MP की कमान संभालेंगे कमलनाथ, ऐसी थी संजय गांधी के साथ दोस्ती, इंदिरा गांधी मानती थीं तीसरा बेटा...!
कमलनाथ आज सोमवार दोपहर 1.30 मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। कमलनाथ की गिनती देश के दिग्गज राजनेताओं में होती है। मध्यप्रदेश ने देश को जितने भी नामी राजनेता दिए हैं, उनमें से एक कमलनाथ भी हैं।
कानपुर में जन्मे, देहरादून और पश्चिम बंगाल में पढ़ाई की लेकिन कमलनाथ ने राजनीति की शुरुआत मध्यप्रदेश से की। कमलनाथ ने संजय गांधी साथ मारुति कार का कारखाना लगाने का सपना देखा और उसे पूरा कराया। कमलनाथ को संजय गांधी का करीबी माना जाता है। छिंदवाड़ा में चुनावी सभा में इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना 'तीसरा बेटा' बताया था।
18 नवंबर 1946 को उत्तरप्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ की स्कूली पढ़ाई मशहूर दून स्कूल से हुई। दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कमलनाथ ने कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज से बीकॉम किया। 27 जनवरी 1973 को कमलनाथ अलका नाथ के साथ शादी के बंधन में बंधे। कमलनाथ के 2 बेटे हैं। उनका बड़ा बेटा नकुलनाथ राजनीति में सक्रिय है।
देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार से आने वाले संजय गांधी की दोस्ती दून स्कूल में पश्चिम बंगाल से आने वाले कमलनाथ से हुई। दून स्कूल से शुरू हुई यह दोस्ती धीरे-धीरे पारिवारिक होती गई। दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कमलनाथ कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज पहुंचे। हालांकि शहर तो बदल गया लेकिन दोनों की दोस्ती ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाई।
कमलनाथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर से ही गांधी परिवार के करीबी रहे हैं। कमलनाथ अपना बिजनेस बढ़ाना चाहते थे। ऐसे में एक बार फिर दून स्कूल के ये दोनों दोस्त फिर करीब आ गए। बताया जाता है कि इमरजेंसी के दौर में कमलनाथ की कंपनी जब संकट में चल रही थी, तो उसको इस संकट से निकालने में संजय गांधी का महत्वपूर्ण रोल रहा।
संजय गांधी की छवि एक तेजतर्रार नेता की मानी जाती थी। कमलनाथ इंदिरा गांधी के इस छोटे बेटे के साथ हर समय रहते थे। बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति में आने की इच्छा नहीं थी, ऐसे में संजय गांधी को जरूरत थी एक साथ की और वे थे कमलनाथ।
1975 में इमरजेंसी के बाद से कांग्रेस खराब दौर से गुजर रही थी। इस दौर में संजय गांधी की असमय मौत हो गई थी, इंदिरा गांधी की भी उम्र भी अब साथ नहीं दे रही थी। कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई। कमलनाथ गांधी परिवार के करीब आ ही चुके थे, वे लगातार मेहनत भी कर रहे थे। वे लगातार पार्टी के साथ खड़े हुए थे। इसका इनाम उन्हें इंदिरा गांधी ने दिया, जब उन्हें छिंदवाड़ा सीट से टिकट दिया और राजनीति में उतार दिया!