मणिपुर में मानवता शर्मसार, केन्द्र और राज्य सरकारों पर उठे सवाल
Manipur Violence : ढाई माह से ज्यादा वक्त गुजर चुका है, मगर मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। 150 से ज्यादा लोगों की हत्याओं के खून में सने मणिपुर ने 2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर अपने मुंह पर कालिख भी मल ली है। इस कृत्य के लिए न सिर्फ मणिपुर के लोगों की भीड़ जिम्मेदार है, बल्कि देश की राजधानी में सिरमौर बनकर बैठी केंद्र सरकार और मणिपुर की एन बिरेन सिंह की सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार हैं।
खास बात तो यह है कि यह सब हुआ उस 'डबल इंजन' की सरकार में जिसकी सफलताओं के दावे भाजपा नेता बड़े-बड़े मंचों से करते हैं। विकास तो भूल जाइए मणिपुर में तो 'डबल इंजन' सरकार के राज में विनाश का तांडव रचा जा रहा है।
मणिपुर के लोगों और विपक्षी दलों की लगातार मांग के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मणिपुर की हिंसा पर चुप रहे। संसद के मानसून सत्र से पहले यदि वीडियो सामने नहीं आता तो शायद उनकी चुप्पी अभी भी नहीं टूटती। उन्होंने कहा कि मेरा हृदय क्रोध से भर गया, देश शर्मसार हुआ।
क्या पीएम को देश के गृहमंत्री से जवाब नहीं मांगना चाहिए? क्या यह गृहमंत्री के फेल्युअर नहीं है? मुख्यमंत्री बिरेन सिंह का यह कहना बहुत बचकाना है कि राज्य में इस तरह के हजारों केस हैं। इसीलिए इंटरनेट बंद है। राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा कि मैंने अपने जीवन में ऐसी हिंसा कभी नहीं देखी।
मणिपुर की घटना को लेकर विपक्षी दल तो राज्य और केन्द्र सरकारों पर निशाना साध ही रहे हैं, बुद्धिजीवी वर्ग भी तीखी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहा है। हंगामे के चलते संसद ठप है। इस घटना के विरोध में शुक्रवार को दिल्ली, बिहार, झारखंड, केरल, गोवा आदि राज्यों में लोगों ने प्रदर्शन किया।
फिल्म निर्माता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अपर्णा सेन मणिपुर की घटना पर प्रतिक्रिया के लिए आग्रह करने पर रो पड़ीं। उन्होंने इसे इस घटना को नारीमेध यज्ञ करार दिया। बंगाली अभिनेता परमब्रत चटर्जी ने सवाल उठाया कि क्या हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हमारे देश की स्थिति तालिबान शासित अफगानिस्तान से बेहतर है?
इस घटना को लेकर सवाल यह भी उठते हैं कि कानून व्यवस्था किसके हाथ में थी? आखिर मणिपुर पर आंखें किसने मूंदी? कान किसने बंद किए? मणिपुर को राजनीति का शिकार किसने होने दिया? आखिर मणिपुर के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अब किसे दोष देंगी?