अहमदाबाद। भाजपा के खिलाफ गुजरात से राज्यसभा सीट का चुनाव जीतकर सांसद बने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को पार्टी का रणनीतिकार और संकटमोचक माना जाता है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लंबे समय से राजनीतिक सचिव पटेल पार्टी के सबसे शक्तिशाली पदाधिकारियों में शामिल रहे हैं। पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के केंद्र में सत्तासीन रहने के दौरान अहमद ने केंद्र सरकार में शामिल होने के पूर्व 4 प्रधानमंत्रियों के प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया था।
नेहरू-गांधी परिवार के वफादार पटेल ने संसद में 7 बार गुजरात का प्रतिनिधित्व किया है। वे भरुच से 3 बार लोकसभा सदस्य चुने गए और 4 बार राज्यसभा सदस्य बने। 67 वर्षीय पटेल के लिए 5वीं बार राज्यसभा में जगह बनाने की राह सबसे चुनौतीपूर्ण रही।
पटेल ने 44 मत हासिल करके बलवंतसिंह राजपूत को शिकस्त दी। भाजपा में शामिल होने से पहले तक राजपूत राज्य विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक थे। गुजरात में पिछले 2 दशक में पहली बार राज्यसभा सीट के लिए चुनाव हुए। अभी तक बड़े दलों के आधिकारिक उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए जाते थे।
इससे पहले मंगलवार देर रात तक चले नाटकीय घटनाक्रम में चुनाव आयोग ने चुनाव नियमों का उल्लंघन करने पर मुख्य विपक्षी दल के 2 असंतुष्ट विधायकों के वोट अमान्य घोषित कर दिए थे।
चुनाव जीतने की घोषणा के बाद अहमद पटेल ने ट्वीट किया कि यह केवल मेरी जीत नहीं है। यह धनबल और बाहुबल के धड़ल्ले से इस्तेमाल और सरकारी तंत्र के दुरुपयोग की हार है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि गुजरात में पार्टी प्रमुख कौन होना चाहिए या महापौर का चुनाव किसे लड़ना चाहिए, इस बारे में अंतिम निर्णय अक्सर पटेल का ही होता है।
अपने दम पर नेता बने पटेल एक सामाजिक कार्यकर्ता के बेटे हैं। उनका जन्म गुजरात में भरुच जिले के एक छोटे से गांव में हुआ। उन्होंने पहले युवा कांग्रेस के लिए काम किया और बाद में इसके राज्य अध्यक्ष बने। पटेल की आयु उस समय मात्र 28 वर्ष थी, जब वर्ष 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भरुच से पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा था। इस चुनाव में पार्टी ने जीत हासिल की थी।
इसके बाद उन्होंने वर्ष 1980 और 1984 में भी लोकसभा चुनाव जीते लेकिन 1980 के दशक के अंत से गुजरात में बही हिन्दुत्व की लहर के कारण भाजपा मजबूत स्थिति में आ गई, ऐसे में पटेल ने पाया कि उनके लिए सीधे चुनाव जीतना मुश्किल है। वे वर्ष 1990 में लोकसभा चुनाव हार गए थे। उन्होंने वर्ष 1993 में दिल्ली आने के लिए राज्यसभा का मार्ग चुना। उन्हें 1999, 2005 और 2011 में भी उच्च सदन में पुन: चुना गया।
गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोषी ने कहा कि पटेल मृदुभाषी हैं लेकिन वे साफ बात बोलते हैं और लाइमलाइट में आना पसंद नहीं करते। कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव के तौर पर वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने ‘संप्रग एक’ गठित करने के लिए गठबंधन करने में अहम भूमिका निभाई। उस समय कांग्रेस को भाजपा से अधिक सीटें मिली थीं।
पटेल ने सोनिया के विश्वासपात्र सहयोगी के रूप में संप्रग गठबंधन को चलाने में अहम भूमिका निभाई। वर्ष 2004 से पार्टी के 10 साल के कार्यकाल में पटेल ने गठबंधन सहयोगियों के बीच संबंधों का प्रबंधन किया। उन्होंने कांग्रेस के संसदीय सचिव, कोषाध्यक्ष और गुजरात इकाई के अध्यक्ष के तौर पर भी सेवाएं दीं। (भाषा)