नई दिल्ली। आतंकवाद की आड़ में छद्मयुद्ध चलाने के लिए पाकिस्तान को परोक्ष रूप से कड़ा संदेश देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि भारत, शांति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन अपने सम्मान से समझौता करके और राष्ट्र की संप्रभुता की कीमत पर वह कतई ऐसा नहीं कर सकता।
'पराक्रम पर्व' के अवसर पर प्रधानमंत्री ने राजस्थान के जोधपुर में एक कार्यक्रम में स्वयं के भाग लेने का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे सैनिक देश में शांति और उन्नति के माहौल को नष्ट करने के किसी भी प्रयास का मुंहतोड़ जवाब देंगे।
आकाशवाणी पर प्रसारित 'मन की बात' कार्यक्रम में अपने संबोधन में मोदी ने कहा कि हम शांति में विश्वास करते हैं और इसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन सम्मान से समझौता करके और राष्ट्र की संप्रभुता की कीमत पर कतई नहीं। भारत सदा ही शांति के प्रति वचनबद्ध और समर्पित रहा है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में 'सर्जिकल स्ट्राइक' से लेकर वायुसेना दिवस, सेना एवं नौसेना के शौर्य, महात्मा गांधी की जयंती, स्वच्छता अभियान तथा मानवाधिकार आदि के विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने मार्टिन लूथर किंग, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जयप्रकाश नारायण, लालबहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों का भी जिक्र किया।
मोदी ने 'सर्जिकल स्ट्राइक' का जिक्र करते हुए कहा कि कल (29 सितंबर को) हमारे सवा सौ करोड़ देशवासियों ने 2016 में हुई 'सर्जिकल स्ट्राइक' को याद करते हुए 'पराक्रम पर्व' मनाया। हमारे सैनिकों ने हमारे राष्ट्र में आतंकवाद की आड़ में छद्मयुद्ध की धृष्टता करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया था।
उन्होंने कहा कि 'पराक्रम पर्व' पर देश में अलग-अलग स्थानों पर हमारे सशस्त्र बलों ने प्रदर्शनियां लगाईं ताकि देश के नागरिक, खासकर युवा पीढ़ी यह जान सके कि हमारी ताकत क्या है, हम कितने सक्षम हैं और कैसे हमारे सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर देशवासियों की रक्षा करते हैं।
प्रधानमंत्री ने देश के जवानों के शौर्य का जिक्र करते हुए कहा कि आज भी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अलग-अलग शांतिरक्षक बलों में भारत सबसे अधिक सैनिक भेजने वाले देशों में से एक है। दशकों से हमारे बहादुर सैनिकों ने ब्लू हेलमेट पहनकर विश्व में शांति कायम रखने में अहम भूमिका निभाई है।
उन्होंने 8 अक्टूबर को वायुसेना दिवस का जिक्र करते हुए कहा कि 1932 में 6 पायलट और 19 वायुसैनिकों के साथ एक छोटी सी शुरुआत कर देश की वायुसेना आज 21वीं सदी की सबसे साहसिक और शक्तिशाली वायुसेना बन चुकी है। यह अपने आप में एक यादगार यात्रा है। मोदी ने इस संदर्भ में 1947 में श्रीनगर को हमलावरों से बचाने, 1965 में दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने और 1999 करगिल को घुसपैठियों के कब्जे से मुक्त कराने में वायुसेना की भूमिका का जिक्र किया।
उन्होंने आगे कहा कि राहत कार्य हो, बचाव कार्य हो या फिर आपदा प्रबंधन हो, हमारे वायु सैनिकों के सराहनीय कार्य को लेकर देश वायुसेना के प्रति कृतज्ञ है। वायुसेना में महिलाओं की भागीदारी का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में स्त्री और पुरुष की समानता सुनिश्चित करने में वायुसेना ने मिसाल कायम करते हुए अपने प्रत्येक विभाग के द्वार महिलाओं के लिए खोल दिए हैं। अब महिलाओं के पास शॉर्ट सर्विस कमीशन के साथ स्थायी कमीशन का विकल्प भी है।
उन्होंने कहा कि भारत गर्व से कह सकता है कि उसकी सेना में सशस्त्र बलों में पुरुष शक्ति ही नहीं, स्त्री-शक्ति का भी उतना ही योगदान बनता जा रहा है। नारी 'सशक्त' तो है ही, अब वह 'सशस्त्र' भी बन रही है। प्रधानमंत्री ने गोल्डन ग्लोब रेस में हिस्सा लेने वाले नौसेना के कमांडर अभिलाष टॉमी के साहस की भी सराहना की। तूफान की वजह से अभिलाष की नौका क्षतिग्रस्त हो गई थी और वे स्वयं गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
मोदी ने कहा कि वे (अभिलाष) भोजन और पानी के बिना जूझते रहे लेकिन मौत से लड़ते हुए उन्होंने हार नहीं मानी। साहस, शक्ति, निर्भीकता और बहादुरी का वे दुर्लभ उदाहरण हैं। अभिलाष से अपनी मुलाकात का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की। (भाषा)