नई दिल्ली, अस्पतालों में उपयोग होने वाले स्वास्थ्य देखभाल परिधान (स्क्रब, गाउन, डॉक्टर कोट, रोगी के वस्त्र आदि) में सूक्ष्म रोगजनक होते हैं, जो बीमारी का कारण बन सकते हैं। कपड़े की नरम और छिद्रयुक्त सतह हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, और कवक के पनपने एवं उनके प्रसार के लिए अनुकूल होती है। इन रोगजनकों को साफ करने या हटाने के बार-बार किये जाने वाले प्रयासों के बावजूद, वे समय के साथ कपड़ों से चिपके रहते हैं, और संक्रमण फैलाते रहते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली द्वारा इन्क्यूबेटेड स्टार्टअप मेडिकफाइबर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने एक प्रभावी सॉल्यूशन विकसित किया है, जिससे अस्पतालों में चिकित्सकों, कर्मचारियों, एवं मरीजों को रोगजनकों के संक्रमण से रहित वस्त्र एवं टैक्सटाइल मैटेरियल उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। यह पहल अस्पतालों में कपड़ों के जरिये फैलने वाले रोगजनक सूक्ष्मजीवों के संक्रमण को रोकने में मददगार हो सकती है।
मेडिकफाइबर ने चिकित्सकों, कर्मचारियों, एवं मरीजों के लिए रोगजनक सूक्ष्मजीवों के संक्रमण से रहित वस्त्रों के साथ-साथ अस्पतालों में उपयोग होने वाली बेडिंग इत्यादि की विस्तृत श्रृंखला पेश की है। इन वस्त्रों और टैक्सटाइल मैटेरियल की विशेषता यह है कि इन पर वायरोक्लॉग (ViroClog) नामक नये विकसित एक विशिष्ट सॉल्यूशन की कोटिंग की गई है, जो रोगजनक सूक्ष्मजीव प्रतिरोधी है। सॉल्यूशन की कोटिंग कपड़ों पर संक्रमण पैदा करने वाले रोगजनकों को पनपने नहीं देती।
इस सॉल्यूशन की एक विशेषता यह है कि यह लंबे समय तक प्रभावी रहता है। संक्रमण-रोधी सॉल्यूशन की कोटिंग से युक्त वस्त्रों के उपयोग से अस्पतालों में पाये जाने वाले वायरस, बैक्टीरिया, और फंगस जैसे रोगजनक सूक्ष्मजीवों का संक्रमण फैलने का खतरा कम हो सकता है। मेडिकफाइबर द्वारा पेश की जा रही वस्त्रों की श्रृंखला में रोगजनक सूक्ष्मजीव प्रतिरोधी डॉक्टर्स कोट, गाउन, ओटी गाउन, स्क्रब सूट, चादरें इत्यादि शामिल हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि वस्त्रों पर वायरोक्लॉग सॉल्यूशन का लेप करने से कपड़ों की सतह की ऊर्जा कम हो जाती है, जिससे रोगाणुओं को चिपकने से रोका जा सकता है, और उनकी झिल्ली नष्ट हो जाती है। लिपिड-आधारित झिल्ली अवरोध का विनाश रोगाणुओं को निष्क्रिय कर देता है। अस्पतालों में उपयोग होने वाले कपड़ों के साथ इस रोगाणुरोधी प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके जीवन बचाने और स्वास्थ्य संबंधी खर्च को कम करने में मदद मिल सकती है।
एम्स, नई दिल्ली, भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलूरू और परीक्षण और अंशांकन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएल) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं द्वारा किए गए परीक्षणों से पता चलता है कि वायरोक्लॉग रोगाणुरोधी अस्पताल के कपड़ों के माध्यम से संक्रमण को कम करने में सक्षम है।
स्टार्टअप के सलाहकार और आईआईटी दिल्ली में संकाय सदस्य डॉ सचिन कुमार बताते हैं कि “टैक्सटाइल मैटेरियल छिद्रयुक्त होते हैं, जिसके कारण रोगजनक बैक्टीरिया वस्त्रों पर आसानी से पनप सकते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के आर्द्र और गर्म वातावरण में रोगजनकों की वृद्धि अधिक होती है। इसके अलावा, अस्पताल-जनित संक्रमण लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती होने, वित्तीय बोझ और अधिक मृत्यु दर का कारण बनता है। इसलिए, स्वास्थ्य देखभाल के लिए अस्पतालों में रोगाणुरोधी कपड़ों की एक श्रृंखला के माध्यम से अस्पताल-जनित संक्रमण के बोझ को कम करने के लिए प्रभावी प्रौद्योगिकी विकसित करना समय की माँग है।”
मेडिकफाइबर के संस्थापक हर्ष लाल ने कहा है कि “बाजार के मौजूदा खिलाड़ी मुख्य रूप से सिल्वर-कोटेड नैनो कणों पर भरोसा करते हैं, जबकि वायरोक्लॉग काफी अलग है, जिसमें व्यापक स्पेक्ट्रम रोगाणुरोधी गुण हैं। वर्तमान में उपलब्ध सॉल्यूशन करीब 50 वॉश तक कोटिंग सुरक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन, कई प्रयोगशाला परीक्षणों में पेटेंट किए गए वायरोक्लॉग उच्च स्थायित्व का प्रदर्शन करते हुए 100 से अधिक वॉश तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है, और संक्रमण को कम करने में मदद करता है।”
कोविड-19 जैसी महामारी के प्रकोप को देखते हुए स्टार्टअप के चिकित्सा सलाहकार और एम्स नई दिल्ली में संकाय सदस्य डॉ विक्रम सैनी ने कहा है कि “अस्पतालों में चिकित्सा-कर्मियों के लिए सुरक्षात्मक कपड़ों की तत्काल आवश्यकता है, जो किफायती और आरामदायक होने के साथ-साथ रोगाणुओं के खिलाफ लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हों।”
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अस्पताल में भर्ती हर दस में से एक मरीज को अस्पताल से प्राप्त संक्रमण का सामना करना पड़ता है। अब यह अनुभव किया जा रहा है कि वस्त्र और टैक्सटाइल मैटेरियल न केवल रोगजनक बैक्टीरिया, वायरस और कवक जैसे सूक्ष्मजीवों का वाहक बनते हैं, बल्कि इन रोगाणुओं के विकास के लिए प्रजनन स्थल के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।
(इंडिया साइंस वायर)