाव को भड़काने की कोशिश जारी हैं।
राज्य के दूसरे क्षेत्रों में इस बहाने तनाव भड़काने की तैयारी हो रही है।कुछ संगठनों ने कथित तौर पर कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन कर और पुरोला में मुसलमानों की दुकानों और घरों पर हमला कर ऐसा करने का प्रयास किया। 15 जून को महापंचायत से पहले परिसर खाली करने या गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों के शटर पर देवभूमि रक्षा संगठन के नाम से नोटिस चिपकाए गए।
विश्व हिंदू परिषद ने टिहरी-गढ़वाल प्रशासन को पत्र लिखकर ये चेतावनी भी दी गई कि अगर मुस्लिम शिष्ट भाषा में विशेष समुदाय के रूप में संदर्भित उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों से नहीं जाते हैं तो संगठन साथ में हिंदू युवा वाहिनी और टिहरी-गढ़वाल ट्रेडर्स यूनियन के साथ 20 जून को हाईवे जाम कर विरोध जताएगी। इस कारण कई मुस्लिम परिवारों ने अपनी सुरक्षा के डर से उनके खिलाफ नफरत फैलाने वाले अभियान के बाद शहर छोड़ दिया।