नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मामले में बुधवार को खंडित निर्णय सुनाया। अदालत के एक न्यायाधीश ने इस प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि यह असंवैधानिक नहीं है। खंडपीठ ने पक्षकारों को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने की छूट दी।
खंडपीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदत्त यह अपवाद असंवैधानिक नहीं हैं और संबंधित अंतर सरलता से समझ में आने वाला है।
याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) के तहत वैवाहिक बलात्कार के अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह अपवाद उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है।
इस अपवाद के अनुसार, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है, तो उसके पति का उसके साथ यौन संबंध बनाना या यौन कृत्य करना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। न्यायमूर्ति शकधर ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि जहां तक मेरी बात है, तो विवादित प्रावधान- धारा 376 (ई) और धारा 375 का अपवाद दो- संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन है और इसलिए इन्हें समाप्त किया जाता है। उन्होंने कहा कि उनकी घोषणा निर्णय सुनाए जाने की तारीख से प्रभावी होगी।
बरहाल, न्यायमूर्ति शंकर ने कहा कि मैं अपने विद्वान भाई से सहमत नहीं हो पा रहा हूं। उन्होंने कहा कि ये प्रावधान संविधान की धाराओं 14, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन नहीं करते। उन्होंने कहा कि अदालतें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका के दृष्टिकोण के स्थान पर अपने व्यक्तिपरक निर्णय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकतीं और यह अपवाद आसानी से समझ में आने वाले संबंधित अंतर पर आधारित है।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा इन प्रावधानों को दी गई चुनौती को बरकरार नहीं रखा जा सकता। केंद्र ने इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए अदालत से फरवरी में और समय देने का आग्रह किया था, जिसे पीठ ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि मौजूदा मामले को अंतहीन रूप से स्थगित करना संभव नहीं है। केंद्र ने 2017 के अपने हलफनामे में इन याचिकाओं का विरोध किया था।
कार्यकर्ताओं ने बताया निराशाजनक : दूसरी ओर हाई को इस फैसले को कुछ महिला कार्यकर्ताओं ने 'निराशाजनक' बताते हुए उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय इस मामले में 'अधिक समझदारी' दिखाएगा। महिला कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि मौजूदा प्रावधान बलात्कार पीड़ितों की एक श्रेणी के खिलाफ भेदभावकारी हैं। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की सदस्य कविता कृष्णन ने कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला निराशाजनक और परेशान करने वाला है। कानूनी मुद्दा काफी स्पष्ट है और यह बलात्कार पीड़ितों की एक श्रेणी - पत्नियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। मुझे उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस शर्मनाक कानून को हटाने के लिए जरूरी साहस और स्पष्टता दिखाएगा।
महिला समूह सहेली ट्रस्ट की सदस्य वाणी सुब्रमण्यम ने सवाल किया कि अगर घरेलू हिंसा अपराध है तो वैवाहिक बलात्कार किस प्रकार अपराध नहीं है। उसने कहा कि किसी महिला की शादी हो गई तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसने हमेशा के लिए सहमति दे दी है।
इस बीच बलात्कार विरोधी कार्यकर्ता योगिता भयाना इस बात को लेकर संतुष्ट हैं कि कम से कम वैवाहिक बलात्कार मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई है। उनका मानना है कि इस मामले को उच्चतम न्यायालय भेज दिया गया है, इसलिए इस मामले पर विस्तृत चर्चा होगी।
उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि इसे उच्चतम न्यायालय की पीठ के पास भेजा गया है क्योंकि अब आदेश निष्पक्ष होगा। इस विषय को लेकर बहस शुरू हो गई है। एक साल पहले तक लोग इस बारे में बात भी नहीं कर रहे थे।