भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर बने ‘भारतीय नागरिक संहिता’, पीएम मोदी को लिखा पत्र
जम्मू कश्मीर में धारा 370 और राममंदिर के बाद अब समान नागरिक संहिक को लागू करने को लेकर बहस तेज हो गई है। वरिष्ठ वकील और भाजपा अश्विनी उपाध्याय ने पीएम मोदी से समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग करते हुए एक पत्र लिखा है। पीएम मोदी को लिखे पत्र में अश्विनी उपाध्याय ने मांग की है कि जिस तरह पूरे देश में एक भारतीय दंड संहिता है वैसे ही भारतीय नागरिक संहिता लागू किया जाना चाहिए।
पीएम मोदी को लिख पत्र में अश्विनी उपाध्याय ने लिखा हैं कि 23 नवंबर 1948 को विस्तृत चर्चा के बाद संविधान में अनुच्छेद 44 जोड़ा गया और सरकार को निर्देश दिया गया कि सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करें। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि अलग-अलग धर्म के लिए अलग-अलग कानूनों के बजाय सभी नागरिकों के लिए धर्म जाति भाषा क्षेत्र और लिंग निरपेक्ष एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होना चाहिए। अपने तर्क के पीछे कारण देते हुए वह लिखते हैं कि अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, 1961 में बनाया गया पुलिस एक्ट, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और 1908 में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड सहित सैकड़ों अंग्रेजी कानून सभी भारतीय नागरिकों पर समान रूप से लागू हैं तो भारतीय दंड संहिता को भी लागू होना चाहिए।
भारतीय नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क -
1. इससे देश और समाज को सैकड़ों जटिल कानूनों से मुक्ति मिलेगी।
2. वर्तमान समय में लागू ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीनभावना पैदा होती है. इसलिए भारतीय नागरिक संहिता से हम हीन भावना से मुक्त हो सकेंगे।
3. ‘एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी भारतीयों पर लागू होगी और अपवाद का लाभ सभी भारतीयों को मिलेगा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई।
4. पैतृक संपति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त होगा और संपति को लेकर धर्म जाति क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी.
6. विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरांत अर्जित संपति में पति-पत्नी को समान अधिकार होगा.
7. जाति धर्म क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग कानून होने से पैदा होने वाली अलगाववादी मानसिकता समाप्त होगी और एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में हम आगे बढ़ सकेंगे.
अपने पत्र में उन्होंने भारतीय नागरिक संहिता नहीं होने से मुस्लिम समाज के अलग थलग होने का भी विस्तार से जिक्र किया गया है। अश्विनी उपाध्याय का कहना हैं धर्म के आधार पर भेदभाव गलत है उन्होंने इसे देश की एकता और अखंडता के लिए भी खतरा बताया है। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की हैं भारतीय नगारिक संहिता बनाने के लिए देश में एक राय बनाने के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। सरकार को विधि आयोग को विकसित देशों की समान नागरिक संहिता औ भारत में लागू कानूनों का अध्ययन कर दुनिया का सबसे अच्छा और प्रभावी इंडियन सिविल कोड ड्राफ्ट करने का निर्देश देना चाहिए.