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मजहबी कट्टरता और हिंसा के खतरों के बीच सबसे बड़े संगठन ‘आरएसएस’ को क्या करना चाहिए

मजहबी कट्टरता और हिंसा के खतरों के बीच सबसे बड़े संगठन ‘आरएसएस’ को क्या करना चाहिए - What should 'RSS' do in the midst of religious threats?
शायद ही कोई ऐसा समय हो जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी न किसी रूप में चर्चा में नहीं रहता हो। किसी घटना में उसकी भूमिका हो या नहीं, लेकिन विरोधी संघ को घसीट कर ले ही आते हैं। ज्ञानवापी मामले में प्रत्यक्ष रूप से संघ के न होने के बावजूद विरोधी हर चर्चा में उसका नाम लेते हैं। उदयपुर और अमरावती के हत्यारों ने कहीं भी संघ का नाम नहीं लिया। उन्होंने साफ कहा है कि हमने नबी के अपमान का बदला लिया है, फिर भी विरोधियों के लिए यह संघ के हिंदुत्व की प्रतिक्रिया है। ऐसे समय संघ के प्रांत प्रचारकों की बैठक पर देश की नजर होनी स्वाभाविक थी।

राजस्थान के झुंझुनू में आयोजित कोरोना के बाद प्रांत प्रचारकों की  बैठक में सरसंघचालक से लेकर अधिकतर अखिल भारतीय अधिकारी उपस्थित थे। देश में जितना संतप्त माहौल है, उसमें विरोधियों एवं समर्थकों दोनों को उम्मीद थी कि संघ इन पर विस्तृत आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा। संघ के उस समय और उसके बाद के बयानों में भी संयम और संतुलन का पुट ज्यादा है।

2025 में संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरा कर लेगा। बैठक में शताब्दी वर्ष को लेकर कुछ लक्ष्य और कार्यक्रम निर्धारित किए गए। वे सारे अपने आप महत्वपूर्ण है। यह बैठक संघ के शिक्षा वर्गों के बाद आयोजित होती है। संघ प्रतिवर्ष मई-जून में देशभर में शिक्षा वर्ग आयोजित करता है। प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष के 3 शिविर होते हैं। तृतीय वर्ष प्रशिक्षण का अंतिम वर्ष होता है, जिसका आयोजन संघ के मुख्यालय नागपुर में किया जाता है। शेष संख्या के अनुसार अलग-अलग प्रांतों में आयोजित होता है। बैठक के बाद आयोजित पत्रकार वार्ता में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इस संबंध में जो जानकारियां दी, उसमें दो बिंदू विरोधियों एवं समर्थकों दोनों के लिए है।

एक, इस वर्ष संघ शिक्षा वर्गों में 40 वर्ष से कम आयु के 18 हजार 981 व 40 वर्ष से अधिक आयु के 2 हजार 925 ने प्रशिक्षण लिया। कुल मिलाकर पूरे देश के प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष के 101 वर्गों में कुल 21 हजार 906 संख्या रही।

दो, वर्तमान में शाखाओं की संख्या 56 हजार 824 हैं, जिसे शताब्दी वर्ष आते-आते शाखाओं की संख्या एक लाख तक ले जाना है।

जिन्हें प्रशिक्षण शिविरों और शाखाओं का ज्ञान नहीं, उन्हें लगेगा कि यह संख्या बहुत बड़ी नहीं। जरा सोचिए, भारत ही नहीं, दुनिया में ऐसा कौन संगठन है जो वर्ष के दो महीने में निश्चित समयावधि के बीच इतनी बड़ी युवा आबादी को वैचारिक एवं शारीरिक रूप से प्रशिक्षित कर लेता है? ध्यान रखिए प्रशिक्षण के पूर्व सभी को प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है। इस तरह उसने इस वर्ष इतनी बड़ी संख्या में प्रतीज्ञित प्रशिक्षित कार्यकर्ता तैयार कर लिया है। राजनीतिक दलों में सदस्य बनाना आसान होता है। संघ के प्रशिक्षण शिविरों में कष्ट साध्य परिश्रम करना होता है, जिसके लिए संकल्प और मानसिक तैयारी चाहिए। ऐसे प्रशिक्षित लोग ही संघ की विचारधारा संगठन को आगे बढ़ाते हैं। आलोचक संघ की आलोचना करते रहेंगे, इसके आगे बढ़ने का कारण कार्य प्रणाली है, जिसमें शाखा मूल है और प्रशिक्षण शिविर के द्वारा कैडर यानी स्वयंसेवक तैयार होते हैं।

आज उसकी शाखाएं 56 हजार के आसपास है तो वह विश्व की इतनी बड़ी शक्ति है। कल्पना करिए,  उसकी संख्या एक लाख हो जाएगी तो ताकत कितनी बड़ी होगी? विरोधी अगर संघ से मुकाबला करना चाहते हैं तो उन्हें इतनी बड़ी संख्या में प्रतिबद्ध कार्यकर्ता तैयार करने की हैसियत बनानी होगी जो किसी के पास नहीं दिखती। कोरोना काल के बाद स्वयंसेवकों ने जल प्रबंधन, कचरा प्रबंधन, पर्यावारण व स्वच्छता आदि क्षेत्र में सक्रिय योगदान किया।

कोरोना के बाद अवश्य शिक्षा वर्गों का यह पहला वर्ष था, लेकिन अनवरत हर वर्ष यह प्रक्रिया चलती है। जाहिर है भारी संख्या में उसके कार्यकर्ता तैयार होते रहते हैं। अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अनेक केंद्रीय मंत्री प्रदेश के प्रदेश के मुख्यमंत्री मंत्री अनेक राज्यपाल संघ के प्रतिज्ञित प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं। नकारात्मक सोच और तरीके से इतनी संख्या में कार्यकर्ता तैयार नहीं हो सकते।

संघ ने एक लाख शाखा का लक्ष्य तय किया है तो उसके आसपास 2024 तक अवश्य पहुंच जाएंगे। जाहिर है, जो मानकर चल रहे थे हैं कि संघ कट्टरवादी संगठन है और धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगा उनके लिए यह सूचना निश्चय ही निराशा का कारण बनेगा। बैठक के बाद कहा गया कि समाज के सहयोग से सहभागिता बढ़ती जा रही है। ऐसे ही कुटुंब प्रबोधन व कुरीतियों के निवारण के लिए सामाजिक संस्थाओं, संतों व मठ-मंदिरों के सहयोग से स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं। इसके पूर्व मार्च में आयोजित प्रतिनिधि सभा की बैठक में स्वरोजगार और स्वावलंबन की बात की गई थी और उसके तहत कुछ हजार कार्यकर्ताओं को स्वावलंबन की शिक्षा भी दी गई है। निश्चित रूप से इतने बड़े संगठन को समाज के हर क्षेत्र में भूमिका निभानी चाहिए और उनमें समाज सुधार, रोजगार, पर्यावरण, जल प्रबंधन आदि आएंगे। किंत स्थापना का शताब्दी वर्ष आते-आते चुनौतियां बढ़ीं हैं।

जब 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने इसकी स्थापना की उस समय आजादी के आंदोलन के बीच मुस्लिम संगठनों और नेताओं की भूमिका के कारण हिंदू समाज के अंदर कई तरह की चिंता व्याप्त थी। डॉ हेडगेवार भारतीय मुस्लिम कट्टरवाद के प्रति कांग्रेस की उदासीनता से निराश थे। उन्होंने हिंदुओं का संगठन आरंभ किया और इसका असर होने लगा। हालाकी संघ चाह कर भी हिंदू-मुस्लिम आधार पर भारत के विभाजन को नहीं रोक सका, लेकिन गैर मुस्लिमों खासकर हिंदुओं और सिखों की सुरक्षा, उनको पाकिस्तान से सुरक्षित वापस लाने, शरणार्थियों की व्यवस्था एवं पुनर्वसन में उसने भूमिका अदा की।

29 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के कारण प्रतिबंध नहीं लगता तो संघ की यह भूमिका काफी विस्तारित होती। संघ की दृष्टि से देखें तो वर्तमान स्थितियां काफी गंभीर एवं चिंताजनक हैं। यह कहना उचित नहीं होगा कि चुनौतियां ठीक वैसी सी ही हैं जो संघ की स्थापना या आजादी के पूर्व थी। संघ मूल्यांकन करें तो उसे चार चिंताजनक बातें दिखाई देंगी।

पहला, मुस्लिम समाज के बीच एक बड़े वर्ग के भीतर मजहबी कट्टरता तेजी से बढ़ रही है।
दूसरे, चूंकि मुस्लिम राजनीतिक- गैर राजनीतिक और मजहबी नेताओं के एक समूह ने संघ, भाजपा और यहां तक कि आम हिंदुओं का भय पैदा किया है इसलिए संभव है कुछ लोगों में अलगाववाद की भावना भी बड़ी हो।
तीसरा, अंतरराष्ट्रीय जिहादी विचारधारा से प्रभावित हिंसा के लिए उद्धत लोग भी सामने आए हैं। बिहार की राजधानी पटना और फुलवारी शरीफ में पीएफआई द्वारा 2047 तक भारत के इस्लामिक देश बनाने के लक्ष्य एवं हथियार प्रशिक्षण का पकड़ में आना तथा उदयपुर और अमरावती का कत्ल आईएस, अल कायदा और तालिबान की धारा को ही प्रतिबिंबित करता है। अलग-अलग भागों में नूपुर शर्मा का समर्थन करने वालों को जान से मारने की धमकियां भी इसे पुष्ट करती है। देश के अलग-अलग भागों में जुमे की नमाज के बाद हुए हिंसक प्रदर्शन और कानपुर आदि जगहों के दंगों ने खतरों का प्रत्यक्ष अनुभव कराया है।

नूपुर शर्मा मामले में भाजपा की चुप्पी, प्रवक्ताओं के डिबेट से दूर रहने आदि के कारण हिंदुओं के अंदर डर पैदा हुआ है। इसमें देश के सबसे बड़े हिंदू संगठन के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ दल की मातृ संस्था होने के कारण संघ की जिम्मेवारी बढ गई है। संघ सीधे कोई काम नहीं करता स्वयंसेवक करते हैं, पर उन्हें मार्गदर्शन का दायित्व उसी का है। संघ का लक्ष्य देश की एकता अखंडता कायम रखने के साथ अखंड भारत है, इसलिए वह नहीं चाहेगा कि अलगाववादी मजहबी हिंसक ताकतें बढ़ें। इसलिए उसे तीन काम करना चाहिए। 

एक, हिंदू समाज के अंदर भय और गुस्सा नकारात्मक मोड़ न ले इसके लिए वातावरण बनाना। दूसरे, ऐसे वक्तव्य एवं कार्य योजना लेकर सामने आना जिससे लोगों के अंदर व्याप्त भय कम होते -होते खत्म हो जाए तथा आत्मविश्वास बढ़े। तीन, हिंसक प्रदर्शनों और हिंसा के विरुद्ध स्वयंसेवकों को समाज के साथ समय-समय पर अनुशासित व गरिमामय तरीके से सड़कों पर उतर कर  अहिंसक प्रदर्शन व धरना आदि का स्वभाव बनाना। आम स्वयंसेवक एवं संघ के दूसरे अनुषांगिक संगठनों के ज्यादातर कार्यकर्ताओं में सड़कों पर उतरने, धरना प्रदर्शन करने का चरित्र नहीं है। खतरे बड़े हैं तो इसे पैदा करना होगा। इससे देश में व्याप्त भय दूर होगा, हिंसक तत्वों के अंदर व्यापक जन विरोध का भय पैदा होगा तथा सरकार में राजनीतिक नेतृत्व एवं प्रशासन पर सक्रिय कार्रवाई का दबाव बढ़ेगा।