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Last Updated : बुधवार, 4 जनवरी 2023 (14:42 IST)

बिल्कीस बानो मामला: न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया, जानिए क्यों

बिल्कीस बानो मामला: न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया, जानिए क्यों - Justice Trivedi recuses himself in Bilkis Bano case
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिल्कीस बानो मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। उल्लेखनीय है कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी।
 
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं सहित इस मामले में दायर अन्य याचिकाओं को सुनवाई के लिए लिया।
 
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि क्योंकि मेरी साथी न्यायाधीश पहले ही पीड़िता की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं इसलिए वे इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी। रस्तोगी ने कहा कि अब पीड़िता ने दोषियों को छूट देने को चुनौती देते हुए इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है, उसकी याचिका को एक प्रमुख मामले के रूप में लिया जाएगा। जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन के साथ बैठेगी तो बाकी याचिकाओं को उसकी याचिका के साथ नत्थी कर दिया जाएगा।
 
पीठ ने कहा कि हम सभी मामलों को अगली तारीख पर सूचीबद्ध करेंगे और सभी याचिकाओं के साथ संलग्न करेंगे। तब तक सभी दलीलें पूरी हो जानी चाहिए। बानो ने उच्चतम न्यायालय में एक और याचिका दायर की है जिसमें उसने 11 दोषियों की सजा माफ करने की अर्जी पर गुजरात सरकार से विचार करने के लिए कहने संबंधी आदेश की समीक्षा का अनुरोध किया है।
 
गुजरात सरकार ने मामले में सभी 11 दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें बीते साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था। बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। घटना के वक्त बानो की उम्र 21 साल थी और वे 5 महीने की गर्भवती थी।
 
मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे की सुनवाई महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित की थी। मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी उनकी सजा बरकरार रखी थी।
 
मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग 15 अगस्त 2022 को गोधरा उपजेल से रिहा हुए थे। गुजरात सरकार ने राज्य की सजा माफी नीति के तहत इन दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी। उन्होंने जेल में 15 साल से ज्यादा की सजा पूरी कर ली थी।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
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