नूंह (हरियाणा)। कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' में शामिल महिला यात्रियों के लिए यह सफर किसी चुनौती से कम नहीं हैं। कुछ अपने पति, बच्चों को छोड़कर आई हैं तो कुछ अन्य अपने बीमार माता-पिता को। अपनों से इस अलगाव के कारण अपराधबोध उत्पन्न होता है, लेकिन परिवार का समर्थन उन्हें इससे लड़ने का हौसला देता है। इसी के बूते कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं का साहसी समूह 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का बखूबी सामना कर रहा है।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3570 किलोमीटर की यात्रा में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मार्च करते हुए ये महिलाएं कंटेनरों में रह रही हैं और एक दिन में 20-25 किलोमीटर पैदल चल रही हैं। ये महिलाएं सशक्तिकरण और समर्थक पारिवारिक संरचनाओं की कहानियां लिख रही हैं, जो ऐसा करने के लिए उन्हें सक्षम बनाते हैं।
पांच महीने की राजनीतिक प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए कांग्रेस के इस दृढ़ संकल्प में उसका साथ देने के लिए उन्होंने इस दृढ़ इरादे और कठिन परिस्थिति का चुनाव किया है। कांग्रेस के पैदल मार्च में पूर्वोत्तर की एकमात्र महिला मणिपुर की ल्हिंकिम हाओकिप शिंगनाइसुई अपने पति और तीन बच्चों को घर छोड़कर यात्रा में शामिल हुई हैं, केरल की शीबा रामचंद्रन, जिनकी एक किशोर बेटी, बेटा और पति है और मध्य प्रदेश की प्रतिभा रघुवंशी हैं जिनके पिता एक आंख की सर्जरी के बाद अब स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, भी मार्च करने वाली महिलाओं में शामिल हैं।
अपने बच्चों से अलगाव के अपराधबोध से उबर रहीं रामचंद्रन ने एक दिन खुद को एक पेट्रोल पंप के शौचालय में बंद कर लिया, पानी चालू किया और खूब रोईं। इसकी वजह यह थी कि उनकी किशोर बेटी ने फोन करके पूछा था कि वह अपने पिता से सैनिटरी नैपकिन खरीदने के लिए कैसे कह सकती है और कांग्रेस कार्यकर्ता की मां के लिए यह संभालना बहुत मुश्किल था। उन्होंने कहा, मेरी बेटी को यात्रा पर जाने के लिए छोड़ना मेरे जीवन का सबसे कठिन निर्णय था। हम बेल्लारी में पैदल मार्च कर रहे थे जब उसने रोते हुए मुझे फोन किया।
रामचंद्रन (47) ने तब अपनी बेटी को फोन पर समझाया और इस मुश्किल सवाल से बाहर निकलने को कहा। रामचंद्रन ने कहा, उस वक्त मेरे अंदर की मां ने खुद को बेबस और लाचार पाया। हालांकि अब मैं इस अपराधबोध से उबर रही हूं।
उन्होंने बताया, बाद में मैंने उसके पिता को फोन किया और उसे पसंदीदा सूप पिलाने और बेटी के लिए सैनिटरी नैपकीन खरीदने को कहा। उन्होंने कहा कि उसके पति भी दोनों बच्चों के लिए मां की भूमिका निभा रहे हैं। उनकी बेटी नौवीं कक्षा में तो बेटा 20 साल का है, जो काम करता है।
कई महिलाओं ने कहा कि नफरत का सामना करने के लिए उनके दृढ़ विश्वास का पालन करने का विकल्प स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि यात्रा के 100 से अधिक दिनों में अगर उन्हें मौका दिया गया तो वे राहुल गांधी के नेतृत्व में इसे फिर से करेंगी और कहा कि उनका डरो मत का नारा उन्हें मीलों दूर तक ले जाता है।
शिंगनैसुई, जिन्हें उनके कांग्रेस सहयोगी किम कहते हैं, ने कहा कि उनके सबसे बड़े बेटे ने उन्हें प्रोत्साहित किया और कहा कि उन्हें अवश्य जाना चाहिए। उन्होंने कहा, उसने मुझे यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित किया। मैं उन्हें पांच महीने तक छोड़ने को लेकर आशंकित थी, लेकिन मेरे बच्चों और पति ने मुझे ताकत दी।
48 वर्षीय कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा, भीड़ में किसी ने मुझे पीछे से धक्का दे दिया। मेरे पैर में चोट आई थी। मेरे वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह मुझे अस्पताल लेकर गए जहां डॉक्टर मेरे पैर पर प्लास्टर चढ़ाना चाहते थे, लेकिन मैंने मना कर दिया। पांच दिन बाद किम फिर से यात्रा में शामिल हुईं और वह थोड़ी दूर चलती हैं और कुछ देर यात्रा के साथ चल रही एंबुलेंस में रहती हैं।
एक कट्टर कांग्रेसी किम ने इस साल की शुरुआत में मणिपुर विधानसभा चुनाव सैकुल निर्वाचन क्षेत्र से अपने पिता के खिलाफ लड़ा था, जो भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा विधायक थे। हालांकि दोनों एक निर्दलीय उम्मीदवार से चुनाव हार गए। उन्होंने कहा, मेरे लिए कांग्रेस समावेशिता और एकता की पार्टी है। ऐसे समय में जब शासक केवल हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के बारे में बात कर रहे हैं, यह यात्रा अनिवार्य थी।
प्रतिभा रघुवंशी, जो कन्याकुमारी से यात्रा में साथ-साथ चल रही हैं, ने कहा कि वह इस दुविधा में थीं कि यात्रा पर आएं या नहीं क्योंकि उनके पिता की आंख का गंभीर ऑपरेशन हुआ था और वह अब भी इससे उबर रहे हैं। रघुवंशी (40) ने कहा, मैं अविवाहित हूं और मैं अपने माता-पिता एवं भाई के साथ रहती हूं। मेरा भाई अन्य जिले में काम करता है और घर आता-जाता रहता है। मैं अपने पिता के साथ रहना चाहती थी क्योंकि मेरी मां उतनी पढ़ी-लिखी नहीं हैं और एक दिन में उन्हें 12-13 बार आंख में दवा डालनी होती है।
रघुवंशी मध्य प्रदेश के खंडवा से हैं। उन्होंने कहा, मैं अपने दोस्तों से इस बारे में बात कर रही थी तभी मेरी मां ने इस बारे में सुन लिया और मेरे पिता को इस बारे में बताया। मेरे पिता ने चार्ट बनाया और सारी दवाइयों की सूची तैयार की और मुझे आश्वस्त किया कि सब हो जाएगा। उन्होंने कहा कि देश में जो नफरत और खाई पैदा हुई है उसने उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया कि प्यार और एकता फैलाने की जरूरत है।
रमेश ने कहा, महिला भारत यात्री और महिला सेवा दल की स्वयंसेविकाएं 100 दिनों में 2800 किलोमीटर की दूरी तय करने के अपने धीरज और दृढ़ता की भावना के लिए विशेष प्रशंसा की पात्र हैं। उन्होंने इसे कर दिखाया है और अब भी उनमें वही उत्साह और जोश है तथा वे कांग्रेस पार्टी की भविष्य की भारत जोड़ो यात्राओं में भाग लेने को लेकर आशान्वित हैं।
महिलाओं ने कहा कि वे श्रीनगर तक चलने के लिए दृढ़ हैं, जहां वे तिरंगा फहराएंगी। कन्याकुमारी में सात सितंबर को शुरू हुई यात्रा ने आठ राज्यों- तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान का सफर तय किया है और अब हरियाणा से गुजर रही है। यात्रा के जनवरी के अंत तक समाप्त होने की उम्मीद है।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)