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Written By Author डॉ. नीलम महेंद्र
Last Modified: गुरुवार, 12 जुलाई 2018 (18:04 IST)

यह लड़ाई है अच्छाई और बुराई की

यह लड़ाई है अच्छाई और बुराई की - Nirbhaya Kand, Rape Supreme Court Delhi, National Crime Bureau
उच्चतम न्यायालय ने 9 जुलाई 2018 के अपने ताजा फैसले में 16 दिसंबर 2012 के निर्भया कांड के दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए उसे उम्रकैद में बदलने की उनकी अपील ठुकरा दी है।
 
दिल्ली का निर्भया कांड देश का वो कांड था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। देश के हर कोने से निर्भया के लिए न्याय और आरोपियों के लिए फांसी की आवाज उठ रही थी। मकसद सिर्फ यही था कि इस प्रकार के अपराध करने से पहले अपराधी सौ बार सोचे। लेकिन आज 6 साल बाद भी इस प्रकार के अपराध और उसमें की जाने वाली क्रूरता लगातार बढ़ती जा रही है। 
 
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2015 में बलात्कार के 34,651, 2015 में 38,947 मामले दर्ज हुए थे। 2013 में यह संख्या 25,923 थी। कल तक महिलाओं और युवतियों को शिकार बनाने वाले आज 5-6 साल तक की बच्चियों को भी नहीं बख्श रहे। आंकड़े बताते हैं कि 2016 में पोक्सो एक्ट के तहत 2016 में छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के 64,138 मामले दर्ज हुए थे। अभी हाल ही की बात करें तो सूरत, कठुआ, उन्नाव, मंदसौर, सतना आदि।
 
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि आज हमारे समाज में बात सिर्फ बच्चियों अथवा महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की ही नहीं है, बात इस बदलते परिवेश में अपराध में लिप्त होते जा रहे हमारे बच्चों की है। और बात इन अपराधों के प्रति संवेदनशून्य होते एक समाज के रूप में हमारी खुद की भी है, क्योंकि ऐसे अनेक मामले भी सामने आते हैं, जब महिलाएं धन के लालच में अथवा अपने किसी अन्य स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए कानून का दुरुपयोग करके पुरुषों को झूठे आरोपों में भी फंसाती हैं।
 
अभी हाल ही में एक ताजा घटना में भोपाल में एक युवती द्वारा प्रताड़ित करने पर एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले युवक यश पेठे द्वारा आत्महत्या करने का मामला भी सामने आया है। वो युवती ड्रग्स की आदी थी और युवकों से दोस्ती करके उन पर पैसे देने का दबाव बनाती थी।

कल तक क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले, आदतन अपराधी किस्म के लोग ही अपराध करते थे लेकिन आज के हमारे इस तथाकथित सभ्य समाज में पढ़े-लिखे लोग और संभ्रांत घरों के बच्चे भी अपराध में संलग्न हैं।
 
ऐसा नहीं है कि अशिक्षा, अज्ञानता, गरीबी या मजबूरी के चलते आज हमारे समाज में अपराध बढ़ रहा हो। आज केवल एडवेंचर या नशे की लत भी हमारे छोटे-छोटे बच्चों को अपराध की दुनिया में खींच रही है इसलिए बात आज एक मानव के रूप में दूसरे मानव के साथ हमारे गिरते हुए आचरण की है, हमारी नैतिकता के पतन की है, व्यक्तित्व के गिरते स्तर की है, मृत होती जा रहीं संवेदनाओं की है, लुप्त होते जा रहे मूल्यों की है, आधुनिकता की आड़ में संस्कारहीन होते जा रहे युवाओं की है, स्वार्थी होते जा रहे हमारे उस समाज की है, जो परपीड़ा के प्रति भावनाशून्य होता जा रहा है और अपराध के प्रति संवेदनशून्य।
 
बात सही और गलत की है, बात अच्छाई और बुराई की है, बात हम सभी की अपनी-अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों से बचने की है, एक मां के रूप में, एक पिता के रूप में, एक गुरु के रूप में, एक दोस्त के रूप में, एक समाज के रूप में। बात अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को सामूहिक जिम्मेदारी बनाकर बड़ी सफाई से दूसरों पर डाल देने की है, कभी सरकार पर, तो कभी कानून पर।
 
लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि सरकार कानून से बंधी है, कानून की आंखों पर पट्टी बंधी है और हमने अपनी आंखों पर खुद ही पट्टी बांध ली है। पर अब हमें जागना ही होगा, अपनी भावी पीढ़ियों के लिए, इस समाज के लिए, संपूर्ण मानवता के लिए, अपने बच्चों के बेहतर कल के लिए। हम में से हरेक को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभानी ही होगी एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए।

हम सभी को अलख जगानी ही होगी अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए और इसकी शुरुआत हमें अपने घर से खुद ही करनी होगी, उन्हें अच्छी परवरिश देकर, उनमें संस्कार डालकर, उनमें संवेदनशीलता, त्याग और समर्पण की भावना के बीज डालकर, मानवता के गुण जगाकर, क्योंकि यह लड़ाई है अच्छाई और बुराई की, सही और गलत की।
 
आज हम विज्ञान के सहारे मशीनों और रोबोट के युग में जीते हुए खुद भी थोड़े-थोड़े मशीनी होते जा रहे हैं। टीवी-इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया में जीते-जीते खुद भी वर्चुअल होते जा रहे हैं। आज जरूरत है फिर से मानव बनने व मानवता जगाने की।
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