मंगलवार, 26 नवंबर 2024
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  4. Now backwardness of Purvanchal is no longer an election issue, Gahmari once cried in Parliament

अब पूर्वांचल का पिछड़ापन नहीं रहा चुनावी मुद्दा, कभी संसद में रो पड़े थे गहमरी

Purvanchal
Lok Sabha elections 2024: चुनाव कोई हो। पूर्वांचल में बस एक ही मुद्दा होता था। पूर्वांचल के माथे से पिछड़ेपन का दाग कब धुलेगा। 1990 से बंद इस क्षेत्र का एकमात्र सार्वजनिक उपक्रम गोरखपुर की चिमनियां फिर कबसे धुंआ उगलेंगी। पूर्वांचल, नेपाल की तराई और सटे बिहार के करीब 6 से 7 करोड़ लोगों के चिकित्सा के रेफरल केंद्र गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज की बदहाली कब सुधरेगी।

वर्षों से केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा स्वीकृत ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज गोरखपुर को लेकर जारी राजनीति कब थमेगी। कब यह संस्थान बनकर यहां के करोड़ों लोगों के जीवन की आश बनेगा। प्राकृतिक रूप से विकसित रामगढ़ ताल, क्या कभी शहर के गटर की जगह सैलानियों और स्थानीय लोगों के लिए टूरिस्ट स्पॉट बन पाएगा। कुशीनगर इंटरनेशनल एयर पोर्ट को लेकर भी लोग यही सोचते थे। बंद पड़ी चीनी मिलें। आगे पीछे ही स्थापित गीडा क्या कभी नोएडा बन पाएगा। आजमगढ़ में विश्वविद्यालय और हवाई अड्डा होगा। हर जिले में एक मेडिकल कालेज होगा। यह सब तो सोच से परे था।
 
धुल गया पिछड़ेपन का दाग : पर सात वर्षों में ही ये सारी चीजें इतिहास बन गई। इस। दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में बहराइच से लेकर बलिया तक विकास के इतने काम काम हुए कि अब पूर्वांचल के माथे से पिछड़ेपन का कलंक धूल चुका है।
 
कभी पूर्वांचल की बदहाली का जिक्र करते-करते संसद में रो पड़े थे गहमरी : मालूम हो कि यह वही पूर्वांचल है जिसकी बदहाली बयां करते करते 1962 में गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ गहमरी संसद में रो दिए थे। बताते हैं कि उन्होंने यहां की बदहाली का जो शब्द-चित्र खींचा उससे उनके समेत पूरी संसद रोई थी। तब पूर्वांचल की बेहतरी के लिए वादे तो बहुत किए गए थे। एक आयोग का भी गठन हुआ था, पर हुआ कुछ नहीं। एक-एक कर चीनी मिलें बंद होती गईं। सार्वजनिक क्षेत्र के नाम पर गोरखपुर खाद कारखाना भी 1990 में बंद हो गया। गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) और नोएडा की स्थापना एक ही मकसद से एक ही साथ हुई थी। पर दोनों के विकास में जमीन-आसमान का अंतर था।
 
ये सारी बातें अब इतिहास होने लगीं हैं। सात साल के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बहुत कुछ बदल गया है। बतौर सांसद उन्होंने गोरखपुर को केंद्र मानकर पूर्वांचल के विकास के बाबत जो सोचा था, जो संकल्पना की थी। उसे साकार कर साबित किया कि उनमें कल्पना के साथ उनको साकार करने का माद्दा भी है।  लगातार जारी बदलावों के नाते अब पूर्वांचल के माथे से पिछड़ापन का दाग मिट चुका है। 
 
बात चाहे बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण की बात हो, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्र के कायाकल्प, शिक्षा क्षेत्र के हब या फिर औद्योगिक वातावरण के सृजन की, हरेक क्षेत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी यूपी से तालमेल करते दिख रहा है। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, बलिया लिंक एक्सप्रेसवे समेत सिक्स और फोर लेन सड़कों के संजाल से इस पिछड़े इलाके की सीधी और सुगम पहुंच प्रदेश और देश की राजधानी तक हो गई है। जबकि सात साल पहले इसी क्षेत्र में लचर रोड इंफ्रास्ट्रक्चर से बाहर के लोग यहां आने से कतराते थे। सरकार ने इस क्षेत्र की एयर कनेक्टिविटी को भी फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया है। 
स्वास्थ्य क्षेत्र का हुआ कायाकल्प : एक दशक पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाहाल नहीं था। उस पर 1978 में दस्तक देने वाली इंसेफेलाइटिस ने हर साल हजारों नौनिहालों को लीलना शुरू कर दिया। मरीजों के बोझ और संसाधनों के अभाव में इलाज का एकमात्र केंद्र गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज खुद ही बीमार हो गया था। इंसेफेलाइटिस के अलावा डेंगू, कालाजार, हैजा जैसी बीमारियों का तांडव अलग था। यह सिलसिला मार्च 2017 के पहले तक बदस्तूर जारी रहा। 
 
बीते सात वर्ष में स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र में न केवल आमूलचूल परिवर्तन आया है बल्कि यह इलाका खुद में मेडिकल हब के रूप में विकसित हो चुका है। सरकार ने पीएचसी स्तर पर इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर बनाकर इस बीमारी पर 95 प्रतिशत तक काबू पा लिया है। इससे बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर बोझ कम हुआ, साथ ही यहां सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक की भी सुविधा उपलब्ध हो गई है। हर जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात मिली है। इनमें से अधिकांश ने मरीजों की सेवा भी शुरू कर दी है।
 
इन मेडिकल कॉलेजों से मरीजों का मुकम्मल इलाज हो रहा है तो बड़ी संख्या में एमबीबीएस की सीटें मिलने से युवाओं को करियर का शानदार विकल्प भी मिला है। और तो और, गोरखपुर में स्थापित एम्स समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ बिहार और नेपाल तक के करोड़ों लोगों के लिए संजीवनी साबित हो रहा है। इसके साथ गोरखपुर में रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर के जरिये पूर्वांचल देश के उन चुनिंदा इलाकों में शामिल हो गया है, जहां हर प्रकार के बीमारियों की जांच और अनुसंधान की व्यवस्था उपलब्ध है।
 
नई और अत्याधुनिक चीनी मिलें लगी : पूर्वांचल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि आधारित रही है। यहां गन्ने की प्रचुर खेती के कारण ही इसे चीनी का कटोरा कहा जाता था। पर, हुक्मरानों की उपेक्षा के कारण चीनी मिलें एक एक कर बंद होने लगीं। कुछ को सरकारों ने औने-पौने दामों पर बेचना शुरू कर दिया। मिलों पर किसानों का करोड़ों बकाया हो गया। परिणामस्वरूप गन्ने की खेती घाटे का सौदा हो गई।
 
योगी सरकार ने न केवल बस्ती जिले के मुंडेरवा और गोरखपुर के पिपराइच में हाईटेक चीनी मिलें खोलीं बल्कि आजमगढ़ की चीनी मिल की क्षमता का विस्तार किया। पिपराइच व मुंडेरवा की मिलें सल्फरलेस चीनी बनाती हैं, साथ ही कोजेन प्लांट से बिजली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हैं। किसानों के हित में ही गोरखपुर में दशकों से बंद खाद कारखाने की जगह दोगुनी क्षमता का नया कारखाना शुरू हो गया है। किसानों की बड़ी समस्या सिंचाई की रही है। इसके लिए सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को समर्पित कर दी गई है। पर्याप्त बिजली मिलने से उन इलाकों में भी सिंचाई का संकट समाप्त हुआ है जहां निजी ट्यूबवेलों पर ही आश्रित रहना पड़ता है। 
 
शैक्षणिक क्षेत्र में भी हुई क्रांति : शिक्षा के क्षेत्र में पूर्वी यूपी नई क्रांति का गवाह बना है। मंडल मुख्यालयों पर अटल आवासीय विद्यालय, हर जिले में राजकीय इंटर कॉलेज और महाविद्यालय, आईटीआई, पॉलिटेक्निक की श्रृंखला तैयार हुई है। आजमगढ़ में महाराजा सुहेलदेव के नाम पर विश्वविद्यालय बना। गोरखपुर में सैनिक स्कूल और स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट का अकल्पनीय उपहार मिला है। प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय भी पूर्वांचल के गोरखपुर में  है। अब किसी भी ट्रेड की पढ़ाई के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के युवाओं को बाहर जाने की जरूरत नहीं रह गई है। 
 
गीडा बना निवेशकों की पसंद : एक दौर वह भी था, जब पूर्वांचल की एक बदनाम पहचान उद्योग शून्यता की थी। जिलों के विशिष्ट उत्पाद दम तोड़ रहे थे, उन्हें ओडीओपी में शामिल कर न केवल वैश्विक पहचान दिलाई गई बल्कि उद्यमिता का नया इतिहास भी रचा गया है। एक्सप्रेसवे के किनारों पर औद्योगिक गलियारा विकसित किया जा रहा है। सरकार ने संजीदगी दिखाई, बुनियादी सुविधाओं का विकास करने के साथ नीतियों को सरल किया तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में निवेश के लिए उद्योगपतियों में आकर्षण बढ़ा है। गोरखपुर में रेडीमेड गारमेंट पार्क जीवंत उदाहरण है। 
 
इन बदलावों के आधार पर आप कह सकते हैं कि अब विकास का सूरज पूर्वांचल से उगने लगा है। इसके नाते यहां विकास का उजास फैलने लगा है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 
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