• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Central government's big statement regarding electoral bond scheme
Written By
Last Modified: नई दिल्ली , बुधवार, 1 नवंबर 2023 (23:47 IST)

काले धन को खत्म करना चुनावी बॉन्ड योजना का मकसद, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का बड़ा बयान

Supreme Court
Electoral Bond Scheme : केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से बुधवार को कहा कि भारत सहित लगभग हर देश चुनावों में काले धन के इस्तेमाल की समस्या से जूझ रहा है और चुनावी बॉण्ड योजना मतदान प्रक्रिया में अवैध धन के खतरे को खत्म करने का एक विवेकपूर्ण प्रयास है।
 
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्‍यीय संविधान पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत इस विशेष योजना को काले धन की समस्या से निपटने की दिशा में एक एकल प्रयास के रूप में नहीं ले सकती है।
 
मेहता ने डिजिटल भुगतान और वर्ष 2018 और 2021 के बीच 2.38 लाख ‘शेल कंपनियों’ के खिलाफ कार्रवाई सहित काला धन से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों पर प्रकाश डाला। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ के समक्ष मेहता ने कहा, आम तौर पर चुनावों और राजनीति में और विशेषकर चुनावों में काले धन का इस्तेमाल होता है।
 
हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर प्रत्‍येक देश द्वारा देश-विशिष्ट मुद्दों से निपटा जा रहा है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है। पीठ राजनीतिक दलों के वित्त पोषण के लिए चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है।
 
उन्होंने अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, देश की चुनावी प्रक्रिया को चलाने में बेहिसाब नकदी (काला धन) का इस्तेमाल देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। डिजिटलीकरण की भूमिका का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि भारत में लगभग 75 करोड़ मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और हर तीन सेकंड में एक नया इंटरनेट उपयोगकर्ता जुड़ रहा है।
 
उन्होंने कहा, भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग सात गुना और चीन की तुलना में तीन गुना है। मेहता ने कहा कि कई तरीकों को आजमाने के बावजूद प्रणालीगत विफलताओं के कारण काले धन के खतरे से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सका है, इसलिए वर्तमान योजना बैंकिंग प्रणाली और चुनाव में सफेद धन को सुनिश्चित करने का एक विवेकपूर्ण और श्रमसाध्य प्रयास है।
 
उन्होंने अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, देश की चुनावी प्रक्रिया को चलाने में बेहिसाब नकदी (काला धन) का इस्तेमाल देश के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
 
याचिकाकर्ताओं की इस दलील का जिक्र करते हुए कि चुनावी बॉण्ड योजना से सत्ताधारी दल को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है, उन्होंने कहा, सत्तारूढ़ दल को अधिक योगदान मिलना एक परिपाटी है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने पूछा कि आपके अनुसार, ऐसा क्यों है कि सत्ताधारी दल को चंदे का एक बड़ा हिस्सा मिलता है, इसका कारण क्या है।
 
मेहता ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जो भी पार्टी सत्तारूढ़ होती है उसे ज्यादा चंदा मिलता है, हालांकि उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत जवाब है, सरकार का जवाब नहीं है। जब पीठ ने आंशिक गोपनीयता का हवाला दिया और कहा कि सत्ता में बैठे व्यक्ति के पास विवरण तक पहुंच हो सकती है, तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जानकारी पूरी तरह से गोपनीय है।
 
पीठ ने कहा, यह एक अस्पष्ट क्षेत्र है। आप ऐसा कह सकते हैं, दूसरा पक्ष इससे सहमत नहीं होगा। दिनभर चली सुनवाई के दौरान एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की बुनियादी संरचना है और राजनीतिक दलों की गुमनाम ‘कॉर्पोरेट फंडिंग’, जो अनिवार्य रूप से पक्षपात के लिए दी गई रिश्वत है, सरकार की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली की जड़ पर प्रहार करती है।
 
उन्होंने कहा कि चुनावी बॉण्ड गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग का एक साधन है जो पारदर्शिता को कमजोर करता है और अपारदर्शिता को बढ़ावा देता है। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, कंपनी अधिनियम के तहत खाते वास्तविक आय का पता लगाने के उद्देश्य से रखे जाते हैं।
 
ये आयकर खातों से अलग होते हैं। आमतौर पर कंपनी अधिनियम के तहत, मुनाफे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की प्रवृत्ति होती है, क्योंकि तब आपको बाजार में अधिक विश्वसनीयता और ऋण तक अधिक पहुंच मिलती है। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत आयकर अधिनियम में कर बचाने की प्रवृत्ति है।
 
एक अन्य हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी दिन के दौरान अपनी दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉण्ड चुनाव विशिष्ट हैं। इस पर पीठ ने कहा, यह जरूरी नहीं है। यह कहा गया कि बॉण्ड साल में कुछ निश्चित समय पर और फिर आम चुनाव से कुछ दिन पहले बेचे जाते हैं।
 
इस योजना को सरकार द्वारा दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉण्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है।
 
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल, जिन्हें लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों, केवल वही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के लिए पात्र हैं। अधिसूचना के अनुसार, चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा।(भाषा)
Edited By : Chetan Gour
ये भी पढ़ें
बांके बिहारी मंदिर मामले की याचिका खारिज, शुक्रवार को होगी अगली सुनवाई