सबसे पवित्र आई लव यू वही होते हैं, जो ताबूत, कब्रों और तस्वीरों के सामने उन्हें अपनी अंगुलियों से छू कर बोले गए हों। जहां से कोई जवाब नहीं आता, जवाब की कोई आहट भी नहीं, कोई हलचल, कोई प्रतिक्रिया नहीं आती।
शहादत के अभिमान में इत्मिनान की नींद में सो रही निस्तेज और शिथिल देह को और उस कॉफिन को छू कर लगाई गई पुकार सबसे निश्छल पुकार मानी जानी चाहिए। प्रेम का सबसे निश्छल इज़हार। आसक्ति रहित स्वीकारोक्ति। पूरे देश के समक्ष। आंखें मूंदकर। प्रेम करते हुए शहादत को सलाम।
जैसे किसी रात लंबी, गहरी और ठंडी नींद में हमने अनजाने में बुदबुदा दिया हो – मुझे तुमसे प्रेम हैं। दरअसल, सवालों में नहीं, सबसे उत्कृष्ट प्रेम चुप्पी में निवास करते हैं। अकथ में जवाब सबसे गहरे होते हैं। सवाल करना नष्ट करने की प्रक्रिया की शुरूआत है। शब्द गफ़लत है, चुप्पी प्रेम की सबसे साफ़ ध्वनि है।
यह प्रेम का दरअसल सबसे शुद्ध रूप है। सबसे साफ़ प्रतीक। आसक्ति रहित। बगैर इच्छाओं का प्रेम। जहां गिव एंड टेक का सिद्धांत नहीं होता, वहां, उस वक़्त कहने वाला और सुनने वाला दोनों एक ही होते हैं- मैं ही तुम हूं। तुम ही मैं हूं। दूसरा न कोई।
कहत कबीर सुनो भई साधो, प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न समाए। इसलिए प्रेम के जिन इज़हारों के जवाब नहीं मिलते, या जिनके जवाब नहीं दिए जाते, उन्हें हां या हां की तरह मान लिया जाता है, उधर, उस तरफ की ख़ामोशियों को स्वीकृति समझ लिया जाता है। यही कारण होगा कि लोग अपने बेज़ुबान घरों से भी प्यार करते हैं, उन सुनसान और सन्नाटों से भरी जगहों को भी चाहते हैं, जहां वो कभी रहे या जाते रहे हों। जहां उनकी स्मृतियां बंधी होती हैं।
पिछली कई सदियों से उच्चारित किया जाने वाला वाक्य आई लव यू व्याकरण की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा का अफ़रमेटिव सेंटेंस है। इसमे कोई प्रश्नचिन्ह नहीं। कोई एंटरोगेशन नहीं, लेकिन हमने इसे दुनिया का सबसे बड़ा सवाल बना दिया। मनुष्य के अंतर्मन की सबसे बड़ी और लंबी प्रतीक्षा। इस वाक्य में सिर्फ एक प्रश्नचिन्ह जोड़कर।
इसमें सवाल साइलेंट है। शायद इसीलिए दुनिया में ज़्यादातर दीवानों की कतारें हां के इंतजार में हैं। लंबी- लंबी क्यूज़। यहां-वहां। कैफ़े हॉउस में, कॉफी के मग के सामने, बगीचों में। ऑफिस की पार्किंग में। कमरों में, छतों पर और अपने- अपने शयनकक्षों में। दिनों में। शामों में। रातों में। जागने में। नींद में। अपनी- अपनी। चुप्पी में।
प्रेम प्रश्न नहीं, इसलिए इसका उत्तर भी नहीं। यह सिर्फ होनाभर है। दो आंखें हैं, तुम्हें देखती हैं। तुम देखे गए। फिर एक दिन तुम जाने गए। अंततः तुम जान लिए गए। फिर कोई गुंजाइश नहीं। कोई जगह नहीं। जहां सिर्फ तुम। दूसरा न कोई। सबकुछ अकथ। बंद आंखों के पीछे एक नीला-गुलाबी दस्तावेज। एक ऐसी दुनिया जिसे तुम ही जानते हो, तुम्हीं भोगते भी हो। इस पूरी दुनिया का चार्म तुम्हारा ही है।
एक दोपहर। या किसी शाम। वो तुम्हारे करीब से गुजर गई। एक खुश्बू हवा में तैर गई। उसकी धमक, एक आहट तुम्हारे पास ठहर गई। एक उजली हंसी रह गई। फिर एक रंग सांवला सा छूट जाता है तुम्हारे पास हमेशा के लिए। वो तुम्हें एक बेखुदी देकर चली जाती है। फिर होने और नहीं होने की आहट रह जाती है। प्रेम की यही आहट हम सब को जिंदा रखती है।
देहरादून के किसी इलाके में बरसते बादलों और गुलाब के फूलों की गंध के बीच रखी गई देह के सामने। सलामी लेते हुए भारतवर्ष के गौरव और रायफलों की आवाज़ों के बीच धीमें से कॉफिन को छू कर किया गया इज़हार सबसे अकेला और मायूस हो सकता है, लेकिन वही इज़हार सबसे ज़्यादा समृद्ध और पवित्र है। अपनी अंगुलियों को होठों से छू कर शहीद पति की तरफ चुंबन बनाकर सरका देना दुनिया का सबसे अच्छा चुंबन है।
सबसे ज़्यादा प्रासंगिक भी, क्योंकि वहां ताबूत के भीतर से कोई जवाब नहीं आने वाला। वहां से कोई आहट नहीं होगी। डायरियां आपके सवालों का जवाब नहीं देती, तस्वीरें मुड़कर आई लव यू नहीं कहती, कब्रगाहें उठकर किसी को गले नहीं लगाती। प्रेम कभी कोई सवाल नहीं करता और न ही सवालों के जवाब देता है- प्रेम अपनी चुप्पी में सबसे उत्कृष्ट है।