ये है वीरांगना पद्मावती का जौहर स्थल, जहां आज भी गूंजती है चीखें...
चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास न सिर्फ राजपूतों की बहादुरी का साक्षी रहा है बल्कि मेवाड़ की इस धरती पर ऐसी वीरांगनाएं भी पैदा हुई हैं जिन्होंने धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए बेधड़क धधकती अग्नि में खुद को स्वाहा कर डाला, यही वो स्थल है, जहां आज भी लोग श्रद्धा से अपना सिर झुकाते हैं। इसी कुंड में महारानी पद्मावती (पद्मिनी) ने 16 हजार स्त्रियों के साथ जौहर किया था।
चित्तौड़गढ़ के किले में उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता आज भी उस भयानक कहानी का गवाह है। यह रास्ता बेहद अंधेरे वाला है जिस पर आज भी कोई जाने का साहस नहीं करता। इस गलियारे की दीवारों तथा कई गज दूर भवनों में आज भी कुंड की अग्नि के चिन्ह और उष्णता का अनुभव किया जा सकता है।
साफ दिखाई देता है कि विशाल अग्निकुंड की ताप से दीवारों पर चढ़े हुए चूने के प्लास्टर जल चुके हैं। इस चित्र में कुंड के समीप जो दरवाजा दिख रहा है कहा जाता है कि चितौड़ की आन-बान और शान के लिए वीरांगना पद्मावती वहीं से अपनी साथी महिलाओं के साथ कुंड में कूद गई थीं। कहते हैं कि यह जौहर इतना विशाल था कि कई दिनों तक इस कुंड में अग्नि धधकती रही।