किन वजहों के आधार पर CJI के खिलाफ महाभियोग
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हमने कदाचार के पांच आधार पर भारत के चीफ जस्टिस को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव पर सात विपक्षी पार्टियों के 71 सांसदों के दस्तखत भी हैं। आइए जानें उन पांच कारणों के बारे में जिन्हें आधार बना कर कांग्रेस ने सीजेआई को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया है।
1- खराब आचरण
विपक्ष ने सीजेआई के खिलाफ पहला आरोप खराब आचरण का लगाया है। कांग्रेस का आरोप है कि सीजेआई दीपक मिश्र का व्यवहार उनके पद के अनुरूप नहीं है। कांग्रेस का कहना है कि जब से वह चीफ जस्टिस बने हैं तब से कई मौकों पर उनके काम करने के तरीके पर सवाल उठे हैं। कांग्रेस का आरोप है कि कई मामलों में वह सुप्रीम कोर्ट के बाकी जजों की राय तक नहीं लेते।
2- प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट से फायदा उठाना
विपक्ष ने सीजेआई पर दूसरा आरोप प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट से फायदा उठाने का लगाया है। विपक्ष का आरोप है कि सीजेआई दीपक मिश्रा ने इस मामले में दाखिल सभी याचिकाओं को प्रशासनिक और न्यायिक परिपेक्ष्य में प्रभावित किया क्योंकि वह प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच की अगुवाई कर रहे थे। ऐसा करके उन्होंने जजों के आचार संहिता (code of conduct) और आदर्शों की अवहेलना की।
3- रोस्टर में मनमाने तरीके से बदलाव
विपक्ष ने सीजेआई दीपक मिश्रा पर सुप्रीम कोर्ट के रोस्टर में मनमाने तरीके से बदलाव करने का आरोप लगाया है। विपक्ष का कहना है कि सीजेआई ने कई अहम केसों को दूसरे बेंच से बिना कोई समुचित कारण बताए दूसरे बेंच में शिफ्ट कर दिया। कई अहम मामले जो दूसरी बेंच में विचाराधीन थे, 'मास्टर ऑफ रोस्टर' के तहत सीजेआई ने उन मामलों को भी अपनी बेंच में ट्रांसफर कर लिया।
4- अहम केसों के बंटवारे में भेदभाव का आरोप
विपक्ष ने सीजेआई दीपक मिश्रा पर अहम केसों के बंटवारे में भेदभाव का आरोप भी लगाया है। दरअसल, सीबीआई स्पेशल कोर्ट के जज बीएच लोया का केस सीजेआई ने सीनियर जजों के होते हुए जूनियर जज अरुण मिश्रा की बेंच को दे दिया था। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों ने जब न्यायिक व्यवस्था को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, तब इस मामले को प्रमुखता से उठाया भी था।
5- जमीन अधिग्रहण का आरोप
विपक्ष ने सीजेआई पर पांचवां आरोप जमीन अधिग्रहण का लगाया है। विपक्ष के मुताबिक, जस्टिस दीपक मिश्रा ने 1985 में एडवोकेट रहते हुए फर्जी एफिडेविट दिखाकर जमीन का अधिग्रहण किया था। एडीएम के आवंटन रद्द करने के बावजूद ऐसा किया गया था। हालांकि, साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद उन्होंने जमीन सरेंडर कर दी थी लेकिन 2012 तक जमीन उनके ही पास थी।