नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव, साल 2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस के बीच 4 सेमीफाइनल मुकाबलों में से पहला होगा तथा इसमें लोकसभा की सदस्यता से राहुल गांधी को अयोग्य ठहराए जाने के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए सहानुभूति की धारणा की भी परीक्षा होगी। इस बीच एक ओपिनियन पोल में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की गई।
इस साल कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। माना जा रहा है कि इन चुनावों के नतीजे 2024 के लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे। 4 राज्यों में कुल मिलाकर 93 लोकसभा सीट हैं, जो लोकसभा की कुल सीट का 17 प्रतिशत है।
कर्नाटक में कांग्रेस का वोट शेयर 2013 के 36.6 प्रतिशत से बढ़कर 2018 के विधानसभा चुनाव में 38 प्रतिशत हो गया, लेकिन सीट संख्या 122 से घटकर 78 रह गई। दूसरी ओर, भाजपा का वोट शेयर कांग्रेस की तुलना में मामूली रूप से कम था, लेकिन उसने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ 36.2 प्रतिशत वोट हासिल किया और 104 से अधिक सीट हासिल करने में कामयाबी हासिल की।
हालांकि 224 सदस्ईय विधानसभा में सामान्य बहुमत के लिए उसके पास 9 सीट कम थीं। भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 40 सीट जीती थीं। भाजपा के पास वर्तमान में 119 सीटें हैं जबकि कांग्रेस के पास 75 सीट हैं। जद (एस) के पास 28 विधायक हैं, जबकि 2 सीटें खाली हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि कर्नाटक के चुनाव संकेत देंगे कि राजनीतिक हवा किस तरफ बह रही है, लेकिन किसी को भी परिणाम से विचलित या गदगद नहीं होना चाहिए, क्योंकि राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर चुनावों में मुद्दे अलग-अलग होते हैं।
राजनीतिक टिप्पणीकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर संजय के. पांडे ने कहा कि कर्नाटक चुनाव 2024 के चुनावों से पहले 4 सेमीफाइनल में से पहला होगा। हालांकि, उन्होंने परिणामों में ज्यादा नहीं पड़ने की बात भी कही, क्योंकि राज्य के चुनाव अक्सर अलग-अलग मुद्दों पर निर्भर होते हैं।
पांडे ने कहा कि भाजपा से ज्यादा यह कांग्रेस के लिए परीक्षा है कि क्या वह 2024 के फाइनल से पहले उसे कड़ी टक्कर दे सकती है। कर्नाटक में मुकाबला काफी हद तक भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन अतीत में जद (एस) ने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंकाया भी है। कुछ मौकों पर सत्ता की चाबी उसके पास रही है।
कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के कांग्रेस के उम्मीदवारों-सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद पिछले साल राज्य में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा सफल रही और इसके बाद से कांग्रेस सही रुख अपना रही है।
पार्टी ने प्रजा ध्वनि यात्रा नामक एक राज्यव्यापी यात्रा का आयोजन किया है जिसका नेतृत्व पार्टी कीप्रदेश इकाई के अध्यक्ष शिवकुमार और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धरमैया ने संयुक्त रूप से किया है। कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा को बूस्टर डोज करार दिया है, लेकिन क्या यह कर्नाटक जैसे चुनावी राज्यों में पार्टी को नया जीवन प्रदान करेगी, यह लाख टके का सवाल है। वहीं एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह होगा कि क्या कांग्रेस, राहुल गांधी के लोकसभा से अयोग्य ठहराए जाने के बाद सहानुभूति को भुना सकती है और क्या यह उसके लिए चुनावी फायदा साबित होगा।
कांग्रेस कर्नाटक में अब तक अपने स्थानीय नेतृत्व के दम पर चुनाव लड़ती दिख रही है और राज्य से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भ्रष्टाचार उसके प्रचार का केंद्रीय विषय बना हुआ है। यह चुनाव देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई भी है, क्योंकि कलबुर्गी जिले से ताल्लुक रखने वाले कन्नडिगा एम मल्लिकार्जुन खरगे उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
भाजपा के लिए भी, यह एक महत्वपूर्ण चुनाव है, क्योंकि अगर वह राज्य में सत्ता बनाए रखने में कामयाब रहती है तो अन्य दक्षिणी राज्यों में भी सत्ता के लिए उसके प्रयास को बल मिल सकता है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कर्नाटक में कई परियोजनाओं की शुरुआत किए जाने के बीच भाजपा को भरोसा है कि प्रधानमंत्री की अपील और राज्य में 'डबल इंजन' सरकार को जारी रखने का उनका आह्वान उसे कांग्रेस पर बढ़त दिलाएंगे।
एक ऐसे राज्य में जहां कांग्रेस संगठनात्मक रूप से मजबूत बनी हुई है और मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि विपक्ष की चुनौती को कम करने के लिए बड़े कारक स्थानीय मुद्दों पर भारी पड़ते हैं, जैसा कि कई विधानसभा चुनावों में देखा गया है। उसका मानना है कि उसकी अनुशासित संगठनात्मक मशीनरी की वजह से वह टिकट वितरण को लेकर असंतोष और आंतरिक प्रतिद्वंद्विता से पैदा स्थिति से निपटने में कांग्रेस की तुलना में बेहतर स्थिति में होगी।
भाजपा के लिए राह आसान नहीं : लोकनीति-सीएसडीएस के सह-निदेशक और राजनीतिक वैज्ञानिक संजय कुमार ने कहा कि सत्तारूढ़ भाजपा को कर्नाटक में कांग्रेस से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और राज्य में लड़ाई किसी भी तरह से एकतरफा नहीं होने जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल है, क्योंकि भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। लेकिन फिर भी जो चीज भाजपा के पक्ष में जाती है, वह विभाजित विपक्ष है। हालांकि कुमार ने कहा कि कर्नाटक चुनाव के नतीजों का 2024 के चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन इतना अच्छा नहीं रहा था। कांग्रेस का वोट शेयर भाजपा के मुकाबले काफी ज्यादा था। लेकिन देखिए 2019 के लोकसभा चुनाव में क्या हुआ। राज्य की 28 लोकसभा सीट में से 25 पर भाजपा ने जीत दर्ज की।
जेएनयू के सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर मनींद्र नाथ ठाकुर ने कहा कि अगर परिणाम का अंतर बड़ा होता है, तो इससे 2024 के लिए एक बड़ा संदेश हो सकता है, लेकिन अगर यह एक करीबी मुकाबला होता है तो आम चुनावों के लिए नतीजों में बहुत कुछ नहीं पढ़ा जा सकता।
उन्होंने कहा कि हालांकि यह चुनाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। निर्वाचन आयोग ने बुधवार को घोषणा की कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव 10 मई को एक ही चरण में होगा और मतों की गिनती 13 मई को होगी।
इस बीच एबीपी न्यूज-सी वोटर के एक ओपिनियन पोल में बुधवार को कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की गई। इसके अनुसार कांग्रेस को 115-127 सीट मिलने की संभावना है और वह कुल वोट शेयर का 40.1 प्रतिशत हासिल कर सकती है।
इसमें कहा गया है कि भाजपा को 34.7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 68-80 सीट मिलने का अनुमान है जबकि जद (एस) के 17.9 प्रतिशत और 23-35 सीट के अपेक्षाकृत कम वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रहने का अनुमान है।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta