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Last Modified: नई दिल्‍ली , शुक्रवार, 24 नवंबर 2023 (23:46 IST)

अडाणी-हिंडनबर्ग मामला : Supreme Court ने कहा- SEBI पर संदेह का कोई कारण नहीं, फैसला रखा सुरक्षित

Supreme Court
Adani-Hindenburg Case : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडाणी समूह के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने वाले बाजार नियामक सेबी पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है। उसने कहा कि बाजार नियामक की जांच के बारे में भरोसा नहीं करने के लायक कोई भी तथ्य उसके समक्ष नहीं है।
 
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हिंडनबर्ग रिपोर्ट में किए गए दावों को पूरी तरह तथ्यों पर आधारित नहीं मानकर चल रहा है। पीठ ने कहा कि उसके समक्ष कोई तथ्य न होने पर अपने स्तर पर विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करना उचित नहीं होगा।
 
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अडाणी-हिंडनबर्ग मामले से संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। यह मामला जनवरी में आई हिंडनबर्ग रिसर्च की एक शोध रिपोर्ट में अडाणी समूह पर शेयरों के भाव में हेराफेरी करने और धोखाधड़ी के आरोपों से संबंधित है।
 
हालांकि समूह ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया लेकिन उसकी कंपनियों के शेयरों के भाव में भारी गिरावट आ गई थी। न्यायालय ने कुछ मीडिया रिपोर्टों के आधार पर सेबी को अडाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए कहे जाने पर आपत्ति जताई। उसने कहा कि वह एक वैधानिक नियामक को मीडिया में प्रकाशित किसी बात को अटल सत्य मानने को नहीं कह सकता है।
 
पीठ ने कहा, हिंडनबर्ग रिपोर्ट में वर्णित बिंदुओं को हमें अपने-आप 'मामले की सच्ची स्थिति' मानने की ज़रूरत नहीं है। इसीलिए हमने सेबी को जांच करने का निर्देश दिया, क्योंकि हमारे लिए किसी रिपोर्ट में दर्ज ऐसी चीज को स्वीकार करना, जो हमारे समक्ष नहीं है और जिसकी सत्यता का परीक्षण करने का हमारे पास कोई साधन भी नहीं है, वास्तव में अनुचित होगा।
पीठ ने एक याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण की तरफ से सेबी की भूमिका पर संदेह जताने पर यह बात कही। भूषण ने कहा था कि सेबी के पास अडाणी समूह की गड़बड़ियों के बारे में वर्ष 2014 से ही तमाम जानकारी उपलब्ध थीं। इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
 
पीठ ने कहा, उन्होंने (सेबी) अपनी जांच पूरी कर ली है। उनका कहना है कि अब यह उनके अर्द्ध-न्यायिक क्षेत्राधिकार में है। कोई कारण बताओ नोटिस जारी करने के पहले क्या उन्हें जांच का खुलासा कर देना चाहिए। इस पर भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत को इस पर भी गौर करना होगा कि क्या सेबी की जांच विश्वसनीय है और क्या इसकी जांच का जिम्मा किसी स्वतंत्र संगठन या एसआईटी को सौंपा जाना चाहिए।
 
इस पर पीठ ने सवाल उठाते हुए कहा, सेबी के काम पर संदेह करने वाला तथ्य हमारे समक्ष कहां है? इसके साथ ही पीठ ने उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के दो सदस्यों पर 'हितों के टकराव' का आरोप लगाने पर भी कड़ी टिप्पणी की। पीठ ने कहा, आपको काफी सतर्क होने की जरूरत है। आरोप लगाना बहुत आसान है लेकिन हमें निष्पक्षता के बुनियादी सिद्धांत का भी ध्यान रखना है।
 
पीठ ने सेबी की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने पर कहा, हमें यह ध्यान रखना होगा कि सेबी एक वैधानिक निकाय है जिसे शेयर बाजार नियमों के उल्लंघन की जांच का अधिकार है। आज देश की सर्वोच्च अदालत के लिए किसी तथ्य के बगैर क्या यह कहना उचित है कि हम आपको जांच नहीं करने देंगे और अपनी तरफ से एक एसआईटी बनाएंगे? ऐसा बहुत जांच-परख के साथ करना होगा।
 
वरिष्ठ अधिवक्ता भूषण ने अडाणी समूह के खिलाफ प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट का ध्यान नहीं रखे जाने की बात कही। इस पर पीठ ने कहा कि सेबी मीडिया में प्रकाशित सामग्री को अटल सत्य मानकर नहीं चल सकता है क्योंकि वह साक्ष्यों की बाध्यता से संचालित है।
 
सुनवाई के दौरान सेबी का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत के भीतर की चीजों और नीतियों को प्रभावित करने के लिए देश के बाहर खबरें परोसने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। मेहता ने पीठ को बताया कि अडाणी समूह के खिलाफ लगे आरोपों से संबंधित 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है, जबकि दो मामलों में विदेशी नियामकों से जानकारी हासिल करने की जरूरत है।
 
मेहता ने कहा, बाकी दो मामलों के लिए हमें विदेशी नियामकों से जानकारी और कुछ अन्य सूचनाओं की जरूरत है। हम उनके साथ परामर्श कर रहे हैं। कुछ जानकारी मिली है लेकिन स्पष्ट कारणों से समय सीमा पर हमारा नियंत्रण नहीं है। पीठ ने ‘शॉर्ट सेलिंग’ के संदर्भ में कोई गड़बड़ी पाए जाने के बारे में भी पूछा। इस पर मेहता ने कहा कि जहां भी सेबी को ‘शॉर्ट सेलिंग’ का पता चला है, वहां पर सेबी अधिनियम के अनुसार कार्रवाई की जा रही है।
 
सॉलिलिटर जनरल ने कहा कि नियामक ढांचे को लेकर न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के सुझाव मौजूद हैं। उन्होंने कहा, विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को लेकर सैद्धांतिक तौर पर कोई आपत्ति नहीं है। शीर्ष अदालत की तरफ से गठित विशेषज्ञ समिति ने मई में एक अंतरिम रिपोर्ट में कहा था कि उसने उद्योगपति गौतम अडाणी की कंपनियों में हेराफेरी का कोई स्पष्ट सबूत नहीं देखा और इसमें किसी भी तरह की नियामकीय नाकामी नहीं हुई थी।
 
हालांकि समिति ने 2014 और 2019 के बीच सेबी द्वारा किए गए कई संशोधनों से जांच करने की उसकी क्षमता बाधित होने का उल्लेख करते हुए कहा था कि विदेशी कंपनियों से आने वाले निवेश में कथित उल्लंघनों की जांच में कुछ नहीं मिला है। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने मेहता से यह जानना चाहा कि भविष्य में भारी उतार-चढ़ाव से निवेशकों की पूंजी की सुरक्षित रखने के लिए सेबी किस तरह के कदम उठाने की मंशा रखता है।
 
पीठ ने कहा, क्या सेबी ने इस पर गौर किया है कि नियमों को कड़ा करना जरूरी है। निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के मामले में सेबी क्या करने का इरादा रखता है। इस पर मेहता ने सकारात्मक राय जाहिर की। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour
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