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Written By शराफत खान

अगर आपके बच्चे कार्टून शो देखते हैं तो इसे पढ़ें

अगर आपके बच्चे कार्टून शो देखते हैं तो इसे पढ़ें - How much Cartoon show should kids watch
टीवी पर जितने भी कार्टून शो आ रहे हैं, बच्चे उन्हें चाव से देखते हैं। डोरेमोन के गेजैट्‍स, निंजा हथौड़ी के कारनामे, परमैन की गुलाटियां देखकर बच्चे खूब खुश होते हैं। कई बच्चे तो कार्टून के इस जाल में इस तरह उलझ जाते हैं कि घंटों टीवी के सामने बैठते रहते हैं और इस दौरान खाना-पीना भी भूल जाते हैं। कुछ बच्चे कार्टून देखने की शर्त पर ही खाना खाते हैं। कुल मिलाकर कार्टून शो बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है, लेकिन अभि‍भावकों को विचार इस बात पर करना है कि बच्चे कार्टून के नाम पर जो देख रहे हैं, उससे उनके कोमल मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। 
 
घर पर कार्टून देख रहा बच्चा क्या सोचता होगा जब डोरेमोन अपने दोस्त नोबिता के स्कूल, होमवर्क, खेल से संबंधित बड़ी से बड़ी परेशानी को अपने गेजैट की मदद से चुटकी बजाकर दूर कर देता है। नोबिता रो कर कहता है, 'डोरेमान, मुझसे होमवर्क नहीं हुआ। स्कूल में डांट पड़ेगी, प्लीज़ मदद करो।' या नोबिता बेसबॉल खेलने के लिए मैदान पर जाने से पहले डोरेमोन से कहता है, 'मैं अच्छा नहीं खेलता, कोई गेजैट दे दो, जिससे मैं बड़े शॉट लगा सकूं।' ऐसे सीन देखकर बच्चे यकीनन कल्पना लोक की सैर पर निकल जाते होंगे, जहां वे सोचते होंगे कि काश, मेरे पास भी एक डोरेमोन होता। क्या मासूमियत भरी इस सोच के साथ बच्चा खुद को कमतर नहीं मान लेता? क्या वह खुद को नोबिता की तरह कमज़ोर मानकर यह विश्वास नहीं करने लगता है कि मझसे कैसे होगा, मेरे पास डोरेमोन थोड़े ही है।   
 
दूसरे कार्टून शो भी कुछ इसी तरह के हैं, जैसे निंजा हथौड़ी। इसमें भी केनर्जी नामक बच्चा हीरो नहीं है, बल्कि उसकी मदद के लिए निंजा हथौड़ी है, जो हर काम जादुई शक्ति जिसे वह निंजा टेक्निक कहता है, उससे पल भर में कर देता है। अपनी शक्ति का प्रयोग करने से पहले वह कहता है, होमवर्क करने की निंजा टेक्निक, यह काम करने की निंजा टेक्निक, वो काम की निंजा टेक्निक फलाना, ढिमाका....। वास्तव में यह बच्चों को बेवकूफ बनाने की टेक्निक है और कुछ नहीं। कई बच्चे हथौड़ी की तरह उछल कूद करते देखे गए, मानों वे निंजा हों। 
 
कार्टून शो कल्पना का ऐसा संसार रचते हैं कि बच्चे उसमें खुद को एक पात्र की तरह देखने लगते हैं और फिर उनके हावभाव, हरकतें उसी पात्र की तरह हो जाती हैं। माता पिता समझते हैं कि चलो बच्चे का मनोरंजन हो रहा है, लेकिन बच्चे के दिमाग पर इस मनोरंजन (?) का कितना गहरा असर हो रहा है, उससे वे अंजान हैं।    
 
क्यों ज्यादातर कार्टून शो का केंद्रीय पात्र एक लूज़र बच्चा होता है, जो अपने सुपर हीरो दोस्त की मदद के बिना कुछ नहीं कर सकता। वह स्कूल के लिए देर से सोकर उठता है, होमवर्क करने की उसे फिक्र नहीं, अपना कमरा वह साफ नहीं रखता, क्योंकि डोरेमोन और हथौड़ी हैं इन कामों के लिए। इन कार्टून केरेक्टरों का काम तो डोरेमोन और हथौड़ी कर ही देंगे, लेकिन इन्हें देखकर जो बच्चे स्कूल जाने के लिए देर से उठते हैं, होमवर्क करने में आत्मनिर्भर नहीं हैं, अपनी चीजों और कमरे की साफ सफाई के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, उन बच्चों का क्या होगा? हर समय तो बच्चों पर नज़र रखना मुश्किल है, लेकिन वे कौन से कार्टून शो देख रहे हैं, इस पर अभिभावकों को नजर रखना बहुत जरूरी है ताकि बच्चे आत्मनिर्भर बनें न कि सुपर हीरो के इंतज़ार में बैठे रहें। 
 
दूसरा अहम पक्ष यह भी है कि बच्चे इन कार्टून से भाषा भी सीख रहे हैं और यह भाषा किसी भी आदर्श परिवार के भले बच्चे की नहीं होती है। अत: जैसे ही कुछ आपके कानों पर पड़े तुरंत सतर्क हो जाएं और बच्चे को समझाएं कि यह भाषा गलत है।  
 
बच्चों को कार्टून और वास्तविकता में फर्क आपको ही समझाना है। बच्चा जब बहुत छोटा है तब भले यह काम आप ना कर सकें लेकिन जब बच्चा बड़ा होने लगे तब कार्टूनिंग के तकनीकी पक्ष से आप उसे अवगत करा सकते हैं कि यह मूलत: ड्राइंग है और कार्टून ऐसे बनते हैं। यह सचमुच के किरदार नहीं है। इससे बच्चा उन किरदारों के साथ शामिल होने के बजाय, वे बनते कैसे हैं इस बात की तरफ आकर्षित होगा। कुछ करना हमें ही होगा, आखिर बच्चे हमारे हैं। 
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