Puri Rath Yatra:ओडिशा की तटीय तीर्थनगरी पुरी स्थित 12वीं सदी के विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) से जय जगन्नाथ और हरिबोल के उद्घोषों के साथ मंगलवार सुबह रथयात्रा प्रारंभ हुई। बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों को खींचकर 2.5 किलोमीटर दूर स्थित उनके वैकल्पिक निवास स्थान गुंडिचा मंदिर की ओर लेकर चले।
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के लगभग 45 फुट ऊंचे लकड़ी के तीन रथों को हजारों पुरुष खींच रहे थे, जबकि लाखों लोग उसे स्पर्श करने, प्रार्थना करने या विशाल रथयात्रा को देखने के लिए उमड़ पड़े। राज्यपाल गणेशी लाल और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रमुख जगन्नाथ रथ को जोड़ने वाली रस्सियों को खींचकर रथयात्रा की प्रतीकात्मक रूप से शुरूआत की।
पीतल के झाल और ढोल की आवाजों के बीच, पुजारियों ने देव रथों को तब घेर लिया जब रथयात्रा इस मंदिर शहर की मुख्य सड़क से धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। जय जगन्नाथ और हरिबोल के उद्घोषों के बीच श्रद्धालु रथयात्रा की एक झलक पाने के लिए उत्सुक थे। रथयात्रा को अधिकांश हिंदुओं, विशेष रूप से वैष्णवों द्वारा एक पवित्र अवसर माना जाता है।
वार्षिक रथयात्रा के लिए इस शहर में 10 लाख भक्तों के जुटने का अनुमान है। अधिकांश श्रद्धालु ओडिशा और पड़ोसी राज्यों से थे, वहीं विदेशों से भी कई लोग इस विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा में शामिल होने के लिए जुटे हैं। इससे पहले दिन में, पुरी के गजपति महाराजा दिव्यसिंह देव ने भगवान जगन्नाथ और उनके दो भाई-बहनों के रथों को श्रद्धालुओं द्वारा खींचे जाने से पहले उन्हें साफ करते हुए झाड़ू लगाई।
सफेद पोशाक पहने और एक चांदी की पालकी में ले आए गए पुरी राजघराने के दिव्यसिंह देव बारी-बारी से रथों पर चढ़े और एक सुनहरे हत्थे वाली झाड़ू का उपयोग करके रथों के फर्श को साफ किया। इस दौरान पुजारियों ने फूल और सुगंधित जल का छिड़काव किया। रथयात्रा शुरू होने से पहले विभिन्न समूहों ने कीर्तन किया और रथ के सामने नृत्य किया।
रथयात्रा को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन व पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। वार्षिक रथजात्रा, भगवान जगन्नाथ के नौ दिवसीय प्रवास का प्रतीक है, हर साल हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ (जून-जुलाई) के महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को आयोजित की जाती है।
राजा द्वारा रथों की सफाई किए जाने के बाद और महल में जाने के बाद, भूरे, काले और सफेद रंग के लकड़ी के घोड़ों को तीन रथों में लगाया गया और सेवादारों ने श्रद्धालुओं को रथ को सही दिशा में खींचने के लिए निर्देशित किया।
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के प्रमुख प्रशासक रंजन कुमार दास ने कहा कि भगवान की सेवा करने वाले सेवकों सहित सभी के बीच उत्साह स्पष्ट था और अनुष्ठान समय से पहले पूरे हो गए।
बड़े भाई भगवान बलभद्र सबसे पहले मंदिर से बाहर आए, उसके बाद देवी सुभद्रा और बाद में स्वयं भगवान जगन्नाथ बाहर आए। भगवान बलभद्र तालध्वज रथ पर विराजमान हुए, वहीं भगवान जगन्नाथ नंदीघोष नामक रथ पर विराजमान हुए, देवी सुभद्रा दर्पदलन रथ पर विराजमान हुईं। रथयात्रा की शुरुआत के समय पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती भी मौजूद थे।
अधिकारियों ने कहा कि रथ खींचने के दौरान कुछ लोग मारीचकोट चौक पर गिर गए जब वहां से भगवान बलभद्र का रथ गुजर रहा था। उन्होंने बताया कि इनमें से 5 को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया। उन्होंने बताया कि इन व्यक्तियों को भीड़भाड़ वाले रास्ते से रोगियों को चिकित्सा केंद्रों तक ले जाने के लिए बनाए गए एक विशेष गलियारे का उपयोग करके अस्पताल पहुंचाया गया।
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और अन्य लोगों ने रथयात्रा के अवसर पर श्रद्धालुओं को बधाई दी। गर्म और उमसभरे मौसम को देखते हुए जिला प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta