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Last Updated : शुक्रवार, 29 मई 2020 (12:34 IST)

टिड्डियों का हमला कहीं प्रलय का संकेत तो नहीं?

Grasshopper Locust attack | टिड्डियों का हमला कहीं प्रलय का संकेत तो नहीं?
मानव जाति प्रकृति के गुप्त संदेश को नहीं समझ पा रही है। मनुष्य ने जिस तरह से प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है उसके चलते जलवायु परिवर्तन, जंगल में भीषण आग, बेमौसम बारिश, आंधी, तूफान, चक्रवात, भयंकर भूकंप, महामारी और टिड्डियों का आंतक जैसे तमाम तरह के प्रकोप बढ़ गए हैं। यह प्रकोप हमें बता रहे हैं कि यदि हम अब भी नहीं संभलें तो निकट भविष्य में महाप्रलय संभव होगी और तब मनुष्य कुछ भी नहीं कर पाएगा उसी तरह जिस तरह की आज मनुष्य जाति मात्र कोरोना वायरस के आगे बेबस है। आओ जानते हैं टिड्डियों के आंतक के पीछे का रहस्य।
 
 
कहां से आया टिड्डी दल : अफ्रीका से अरब और अरब से ईरान, पाकिस्तान और फिर भारत में टिड्डियों ने हमला किया है जिसके चलते किसानों की करोड़ों की फसल नष्ट हो गई है। इस फसल के नष्ट होने से आने वाले समय में खाद्यान की कमी होगी और महंगाई बढ़ेगी। टिड्डी दल में कम से कम 10 लाख से ज्यादा टिड्डियां होती हैं। एक के पीछे एक करके कई टिड्डी दल समयांतर में हमला करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से इन टिड्डियों ने हमला किया है उससे देश में करोड़ों रुपए के कीमत की मूंग दाल और अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा मंडरा रहा है। ये टिड्डी दल जिस इलाके से गुजर जा रहे हैं वहां के खेतों में फसलें गायब हो जाती हैं। साल 2019 में भी टिड्डियों ने देश में बहुत नुकसान पहुंचाया था। साल 1993 में टिड्डियों का सबसे बड़ा हमला हुआ था।
 
 
कैसे पनपता है टिड्डी दल : टिड्डियों के भारी संख्या में पनपने का मुख्य कारण वैश्विक तापवृद्धि के चलते मौसम में आ रहा बदलाव है। जलवायु परिवर्तन के चलते धरती के कई इलाकों में चक्रवात पैदा हो रहे हैं जिसके चलते बेमौसम बारिश हो रही है। मई 2018 में मेकुनु चक्रवात और इसके बाद अक्टूबर 2018 में लुबन चक्रवात के कारण अरब प्रायद्वीप में भारी बारिश हुई व रेगिस्तान में तालाब बन गए, जो टिड्डी के प्रजनन के लिए अनुकूल माहौल होता है। इसके बाद जनवरी 2019 में लाल सागर के तटीय क्षेत्र में बेमौसम भारी बारिश हो गई। इस क्षेत्र में बारिश की अवधि बढ़कर 9 महीने की हो गई, जिससे ये टिड्डी दल कई गुणा बढ़ गए। टिड्डी बहुत तेजी से विकसित होती हैं। इनके एक औसत झुंड में 80 से 100 लाख टिड्डी होती है, पहले प्रजनन में टिड्डी 20 गुणा बढ़ जाती हैं, दूसरे प्रजनन में 400 गुणा और तीसरे प्रजनन में 16 हजार गुणा बढ़ जाती हैं। इसका मतलब है कि अगर प्रजनन की अवधि बढ़ जाए, तो उनकी संख्या में बेतहाशा इजाफा हो जाएगा।
 
विशेषज्ञों ने बताया कि एक मादा टिड्डी तीन बार तक अंडे दे सकती है और एक बार में 95-158 अंडे तक दे सकती हैं। टिड्डियों के एक वर्ग मीटर में एक हजार अंडे हो सकते हैं। इनका जीवनकाल तीन से पांच महीनों का होता है। नर टिड्डे का आकार 60-75 एमएम और मादा का 70-90 एमएम तक हो सकता है।
 
एक दिन में 35 हजार लोगों का खाना हजम : दुनियाभर में टिड्डियों की 10 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन भारत में केवल चार प्रजाति ही मिलती हैं। इसमें रेगिस्तानी टिड्डा, प्रवाजक टिड्डा, बंबई टिड्डा और पेड़ वाला टिड्डा शामिल हैं। इनमें रेगिस्तानी टिड्डों को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। ये टिड्डियां एक दिन में 35 हजार लोगों का खाना चट कर जाती है। कृषि अधिकारियों के अनुसार, रेगिस्तानी टिड्डों की वजह से दुनिया की दस फीसद आबादी का जीवन प्रभावित हुआ है। 
 
 
कैसे बच सकते हैं : इससे बचने के लिए पहले से ही नियंत्रण, निगरानी और किटनाशक का छिड़काव जरूरी है। कई क्षेत्रों में सामुदायिक रूप से ध्वनि यंत्र (ढोल आदि) का उपयोग कर इन्हें खेत में बैठने के पहले ही भगा दिया जाता है। इसके अलावा दलदली क्षेत्रों, तालाबों आदि जगहों पर डिड्डियों के अंडे को पनपने से पहले ही नष्ट किया जाना भी जरूरी है।

- एजेंसियां