सब चंगा है, कश्मीर की पत्थरबाजी पर आंकड़ों का खेल
जम्मू। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और 5 अगस्त को राज्य के दो टुकड़े कर उसकी पहचान खत्म करने के बाद से केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में ‘सब चंगा है’ का जो राग अलाप रही थी, वह अब उसी के आंकड़ों के कारण झूठा पड़ गया है। अब उसने खुद लोकसभा में स्वीकार कर लिया है कि न ही पत्थरबाजी थमी है और न ही भारत विरोधी प्रदर्शनों पर लगाम लग पाई है।
हालांकि पत्थरबाजी और भारत विरोधी प्रदर्शनों की घटनाओं को छुपाने की खातिर आंकड़ों का सहारा जरूर लिया जा रहा है पर गृह मंत्रालय द्वारा पेश किए जाने वाले आंकड़े भी सरकार के दावों की पोल जरूर खोलते थे।
लोकसभा में पेश किए गए आंकड़़ों को ही लें। गृह मंत्रालय कहता है कि इस वर्ष 1 जनवरी से लेकर 4 अगस्त तक कश्मीर में 361 पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं। अर्थात 216 दिनों में 361 घटनाएं। इन्हीं आंकड़ों के मुताबिक, 5 अगस्त से लेकर 15 नवम्बर तक के 102 दिनों के अरसे में 190 पत्थरबाजी की घटनाएं हुई हैं। अर्थात प्रतिदिन 1.86 का औसत रहा है।
इन आंकड़ों के बाद एक बार फिर यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या सच में कश्मीर में पत्थरबाजी और भारत विरोधी प्रदर्शनों पर लगाम लग पाई है। जैसा कि केंद्र सरकार दावा करती रही है कि 370 को हटाए जाने के बाद आतंकवाद तथा भारत विरोधी तत्वों की कमर तोड़ दी गई है, लेकिन ऐसा कहीं दिख नहीं रहा है।
वर्तमान में 107 दिनों से जारी संचार माध्यमों पर रोक के कारण भी कई स्थानों पर होने वाली घटनाओं की कोई सूचना नहीं मिल पा रही है। पुलिस अधिकारी हालांकि कहते हैं कि संचार माध्यमों पर रोक का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि अन्य इलाकों में तत्काल प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिलती है, जिस कारण हालात को थामने के लिए उन्हें समय मिल जाता है। बावजूद इसके वे न ही पत्थरबाजी को रोक पा रहे हैं और न ही भारत विरोधी प्रदर्शनों को।