कश्मीर में सिखों के सामने अस्तित्व का संकट, बोले जगमोहन सिंह रैना, RSS के इशारे पर खत्म किया पंजाबी के राजभाषा का दर्जा
10 साल बाद जम्मू कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव पर देश के साथ दुनिया की भी नजर टिकी है। विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, नेशनल कॉफ्रेंस, पीडीपी के साथ कई अन्य पार्टियां भी उतरी है। राज्य की आबादी में 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले सिख समाज के संगठन ऑल पार्टीज सिख कोऑर्डिनेशन कमेटी (एपीएससीसी) ने भी तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे है।
ऑल पार्टीज सिख कोऑर्डिनेशन कमेटी (एपीएससीसी) आखिर किन उद्देश्यों के साथ चुनावी मैदान में उतरी है और उसके प्रमुख चुनावी मुद्दें क्या है इसको लेकर वेबदुनिया ने ऑल पार्टीज सिख कोऑर्डिनेशन कमेटी (एपीएससीसी) के अध्यक्ष जगमोहन सिन्हा रैना से एक्सक्लूसिव बातचीत की।
सिक्खों के सामने पहचान और अस्तित्व की चुनौती-वेबदुनिया से बातचीत में ऑल पार्टीज सिख कोऑर्डिनेशन कमेटी (एपीएससीसी) जगमोहन सिंह रैना चुनाव में उतरने के कारणों को विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि घाटी के हालातों के कारण हम पिछले 25-30 सालों में बहुत पिछड़ गए है। कश्मीर घाटी में सिक्खों की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती थी लेकिन हालातों के कारण वह उन्होंने गांव को छोड़ा और शहर की ओर आ गए खासकर नॉर्थ कश्मीर, सेंट्रल कश्मीर, बड़गाम और बारमूला के सिक्ख है, सिक्ख उसकी तरह माइग्रेंट हुए जैसे कश्मीर पंडित हुए थे, अंतर सिर्फ यह है सिक्ख समुदाय के लिए कश्मीरी पंडितों की तरह कश्मीर से बाहर नहीं गए है, जिसके इनकी आर्थिक हालत बिगड़ गई और उनके सामने रोजी रोटी का संकट आ गया।
ऐसे में हमने केंद्र सरकार के सामने सिक्खों की दुर्दशा के मुद्दें को कई बार उठाया और इसको लेकर जम्मू से दिल्ली तक कई दौर की बैठक भी हुई। इन बैठकों में हमने सिक्खों के लिए विशेष पैकेज के साथ राज्य में सिक्खों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की जैसे देश के अन्य हिस्सों में सिक्खों को मिल रहा है,लेकिन दुर्भाग्य वश हमारी सभी मांगों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया।
RSS के इशारे पर सिक्खों को उनकी भाषा से दूर करने की कोशिश- वेबदुनिया से बातचीत में जगमोहन सिंह रैना कहते हैं जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाज पंजाबी के राजभाषा का दर्जा समाप्त कर दिया गया जबकि इससे पहले जम्मू कश्मीर में पंजाबी को राजभाषा भाषा को दर्जा प्राप्त था और स्कूलों और कॉलेजों में पंजाबी भाषा पढ़ाई जाती है लेकिन उसको खत्म कर दिया गया। जगमोहन सिंह रैना कहते हैं कि कश्मीर घाटी में आरएसएस के इशारे पर सिक्खों को उनकी भाषा और इतिहास से दूर करने की कोशिश लगातार की जा रही है। राज्य में पिछले 25-30 सालों में सिक्खों को बांटने के साथ उनको अपमानित कर जानबूझकर आर्थिक रूप से पीछे धकेला गया। यहीं कारण है कि अब जब 10 साल बाद चुनाव हो रहे है तब हमने चुनाव में उतरने का फैसला किया।
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परिसीमन में सिक्खों को नहीं मिला प्रतिनिधित्व-जम्मू कश्मीर ने धारा 370 हटने के बाद जब नए सिरे से निर्वाचन क्षेत्र के गठन के लिए परिसीमन आयोग (डिलिमिटेशन कमीशन) का गठन हुआ और विधानसभा की सीटों का नए सिरे से निर्धारण करने के साथ संख्या को बढ़ाया गया तब सिख समुदाय को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया जबकि विधानसभा में कश्मीरी पंडितों के लिए 2 सीटें आरक्षित की गई, जबकि हमनें कमीशन के सामने सिक्खों के लिए सिर्फ एक सीट आरक्षित करने की मांग की थी, जबकि होना यह चाहिए था कि दो सीटें जम्मू से और दो सीटें कश्मीर घाटी से सिक्खों के लिए आरक्षित की जानी चाहिए थी।
इसके साथ वेबदुनिया से बातचीत में जगमोहन सिंह रैना आरोप लगाते है कि परिसीमन आयोग ने जानबूझकर सीटों का बंटवारा ऐसा किया जिससे किसी भी सीट पर सिक्खों का प्रतिनिधित्व नहीं हो सके, जबति घाटी में 137 गांवों में सिक्खों की आबादी रहती है और कुछ सीटों पर सिक्खों की संख्या 10 से 15 हजार तक है। ऐसे में जब हमको प्रतिनिधित्व नहीं तब हमने चुनाव में उतरने का फैसला किया।
बहुसंख्यक समुदाय का सिक्खों को मिलेगा समर्थन- 'वेबदुनिया' से बातचीत में जगमोहन सिंह रैना कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे है। इसमें पुलवामा जिले के त्राल विधानसभा सीट से एस पुशविंदर सिंह और श्रीनगर की सेंट्रल शाल्टेंग और बारामूला विधानसभा सीट शामिल है। इन तीनों सीटों पर सिक्खों की संख्या बड़ी संख्या में है। वह कहते हैं कि हमने बहुसंख्यक से चुनाव में समर्थन मांगा है और चुनाव में बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों का समर्थन समुदाय के सदस्यों की जीत सुनिश्चित करेगा। रैना ने कहा कि इससे कश्मीर से सकारात्मक संदेश जाएगा और यह धारणा बदलेगी कि कश्मीरी अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं और राष्ट्र विरोधी हैं।
वेबदुनिया से बातचीत में जगमोहन सिंह रैना कहते हैं कि जिन तीन सीटों पर समिति ने अपने उम्मीदवार उतारे है उन सीटों पर उम्मीदवारों की सफलता के लिए बहुसंख्यक समुदाय के समर्थन पर भरोसा कर रही है। उन्होंने बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों से आगे आकर सिख समुदाय के सदस्यों का समर्थन करने की अपील की। वह कहते हैं कि हम विधानसभा में जाने के बाद सिर्फ सिक्खों की नहीं बल्कि पूरे कश्मीर की समस्या को रखेंगे। इसमें बेरोजगारी की समस्या के साथ कश्मीर के संसाधनों पर पहले कश्मीर के हक की बात रखेंगे। इसके साथ कश्मीर में टूरिज्म के साथ स्थानीय उद्योगों (हैंडीकॉफ्ट) को बढ़ावा देने के साथ यहां के उद्योगों को बढ़ावा देने की बात रखेंगे।