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Last Modified: मंगलवार, 20 नवंबर 2018 (18:46 IST)

सिख दंगों पर 34 साल बाद फैसला, जानें 1 नवंबर 84 को दिल्ली के महिपालपुर में क्या हुआ था...

सिख दंगों पर 34 साल बाद फैसला, जानें 1 नवंबर 84 को दिल्ली के महिपालपुर में क्या हुआ था... - decision on Sikh roits after 34 years, know everything about Mahipalpur incident
31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके ही सिख अंगरक्षकों द्वारा गोली मारकर हत्या किए जाने के बाद राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश में सिखों के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे। इस हिंसा में देशभर में करीब 3000 सिखों की मौत हो गई थी। अकेले राजधानी दिल्ली में तब 2000 निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया था। 
 
एक नवंबर 1984 की सुबह संगतसिंह अपने चार भाइयों के साथ महिपालपुर इलाके में स्थित अपनी दुकान पर बैठे थे। तभी करीब 500 लोगों की भीड़ ने उनकी दुकान पर हमला कर दिया। दंगाइयों ने दुकान में रखा सामान लूट लिया और पांचों भाइयों पर हमला कर दिया। 
 
भीड़ ने संगतसिंह, अवतारसिंह और हरदेवसिंह को आग लगा दी। दो अन्य भाइयों संतोखसिंह व कृपालसिंह पर भी हमला किया गया। अवतार और हरदेव की मौत हो गई, जबकि संगत गंभीर रूप से जख्मी हो गए। उनकी जान तो बच गई, लेकिन वे इतने डर गए कि दिल्ली छोड़कर पंजाब चले गए। 
 
पुलिस ने मामला दर्ज किया, लेकिन... : पीड़ितों के भाई संतोखसिंह की शिकायत पर पुलिस ने मामला तो दर्ज किया, लेकिन 1994 में सबूतों के अभाव में मामला बंद कर दिया था, लेकिन 2014 में केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद गृहमंत्री राजनाथसिंह ने सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन किया था। एसआईटी ने मामले की फिर से जांच शुरू की। 
 
एसआईटी ने आरोप लगाया था कि नरेश सेहरावत और यशपालसिंह ने दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर में एक नवम्बर 1984 को दो लोगों की हत्या की थी और तीन लोगों को जख्मी हालत में तब छोड़ा था, जब उन्हें लगा था कि उनकी मौत हो गई है। कई लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया था। अदालत ने इनमें से नरेश को उम्रकैद की सजा सुनाई, जबकि यशपाल को फांसी की सजा सुनाई है।
 
विज्ञापन के बाद सामने आए : संगत तो किसी भी कीमत पर दिल्ली नहीं लौटना चाहते थे, लेकिन 2014 में जब केन्द्र सरकार ने विशेष जांच दल गठित कर उन मुकदमों को खोलने का फैसला किया, जिनमें निष्पक्ष जांच नहीं की गई थी। इसी मकसद से 8 अगस्त और 11 नवंबर 2016 को दिल्ली-पंजाब के बड़े अखबारों में विज्ञापन देकर पीड़ितों को सामने आने की अपील की गई थी। तब संगत के रिश्तेदारों ने उन्हें समझाया और उनका हौसला बढ़ाया तब कहीं जाकर वे एसआईटी के सामने पेश होने के तैयार हुए। संगत सिंह की मेहनत रंग लाई और 34 साल बाद उन्हें न्याय मिला। 
 
75 साल के संगत ने जैसे ही अदालत का फैसला सुना, उनकी बूढ़ी आंखों से आंसू छलक गए। फैसले बाद उन्होंने कहा कि उनकी आंखों में फिर से रोशनी की किरण फूटी है।
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