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Last Modified: गुरुवार, 13 अप्रैल 2023 (17:22 IST)

रमजान के पहले 20 दिनों में 100 ट्रक खजूर खा गए कश्मीरी

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जम्मू। सच में यह चौंकाने वाली बात है कि कश्मीर ने एक और रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। पहले ही कई रिकॉर्ड उसके नाम थे। अभी तक वह रिकॉर्ड तोड़ मीट, दवाइयां, तरबूज खाने का रिकॉर्ड अपने नाम किए हुए थे कि अब उसने प्रतिदिन खजूर खाने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है।

सच में कश्मीरियों ने इस बार रमजान के पवित्र महीने में खजूर खाने में नया रिकॉर्ड कायम किया है। हालांकि पिछने साल की तरह तरबूज की खपत प्रथम स्थान पर ही है, पर इस बार इसमें खजूर भी जुड़ गई है। रिकॉर्ड के अनुसार, इन 20 दिनों में कश्मीरियों ने 100 ट्रक खजूर खा ली है।

दरअसल हर साल रमजान के पवित्र महीने में तरबूज की बिक्री आमतौर पर बढ़ जाती है, पर इस बार कश्मीरियों को खजूर भी बहुत पसंद आ रही है। ड्राई फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष बहादुर खान ने कहा कि रमजान के पिछले 20 दिनों में करीब 100 ट्रक खजूर कश्मीर पहुंचे हैं।

उन्होंने कहा कि यहां जो खजूर खाए जा रहे हैं उनमें ज्यादातर अजवा हैं और ज्यादातर श्रीनगर लाए जाते हैं। फिर श्रीनगर से विभिन्न जिलों के विभिन्न वितरकों को खजूर बेचे जा रहे हैं। फ्रूट एंड वेजिटेबल एसोसिएशन कश्मीर के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने कहा कि तरबूज से लदे कम से कम 25 से 30 ट्रक हर दिन कश्मीर पहुंच रहे हैं। प्रत्येक ट्रक में लगभग 15 से 20 टन तरबूज होते हैं।

उन्होंने कहा कि इन्हें आमतौर पर कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात सहित भारत के विभिन्न राज्यों से लाया जाता है। बशीर का कहना था कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा मांग और बढ़ेगी यह भी पूरी तरह से सच है की कश्मीरियों ने पिछले रमजान के दिनों में प्रतिदिन 100 से अधिक ट्रक तरबूज खाए थे जिसकी कीमत 5 करोड़ के करीब थी।

कश्मीर की फ्रूट एंड वेजिटेबल एसोसिएशन के प्रधान बशीर अहमद बशीर पर विश्वास करें तो हफ्ताभर पहले तरबूज की मांग प्रतिदिन 25 से 30 ट्रक की थी, जो बढ़कर अब 50 से 60 से अधिक ट्रकों की हो गई है।

एक ट्रक में 15 से 20 टन तरबूज आ रहे हैं। हालांकि सरकारी तौर पर तरबूज की कीमत 30 रुपए प्रति किलो तय की गई है, पर यह कश्मीर में 60 से 70 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। खाद्य आपूर्ति विभाग के डायरेक्टर अब्दुल सलाम मीर कहते थे कि शिकायत आने पर जुर्माना किया जाता है।

कश्मीर में सिर्फ तरबूज की खपत ही नहीं बल्कि मीट की खपत भी एक रिकॉर्ड बना चुकी है। मीट की खपत का रिकॉर्ड आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है। आप सोच भी नहीं सकते कि कश्मीरी कितना मीट खा जाते हैं। प्रतिवर्ष इसकी खपत 51 हजार टन है। इसमें मछली को शामिल नहीं किया गया है।

कश्मीर में प्रतिवर्ष 2.2 मिलियन भेड़-बकरियों को कुर्बान किया जाता है, जबकि 1.2 बिलियन मांस प्रदेश के बाहर से मंगवाया जाता है। पिछली सर्दियों में कश्मीर में मीट की किल्लत का ही परिणाम था कि सरकारी तौर पर तयशुदा कीमतों से अधिक पर यह बिकता रहा और कार्रवाई होने पर मीट बेचने वाले दुकानदारों ने एक माह तक कारोबर बंद कर कश्मीरियों के लिए आफत ला दी थी।

ऐसे ही अन्य कई रिकॉर्ड और भी हैं जिनमें दवाइयों की खपत का भी है। एक अनुमान के अनुसार, कश्मीर में 1200 से 1500 करेाड़ की दवाइयों की खपत प्रतिवर्ष होती है। इनमें सबसे अधिक डिप्रेशन की दवाइयों की मांग है। दरअसल 32 सालों के आतंकवाद के दौर के कारण बड़ी संख्या में लोग अवसाद का शिकार हो रहे हैं और बिना डॉक्टरी सलाह के वे रोटी की तरह अवसाद दूर करने वाली दवाइयों का सेवन कर रहे हैं।
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