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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 11 अक्टूबर 2021 (15:18 IST)

एक्सप्लेनर: देश में बिजली संकट के पीछे की पूरी कहानी, 6 प्वाइंट से समझें कोयला संकट का पूरा मामला

एक्सप्लेनर: देश में बिजली संकट के पीछे की पूरी कहानी, 6 प्वाइंट से समझें कोयला संकट का पूरा मामला - Explainer: The whole story behind the power crisis in the country
त्यौहारों के सीजन में देश बड़े बिजली संकट के मुहाने पर आ खड़ा हो गया है। बिजली संकट का सबसे बड़ा कारण देश में बिजली उत्पादन करने वाले थर्मल पावर प्लांट्स के पास कोयला नहीं होना बताया जा रहा है। देश में कोयले से चलने वाले 135 पॉवर प्लांट्स है जिनमें अधिकांश के पास तीन से चार दिन का कोयला ही शेष बचा है। बिजली संकट को देखते हुए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को भी आगे आकर सफाई भी देनी पड़ी है।

आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि देश रातों-रात इतने बड़े बिजली संकट के मुहाने पर खड़ा हो गया और आखिर क्यों थर्मल पॉवर प्लांट्स के पास कोयले की कमी हो गई यह अब सबसे बड़ा सवाल बन गया है।
  
1- नियमों को ताक पर रख कोल स्टॉक का मिस मैनेजमेंट- देश के 135 थर्मल पॉवर प्लांट्स कोयले की कमी से जूझ रहे है, इन थर्मल पॉवर प्लांस्ट की अधिकांश इकाईयां बंद है या यह पॉवर प्लांट्स अपनी क्षमता से आधी झमता पर चल रहे है। मध्यप्रदेश के चारों थर्मल पॉवर प्लांट अमरकंटक, सतपुडा थर्मल पॉवर स्टेशन (सारणी), संजय गांधी थर्मल पॉवर स्टेशन (पाली), खंडवा में सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट अपनी फुट कैपिसिटी की तुलना में सिर्फ 44 फीसदी क्षमता से चल रहे है। वहीं उत्तर प्रदेश में चार बिजली घर की आठ इकाईयां कोयला नहीं मिलने के चलते बंद है। 
 
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर फेडरेशन के चैयरमैन शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि देश के अधिकतर बिजली घरों में कोयला भंडारण के मापदंडों का पालन नहीं किया गया जिससे अब कोयले की कमी हो गई है। केंद्रीय विद्युत प्रधिकरण का मापदंड है कि बारिश के महीनों से पहले यानि अप्रैल से जून के बीच में ताप विद्युत बिजली घर अपनी जरुरत के हिसाब से 20 दिन के एंडवास कोयले का भंडारण रखे क्योंकि जुलाई से सितंबर के बीच बारिश का महीना रहता है।

ऐसे में अब जब अधिकांश बिजली घरों में तीन-चार दिनों के कोयला शेष रहने के बात आ रही है तो साफ है कि केंद्रीय विद्युत प्रधिकरण के तय मापदंड का पालन नहीं किया जा रहा है। ऐसे में अप्रैल से जून के बीच कोयले का भंडारण नहीं करने के लिए सीधे तौर पर प्रबंधन का मिस मैनेजमेंट दोषी है।  
 
2- बारिश का कोल उत्पादन पर असर: थर्मल पॉवर स्टेशनों में कोयले की कमी के पीछे कोयला खदानों में पानी भरने को भी बड़ा कारण बताया जा रहा है। ताप विद्युत संयंत्रों में कोयला की कमी के सवाल पर शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि यह सच हैं कि पानी भरने से अधिकांश कोयला खदानें बंद है।

बारिश का पानी ईस्टर्न कोल्ड फीड और सेंट्रल कोल्ड फील्ड में ज्यादा चला गया है जिसमें वहां कोयले का उत्पादन बंद है और जिसका असर कोयले की सप्लाई पर भी पड़ा है। वहीं शैलेंद दुबे आगे कहते हैं कि यह भी सच है कि पानी कोई पहली बार नहीं बरसा है और वेस्टर्न कोल फील्ड में पानी नहीं भरा है लेकिन मध्यप्रदेश के बिजली घर भी बड़े पैमाने पर बंद है जो बता रहा है कि कोयला के भंडारण का बड़ा कारण मिस मैनेजमेंट है।
 
3-कोल इंडिया का बिजली कंपनियों पर बकाया- देश में कोयले की सप्लाई करने वाले कोल इंडिया से कोयले की सप्लाई नहीं होने को भी कोयला संकट का बड़ा कारण माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि सरकारी क्षेत्र की बिजली कंपनियां पर कोल इंडिया का 21 हजार करोड़ से अधिक का बकाया है। जिसके चलते कोल इंडिया ने कोयले की सप्लाई बंद कर दी है। वर्तमान में कोल इंडिया अभी उनको ही कोयला दे रहा है जिनका एंडवास पैमेंट है, जिनका ड्यूज नहीं है जिसके चलते कोयला संकट खड़ा हुआ है।
 
4-विदेश से आयात होने वाले कोयला महंगा-वहीं बाहर से आयात होने वाले कोयले के दामों को लगभग दोगुनी बढ़ोत्तरी को भी कोयला संकट का बड़ा कारण बताया जा रहा है। कोयले के दाम में बढ़ने से प्राइवेट कंपनियां बिजली के दाम बढ़ाने की मांग की लेकिन इसकी अनुमति नहीं मिलने से बिजली का उत्पादन बंद है। 
 
5-कोयले की फिजूलखर्ची- थर्मल पॉवर प्लांट में कोयले की फिजूलखर्ची भी कोयले की कमी क बड़ा कारण है। मध्यप्रदेश के सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट में एक यूनिट बिजली पैदा करने में 600 ग्राम कोयले की जगह करीब 800 ग्राम कोयले का उपयोग किया जा रहा है जो कि कोयला की खपत का पूरी तरह मिस मैनेजमेंट है।
 
6-बिजली की डिमांड बढ़ना- बिजली संकट के लिए बिजली की मांग को बढ़ने को भी बड़ा कारण माना जा रहा है।  बताया जा रहा है कि कोरोना महामारी के चलते उत्पादन की जो इकाईयां बंद पड़ी थी उनके फिर से चालू होने से बिजली की डिमांड में इजाफा हुआ है और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बिजली की डिमांड 16 से 18 फीसदी तक बढ़ गई है।
 
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर फेडरेशन के चैयरमैन शैलेंद्र दुबे अब डिमांड बढ़ने से स्थिति बिगड़ गई है। जैसे उत्तरप्रदेश में वर्तमान में 16 से 18 हजार मेगावट बिजली की डिमांड है जिससे बिजली का संकट खड़ा हो गया है। जबकि दूसरी ओर राज्य के अधिकांश थर्मल पॉवर प्लांट कोयले का स्टॉक नहीं होने से या तो बंद है या बंद होने के कगार पर पहुंच गए है। राज्य की परीक्षा और हरदुआगंज थर्मल पॉवर प्लांट में कोयला लगभग समाप्त हो चुका है जबकि ओबरा और अनपरा में दो से ढाई दिन का कोयला बचा है। 
 
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