बीस मुखिया देशों के हेग सम्मलेन से उपजे सवाल
दुनिया की दो तिहाई आबादी और लगभग 85 प्रतिशत जीडीपी का प्रतिनिधित्व करने वाले बीस देशों के समूह G-20 की वार्षिक बैठक जर्मनी के हैम्बर्ग में पिछले सप्ताह संपन्न हुई। जैसा इस लेखक ने पहले भी लिखा था कि जिन सिद्धांतों पर इस समूह का गठन हुआ था यदि यह समूह उन्हीं सिद्धांतों का अनुपालन करता रहे तो विश्व के हित में कई निर्णय लिए जा सकते हैं और आपसी सहयोग से ही विश्व के समक्ष खड़ी चुनौतियों से निपटा जा सकता है। किन्तु आज के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए विश्व के इन महाबली देशों को किसी एक छोटे निर्णय पर भी पहुंचने में कठिनाई होती है अतः इस तरह की समूह बैठकें सैर सपाटे और द्विपक्षीय मसलों पर वार्ता करने का अवसर बन चुकी हैं।
विडम्बना है कि इस समूह बैठक में जो मीडिया के लिए सबसे महत्पूर्ण खबर थी वह यह थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और रुसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच मुलाकात कैसी होगी जो पहली बार होने वाली थी। दोनों कैसे हाथ मिलाएंगे ? कैसे आँखे मिलाएंगे? शारीरिक हाव भाव में कौन किस पर भारी पड़ेगा? राष्ट्रपति ट्रम्प की पत्नी क्या पहनेंगी और उनकी पुत्री इवांका की क्या भूमिका होगी?
मीडिया इस महत्वपूर्ण सम्मेलन को ऐसे कवर कर रही थी जैसे किसी फैशन शो को कवर किया जाता है। हाथ मिलाने की मुद्रा पर भी मीडिया का बड़ा जोर रहा। ट्रम्प ने किस देश के राष्ट्राध्यक्ष के साथ किस तरह हाथ मिलाया। हाथ मिलाते समय किस का हाथ ऊपर और किसका हाथ नीचे था।
हद तो तब हो गई जब ट्रम्प, जर्मनी आने से पहले पोलैंड रुके थे और वहां की प्रथम महिला ट्रम्प के बढ़े हाथ को देख नहीं पाई और वह हाथ मिलाने के लिए ट्रम्प की पत्नी की ओर मुखातिब हो गईं। वीडियो वायरल हो गया। अंततः पोलैंड के राष्ट्राध्यक्ष को मीडिया में सफाई देनी पड़ी कि बाद में हाथ मिलाने की रस्म पूरी कर ली गयी थी। अब इस तरह के कवरेज में पूरा दोष मीडिया को भी तो नहीं दे सकते क्योंकि विश्व के इन सूरमाओं ने इतनी महत्वपूर्ण बैठक में विश्व की गंभीर चुनौतियों को छोड़कर क्षुद्र या खेरची विषयों पर अपना समय जाया किया।
इस सम्मेलन के उन्हीं कुछ विषयों पर नज़र डालते हैं जो गंभीर तो कम है और शायद मनोरंजन ही अधिक करते हैं। द्विपक्षीय वार्ता में राष्ट्रपति ट्रम्प ने सीधे सीधे शब्दों में राष्ट्रपति पुतिन से पूछा कि क्या तुम्हारी सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में परोक्ष रूप से हस्तक्षेप किया था ? राष्ट्रपति पुतिन ने सीधे शब्दों में इंकार कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति जानकर खुश हुए और उन्होंने तुरंत ट्वीट कर पूरे अमेरिका को बता दिया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था व्यर्थ ही अमेरिकी मीडिया इस विषय पर समय जाया कर रहा है। इस तरह अमेरिकी मीडिया में महीनों से चल रहा यह कांड चुटकियों में समाप्त करने की उन्होंने असफल और हास्यास्पद कोशिश की।
इधर पेरिस पर्यावरण समझौते से जब से अमेरिका ने हाथ खींचे हैं तब से संसार के अन्य सभी देश सदमे में हैं। यह तो कुछ ऐसा हो रहा है कि टीम के कप्तान ने अपने ही गोल में गेंद डालने की घोषणा कर दी है। उधर टीम के सारे सदस्य कप्तान को समझा रहे हैं कि इस खेल में गोल खुद पर नहीं किया जाता किन्तु ट्रम्प जो हैं किसी की सुनने को तैयार नहीं। वे तो अपने ही गोल में गोल दागने पर उतारू हैं। उधर बेचारे कार्टूनिस्ट अलग परेशान हैं कि ट्रम्प की मुखाकृति का कार्टून कैसे बनायें क्योकि वे स्वयं इतने प्रकार से अपने चेहरे बना लेते हैं जितने कार्टूनिस्ट सोच भी नहीं पाते।
कुल मिलाकर इस वर्ष के इस शिखर सम्मलेन ने विश्व शक्तियों के बीच की दरारों को कम करने के बजाय और चौड़ा ही किया है। समीक्षक इस असफलता का मुख्य कारण अमेरिका के अड़ियल रवैये को बता रहे हैं । पर्यावरण के मुद्दे को यदि छोड़ भी दें तो अन्य ज्वलंत मुद्दों जैसे शरणार्थी समस्या, सीरिया समस्या, उत्तरी कोरिया के तानाशाह की बढ़ती शैतानियां, अफ्रीका में बढ़ती जनसँख्या और उनसे उपजने वाली चुनौतियों पर कुछ द्विपक्षीय वार्ताओं को छोड़ दें तो सामूहिक रूप से कोई निर्णय नहीं हुआ।
जिन नेताओं से दुनिया को उम्मीद है कि वे दुनिया का नेतृत्व करेंगे वे लोग नेतृत्व से दूर भागते दिखाई देते हैं। दुनिया को इस स्थिति में लाने के आंशिक जिम्मेदार तो ये लोग भी हैं और इस स्थिति से उबारने की जिम्मेदारी भी अब उनकी ही है। विश्व, इन सूरमाओं को बड़ी उम्मीदों से देख रहा है। देखना अब ये है कि कौन चुनातियों को सामने से लेता है और कौन पीठ दिखाता है। नेतृत्व की सही पहचान तो अब होगी। सारा संसार दर्शक है और यह सब प्रमुख खिलाडी मंच पर। संसार का हित इसी में है कि भूमिका साहसपूर्वक निभाएँ।