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Last Updated : बुधवार, 7 मार्च 2018 (14:24 IST)

दिल्ली सरकार और एमसीडी स्कूलों की हकीकत

दिल्ली सरकार और एमसीडी स्कूलों की हकीकत - Delhi government school
दिल्ली सरकार और एमसीडी दोनों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में घटते नामांकन चौंकाने वाले आंकड़े हैं। दिल्ली सरकार के स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन की संख्या में 28,000 की कमी आई है, वहीं एमसीडी के स्कूलों में यह आंकड़ा 20,000 का है। दिल्ली सरकार ने अपने घोषणा पत्र में 500 नए स्कूल खोलने का वादा किया था, मगर यही हालात रहे तो संभव है उन्हें जल्द ही 500 पुराने स्कूल ही बंद करना पड़ जाए।

 
लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। आज गरीब से गरीब आदमी भी करोड़ों रु. के खर्च से चल रहे सफेद हाथी यानी सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहता है और जैसे-तैसे गुजरा करने वाला गरीब रिक्शेवाला भी अपने आसपास के गैरमान्यता प्राप्त बजट प्राइवेट स्कूल में बच्चों को भेजना चाहता है जिसकी फीस बमुश्किल 200 से 1,000 रु. महीना तक क्षेत्रवार है। लेकिन हजारों गरीब बच्चों को जल्द ही ऐसे स्कूलों से हाथ धोना पड़ सकता है सरकार की कुछ लचर नीतियो के कारण। खबर है कि 3,000 से ज्यादा गैर पंजीकृत बजट निजी स्कूल मार्च से बंद हो जाएंगे।
 
 
बजट प्राइवेट स्कूलों के अखिल भारतीय संघ नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (निसा) ने गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों में आगामी सत्र से शैक्षणिक गतिविधियों को बंद करने के फरमान की कड़ी निंदा की है। निसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने कहा है कि सरकार दिल्ली में गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने में नाकाम रही है जिससे अभिभावक अपने बच्चों को फ्री सरकारी स्कूलों से निकालकर बजट प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाने लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 से 2015-16 बीच सरकारी स्कूलों में लगभग 1 लाख बच्चों का नामांकन घटा है जबकि प्राइवेट स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या इस दौरान लगभग डेढ़ लाख बढ़ी है।

 
चूंकि बजट स्कूलों के अधिकांश छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं और सरकारी स्कूलों में भी दाखिला लेने वाले छात्रों की बड़ी तादाद इसी वर्ग की होती है इसलिए अब सरकार अपने स्कूलों को भरने के लिए ऐसे छोटे अनरिकग्नाइज्ड स्कूलों को बंद करना चाहती है। कुलभूषण शर्मा ने कहा कि दिल्ली में एक भी स्कूल को बंद होने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने स्कूलों के समक्ष उत्पन्न ऐसी तमाम अन्य समस्याओं के विरोध में आगामी 7 अप्रैल को रामलीला मैदान में विशाल धरना-प्रदर्शन करने की घोषणा की।
 
 
प्राइवेट लैंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के चन्द्रकांत सिंह का कहना है कि सरकार ने 16 जून 2017 को एक नोटिफिकेशन जारी कर स्कूलों को मान्यता देने के नियमों को लचीला बनाने और गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों को मान्यता देने की संभावनाओं पर रिपोर्ट देने के लिए योगेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक 7 सदस्यीय कमेटी भी गठित की थी। लेकिन इस कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार करने और स्कूलों को मान्यता प्रदान करने की बजाए ऐसे स्कूलों में शैक्षणिक गतिविधियों को बंद करने का निर्देश जारी कर दिया गया। यह आदेश दिल्ली के गरीब वर्ग के छात्रों के हित में बिलकुल नहीं है और ऐसा फैसला हाल ही में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में प्री-बोर्ड परीक्षा के खराब परिणाम से सबका ध्यान भटकाने के उद्देश्य से किया गया प्रतीत होता है।
 
 
हाल में प्राइवेट लैंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन द्वारा एक आरटीआई में पूछा गया कि योगेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में कमेटी के फैसले की प्रति उपलब्ध करवाई जाए, तो जवाब में कहा गया कि इस विषय में कोई जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस कमेटी की कोई भी बैठक भी नहीं हुई। इसके बावजूद सरकार का आगामी सत्र से गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों को बंद करना एकतरफा फैसला है जिसका प्रभाव हजारों बच्चों के भविष्य पर पड़ेगा और अभिभावकों को न चाहते हुए भी अपने बच्चों को बदहाल सरकारी स्कूलों में भेजने को मजबूर होना पड़ेगा।
 
 
बेहतर तो ये होता कि इन स्कूलों का पक्ष सुना जाता और इन स्कूलों की कमियों को दूर करने का मौका दिया जाता जिससे कि हजारों विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित हो जाता। चिंता की रेखाएं सिर्फ स्कूल प्रबंधकों के माथे पर ही नहीं, बल्कि उन अभिभावकों के चेहरों पर भी हैं जिन्हें न चाहते हुए भी अपने नौनिहालों को सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाना होगा, क्योंकि दूसरे बड़े स्कूलों में दाखिला दिलवाना उनके बूते से बाहर है।

 
निसा के एडवोकेसी एसोसिएट थॉमस एंटोनी ने कहा कि दिल्ली सरकार ने विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर यह प्रचारित किया था कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में भारी सुधार हुआ है किंतु आज प्री-बोर्ड में छात्रों के खराब प्रदर्शन का ठीकरा अध्यापकों के ऊपर फोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि निसा दिल्ली में एक भी स्कूल बंद नहीं करने देगी और इसके लिए जो भी होगा, हरसंभव कदम उठाएगी।
 
 
सरकार के इस मनमाने कदम से संभव है कि आगामी सत्र में दिल्ली सरकार और एमसीडी के स्कूलों में छात्रों की कमी का मुद्दा खत्म हो जाए।
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