आसाराम पर कसा शिकंजा, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछे सवाल
उच्चतम न्यायालय ने स्वयंभू बाबा आसाराम बापू के खिलाफ बलात्कार मामले की धीमी जांच को लेकर गुजरात सरकार से सोमवार को सवाल किए। न्यायमूर्ति एनवी रामन्ना और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि पीड़ित से अभी तक पूछताछ क्यों नहीं की गई।
पीठ ने राज्य सरकार को इस संबंध में शपथपत्र दायर करने का निर्देश दिया और मामले की आगे की सुनवाई दीपावली के बाद के लिए स्थगित कर दी।
न्यायालय ने 12 अप्रैल को गुजरात में निचली अदालत को निर्देश दिया था कि यौन हिंसा के मामले में सूरत की दो बहनों द्वारा आसाराम के खिलाफ दर्ज कराए गए मामले में अभियोजन के गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया तेज की जाए।
न्यायालय ने सूरत की अदालत को निर्देश दिया था कि कथित बलात्कार की पीडितों सहित अभियोजन के शेष 46 गवाहों के बयान दर्ज किए जाएं। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने राजस्थान और गुजरात में दर्ज यौन हिंसा के दो अलग अलग मामलों में आसाराम को जमानत देने से इन्कार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी को आसाराम की जमानत याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि उन्होंने जमानत के लिए न्यायालय के समक्ष ‘फर्जी दस्तावेज’ पेश किए। न्यायालय ने इस मामले में इन दस्तावेज को तैयार करने और कथित फर्जी दस्तावेज दाखिल करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था।
सूरत की दो बहनों ने आसाराम और उनके पुत्र नारायण साई के खिलाफ अलग अलग शिकायतों में बलात्कार और गैर कानूनी तरीके से बंधक बनाने सहित कई आरोप लगाए थे। बड़ी बहन ने आरोप लगाया था कि अहमदाबाद के निकट स्थित आश्रम में वर्ष 2001 से 2006 में प्रवास के दौरान आसाराम ने उसका यौन शोषण किया था।
राजस्थान के मामले में एक किशोरी ने आसाराम पर आरोप लगाया था कि उन्होंने जोधपुर के निकट मनाई गांव में स्थित अपने आश्रम में उसका यौन शोषण किया। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली यह किशोरी छात्रा थी और आश्रम में ही रह रही थी। आसाराम को जोधपुर पुलिस ने 31 अगस्त 2013 को गिरफ्तार किया था और तभी से वह जेल में हैं। (भाषा)