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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला
Last Updated : बुधवार, 2 जून 2021 (13:04 IST)

कहीं यह Corona की तीसरी लहर की दस्तक तो नहीं?

कहीं यह Corona की तीसरी लहर  की दस्तक तो नहीं? - Is this the knock of the third wave of Corona?
कोरोनावायरस (Coronavirus) की पहली लहर का असर 60 साल और उससे ऊपर के बुजुर्गों में देखने को मिला था, वहीं दूसरी लहर ने सबसे ज्यादा युवाओं को प्रभावित किया। अब यह आशंका जताई जा रही है तीसरी लहर का असर बच्चों पर ज्यादा देखने को मिल सकता है।
 
यदि कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो देश में इसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। कहीं-कहीं तो बच्चों में ब्लैक फंगस के मामले भी सामने आए हैं। हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि भारत में कोविड की तीसरी लहर आ सकती है। लेकिन, दूसरी लहर से सबक लेकर सरकारी और निजी स्तर पर ऐहतियात तो बरती ही जा सकती है।

हाल ही में राजस्थान के दौसा और डूंगरपुर जिलों में 15-20 दिनों के भीतर बच्चों में कोरोना संक्रमण 600 से ज्यादा मामले सामने आए थे। बिहार के दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में तो बहुत ही मार्मिक तस्वीर सामने आई थी, जहां ढाई माह के एक शिशु की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई, वहीं 3 अन्य भाई-बहनों की भी मौत हो गई। बताया जा रहा है कि इन्हें कोरोना जैसे ही लक्षण थे। इन्हें निमोनिया के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इनमें से एक बच्चे का अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत ही किया गया था।

यह तस्वीर‍ निश्चित ही डराने वाली है। विशेषज्ञ भी अब इस ओर संकेत करने लगे हैं। चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉ. प्रीति सिंह वेबदुनिया से बातचीत में कहती हैं कि बच्चों के कोरोना केसेस चिंता में डालने लगे हैं। वे कहती हैं सेवा कार्य के दौरान बस्तियों में हम बड़ों के ट्रीटमेंट और सप्लीमेंट पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन अब बच्चों में भी कोविड के हलके लक्षण देखने को मिल रहे हैं।

अब बच्चे कमजोर कड़ी : उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से 12, 13 और 15 साल के किशोरों में संक्रमण के लक्षण नजर आने लगे हैं। राजस्थान के दौसा और डूंगरपुर भी इसके उदाहरण हो सकते हैं। यहां तक कि बच्चों में ब्लैक फंगस के केसेस भी नजर आने लगे हैं। दरअसल, बड़ों को वैक्सीन लगने के बाद बच्चे अब कमजोर कड़ी बन गए हैं। क्योंकि उनके लिए तो फिलहाल कोई वैक्सीन भी नहीं है। ऐसे में अब बच्चों को बड़ों से खतरा हो गया है।

डॉ. सिंह कहती हैं कि बहुत सारी जनसंख्या पॉजिटिव हो चुकी है और एंटीबॉडी भी डेवलप हो चुकी है। बच्चों में बढ़ते कोरोना मामलों में छिपे संकेत को समझने को जरूरत है। हमें देखना होगा कि कहीं यह तीसरी लहर की दस्तक तो नहीं है? वे कहती हैं कि एक वैरिएंट में लक्षण का पैटर्न टाइफाइड जैसा है। टाइफाइड के ऐसे मामलों में कोरोना का ट्रीटमेंट करने पर ही रिजल्ट मिल रहे हैं। हालांकि बस्तियों में पैरेंट्‍स कहते हैं बच्चों को कोरोना नहीं हुआ है और उन्हें किसी जांच की भी जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि हम इस तरह के लोगों के बीच में काम करने के साथ ही उन्हें जागरूक करने का काम भी लगातार कर रहे हैं। डॉ. सिंह कहती हैं कि अन्य लोगों से भी हमारी अपील है कि वे झाड़फूंक न करवाकर बच्चों के साथ अपना भी सही समय और सही चिकित्सक से इलाज करवाएं। वे कहती हैं कि बच्चों के मामले में अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है। क्योंकि वे हाइजिन और मास्क का उतना ध्यान नहीं रख पाते। इससे दूसरे बच्चों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है। इस मामले में सभी को अवेयर होने की आवश्यकता है।
 
बच्चों में ब्लैक फंगस : दूसरी ओर, बच्चों में ब्लैक फंगस के मामले भी सामने आने लगे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि वे कोरोना का शिकार भी हुए हैं। कर्नाटक में बेल्लारी जिले की 11 वर्षीय एक लड़की और चित्रदुर्ग जिले के 14 वर्षीय एक लड़का ब्लैक फंगस का शिकार हो चुका है। इनका सरकारी अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इसी तरह गुजरात के अहमदाबाद में भी 13 साल के बच्चे में ब्लैक फंगस का मामला सामने आया है। इस बच्चे को पहले कोरोना हो चुका था।