वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि अंग्रेज हुकूमत ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के मकसद से एक सेवक वर्ग तैयार करने के लिए शिक्षा व्यवस्था बनाई थी। आजादी के बाद उसमें बहुत सा बदलाव बाकी रह गया, जिसमें नई शिक्षा नीति के जरिए बदलाव लाकर नई पीढ़ी को आने वाले कल के लिए तैयार करने की जमीन बनाई जा रही है।
प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भी मौजूद थे।
मोदी ने कहा, पहले पढ़ाई की ऐसी व्यवस्था बनाई गई थी जिसमें शिक्षा का मकसद केवल और केवल नौकरी पाना ही था। अंग्रेजों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, अपने लिए सेवक वर्ग तैयार करने के लिए, वह शिक्षा व्यवस्था दी थी।
प्रधानमंत्री ने कहा, आजादी के बाद इसमें थोड़े-बहुत बदलाव हुए थे लेकिन बहुत सारा बदलाव रह गया। अंग्रेजों की बनाई हुई व्यवस्था कभी भी भारत के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं थी और न हो सकती है। उन्होंने कहा हमारे देश में शिक्षा में अलग-अलग कलाओं की धारणा थी।
बनारस ज्ञान का केंद्र केवल इसलिए नहीं था कि यहां अच्छे गुरुकुल और शिक्षण संस्थान थे बल्कि इसलिए था क्योंकि यहां ज्ञान और शिक्षा बहुआयामी थी। शिक्षा में यही व्यवस्था हमारी शिक्षा व्यवस्था का प्रेरणास्रोत होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, हम केवल डिग्री धारक युवा तैयार न करें बल्कि देश को आगे बढ़ने के लिए जितने भी मानव संसाधनों की जरूरत है, वह शिक्षा व्यवस्था अपने देश को उपलब्ध कराएं। इस संकल्प का नेतृत्व हमारे शिक्षक और शिक्षण संस्थानों को करना है।
प्रधानमंत्री ने शिक्षा में आधुनिकता के साथ कदमताल की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, हमें यह पता होना चाहिए कि दुनिया आगे किस तरफ जा रही है, कैसे जा रही है और उसमें हमारा देश और हमारे युवा कहां हैं। आने वाले 15-20 सालों में भारत उन बच्चों के हाथों में होगा। उन्हें हम कैसे तैयार कर रहे हैं। यह हमारा बहुत बड़ा दायित्व है। इसी ट्रैक पर हमारे शिक्षण संस्थानों को भी खुद से पूछने की जरूरत है कि क्या हम भविष्य के लिए तैयार हैं?
मोदी ने कहा, आपको वर्तमान को तो संभालना ही है लेकिन आज जो काम कर रहे हैं उन्हें भविष्य के लिए ही सोचना होगा। उसी हिसाब से हमें अपने बच्चों को तैयार करना होगा। हमें यह देखना होगा कि अभी जिस उम्र में हमारे बच्चों के अंदर उत्सुकता है उसी उम्र में हमें उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, अभी तक स्कूल कॉलेज और किताबें यह तय करते आए थे कि बच्चों को किस दिशा में जाना है लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बाद अब युवाओं पर दायित्व और बढ़ गया है। इसके साथ ही हमारी भी जिम्मेदारी बढ़ गई है कि हम युवाओं के सपनों और उड़ानों को निरंतर उत्साहित करें उनके मन को समझें, उनकी आकांक्षाओं को समझें।
मोदी ने कहा, उन्हें समझे बिना कुछ भी थोपने वाला युग चला गया है। हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा। हमें वैसा ही शिक्षण, वैसी ही संस्थानों की व्यवस्थाएं, वैसे ही मानव संसाधन विकास का खाका बनाना होगा। यह बच्चों की प्रतिभा और उनकी पसंद के हिसाब से उन्हें कुशल बनाने पर निर्भर है। हमारे युवा कार्यकुशल हों, विश्वास से भरे और व्यावहारिक हों, शिक्षा नीति इसके लिए जमीन तैयार कर रही है।
उन्होंने कहा, इतनी विविधताओं से भरे देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का इस तरह स्वागत हो, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। आमतौर पर सरकार का रवैया होता है कि एक डॉक्यूमेंट बनता है और उसे कुछ व्यक्तियों के भरोसे छोड़ दिया जाता है उसके बाद कोई नया डॉक्यूमेंट आता है और बात वहीं समाप्त हो जाती है। हमने ऐसा नहीं होने दिया। हमने हर पल इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जिंदा रखा।
मोदी ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए देश के शिक्षा क्षेत्र के मूलभूत ढांचे में एक बड़े सुधार पर भी काम हुआ है। अब देश में बड़ी संख्या में नए कॉलेज, नए विश्वविद्यालय खुल रहे हैं और नए आईआईटी तथा आईआईएम संस्थानों की स्थापना हो रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति अब मातृभाषा में पढ़ाई के रास्ते खोल रही है। इसी क्रम में संस्कृत जैसी प्राचीन भारतीय भाषाओं को भी आगे बढ़ाया जा रहा है।
मोदी ने कहा, आज हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम हैं। स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में जहां पहले केवल सरकार ही सेक्टर थी, वहां अब निजी पक्षों के जरिए एक नई दुनिया तैयार हो रही है। देश की बेटियों के लिए महिलाओं के लिए जो क्षेत्र पहले बंद हुआ करते थे आज वह सेक्टर बेटियों की प्रतिभाओं के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। जब देश की रफ्तार ऐसी हो तो हमें अपने युवाओं को भी खुली उड़ान के लिए नई ऊर्जा से भरना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अखिल भारतीय शिक्षा समागम का यह कार्यक्रम इस पवित्र धरती पर हो रहा है, जहां आजादी से पहले देश के इतने महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। यह समागम आज एक ऐसे समय हो रहा है जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा और शोध का, विद्या और बोध का इतना बड़ा मंथन जब सर्व विद्या के प्रमुख केंद्र काशी में होगा तो इससे निकलने वाला अमृत अवश्य देश को नई दिशा देगा। इस तीन दिवसीय शिक्षा समागम में 300 से अधिक कुलपति, उच्च शैक्षणिक संस्थानों के निदेशक एवं शिक्षाविद शामिल हुए। सम्मेलन का उद्देश्य पिछले दो वर्षों में कई पहलों के सफल कार्यान्वयन के बाद देशभर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने की नीतियों पर व्यापक विचार-विमर्श करना है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक सात से नौ जुलाई तक चलने वाले तीन दिनों के इस समागम के कई सत्रों में बहु-विषयक और समग्र शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार, भारतीय ज्ञान प्रणाली, शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण, डिजिटल सशक्तिकरण तथा ऑनलाइन शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता, गुणवत्ता, रैंकिंग और प्रत्यायन, समान और समावेशी शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों की क्षमता निर्माण जैसे विषयों पर चर्चा होगी।
इस शिखर सम्मेलन से विचारोत्तेजक चर्चाओं के लिए एक ऐसा मंच मिलने की उम्मीद है जो कार्ययोजना और कार्यान्वयन रणनीतियों को स्पष्ट करने के अलावा ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा और अंतःविषय विचार-विमर्श के माध्यम से एक नेटवर्क का निर्माण करने के साथ-साथ शैक्षिक संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेगा और उचित समाधानों को स्पष्ट करेगा।
अखिल भारतीय शिक्षा समागम का मुख्य आकर्षण उच्च शिक्षा पर वाराणसी घोषणा को स्वीकार करना होगा जो उच्च शिक्षा प्रणाली के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए भारत के व्यापक नजरिए और नए सिरे से उसकी प्रतिबद्धता को जाहिर करेगा।(भाषा)