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Last Updated :खजुराहो , बुधवार, 21 फ़रवरी 2024 (23:14 IST)

खजुराहो नृत्य महोत्‍सव : 100 किलो फूलों से की ब्रज होली की प्रस्तुति

7 दिवसीय लोकरंजन समारोह में होंगी विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां

खजुराहो नृत्य महोत्‍सव : 100 किलो फूलों से की ब्रज होली की प्रस्तुति - Presentation of Braj Holi with 100 kg flowers in Khajuraho Dance Festival
Khajuraho Dance Festival : मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन, छतरपुर, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर के सहयोग से खजुराहो नृत्य समारोह परिसर में 20 से 26 फरवरी तक प्रतिदिन शाम 5 बजे से पारंपरिक कलाओं के राष्ट्रीय समारोह लोकरंजन का आयोजन किया गया है, जिसके दूसरे दिन छत्तीसगढ़ का गेड़ी नृत्य, पंथी नृत्य एवं उत्तरप्रदेश के कलाकारों द्वारा होली, मयूर और चरखुला नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

समारोह की शुरुआत सुश्री वंदनाश्री एवं साथी, उत्तरप्रदेश द्वारा लठ, फूलों की होली, मयूर और चरखुला नृत्य से की गई। कलाकारों ने 100 किलो फूलों से फूलों से होली खेले रघुवीरा..., ब्रज में खेले होरी रसिया जैसे गीतों पर प्रस्तुति दी। इसके बाद दिनेश जांगड़े एवं साथियों ने छत्तीसगढ़ पंथी नृत्य की प्रस्तुति दी। पंथी छत्तीसगढ़ के सतनामी जाति का परंपरागत नाच है। किसी तिथि-त्योहार पर सतनामी जैतखाम की स्थापना करते हैं और उसके आसपास गोल घेरे में नाचते-गाते हैं।

पंथी नाच की शुरुआत देवताओं की स्तुति से होती है। पंथी गीतों का प्रमुख विषय गुरु घासीदास का चरित होता है। पंथी नृत्य गीत आध्यात्मिक संदेश के साथ मनुष्य जीवन की महत्ता भी होती है। गुरु घासीदास के पंथ से पंथी नाच की संज्ञा का अभिज्ञान हुआ है। पंथी नाच के मुख्य वाद्य मांदर और झांझ होते हैं। पंथी नाच द्रुत गति का नृत्य है।

नृत्य का आरंभ विलंबित होता है, परंतु समापन तीव्रगति के चरम पर होता है। गति और लय का समन्वय नर्तकों के गतिशील हाव-भावों में देखा जा सकता है। जितनी तेजी से गीत और मृदंग की लय तेज होती है उतनी ही पंथी नर्तकों की आंगिक चेष्टाएं तेज होती जाती हैं। गांवो में पुरुष और स्त्रियां अलग-अलग-अलग टोली बनाकर नाचते हैं। महिलाएं सिर पर कलश रखकर नाचती हैं।

मुख्य नर्तक गीतों की कड़ी उठाता है और अन्य नर्तक उसे दोहराते हुए नाचते हैं। बारह सदस्यीय देवादास बंजारे एवं साथियों ने पंथी नाच को प्रतिष्ठित किया है। अगले क्रम में छत्तीसगढ़ के ललित उसेंडी एवं साथियों द्वारा गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। मुरिया जनजाति के मुख्य पर्व-त्यौहार में नवाखानी, जाड़, जात्रा और सेषा प्रमुख हैं। प्रत्येक व्यक्ति नृत्य गीत में समान रूप से दक्ष होते हैं।
ककसार धार्मिक नृत्य गीत है। वर्ष में एक बार ककसार पर्व होता है। इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत को ककसार पाटा कहते हैं। यह गांव के धार्मिक स्थल पर होता है। मुरिया लोगों में यह माना जाता है कि लिंगोदेव (शंकर) के पास अठारह वाद्य थे। उन्होंने सभी वाद्य मुरिया लोगों को दे दिए। उसके बाद मुरिया अठारह में से उपलब्ध सभी वाद्यों के साथ ककसार में लिंगोदेव को प्रसन्न करने के लिए गाते-बजाते हैं। रात में देवता की साज-सज्जा की जाती है और रातभर युवाओं द्वारा नृत्य किया जाता है।

नृत्य के समय युवा पुरुष अपनी कमर में पीतल अथवा लोहे की घंटियां बांधे होते हैं। हाथ में छतरी और सिर पर सजावट कर वे नृत्य करते हैं। गेंडी नृत्य, जिसे मुरिया लोग डिटोंग पाटाच कहते हैं, लकड़ी की गेंडी पर किया जाता है। इसमें केवल नृत्य होता है, गीत नहीं गाए जाते। गेंडी नृत्य अत्यधिक गतिशील नृत्य है। डिटोंग गेंडी नृत्य कलारूप के नजरिए से घोटुल का प्रमुख नृत्य है। समारोह में 22 फरवरी को सायं 5 बजे अवधी फाग गायन एवं नृत्यों की प्रस्तुति का संयोजन किया जाएगा। समारोह में प्रवेश नि:शुल्क है।