‘रक्तदान महादान’ के महान सूत्रवाक्य में कालिख पोतने के लिए अग्रसर तथाकथित समाजसेवा का ढोंग रचने वाले या अगर ऐसा कहा जाए कि उन दरिंदों की दरिंदगी का आलम यह है कि रक्तदान की आड़ लेकर ‘खून का व्यापार’ करने की दुकान चला रहे हैं तो आंखों से आंसू आ जाएंगे कि आखिर क्या यह सब भी कोई कर सकता है?
बीमारी किसी की जात-पात या आर्थिक स्थिति देखकर नहीं आती और जब गंभीर बीमारी हो और खून की कमी से व्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहा होता है।
तब बेचारे! असहाय लोग जीवन को बचाने के लिए ब्लडबैंक की ओर आशा भरी निगाहों से देखते हैं तो उत्तर एक्सचेंज में ब्लड देने की बात होती और जब वह व्यक्ति इस पर सहमति भी हो गए तो उनसे स्टाक की कमी है का बहाना बनाकर परेशान कर दिया जाता है।
इसके तुरंत कुछ मिनट में साइड के कार्नर में इमरजेंसी में ब्लड के इंतजाम करने की पेशकश कर खून के बदले रूपये की मांग की जाती है, जिसके लिए ब्लड बैंक के कर्मचारी या दलाल आगे आते हैं। इनकी चेन बड़ी लम्बी होती है इसे यूं समझिए कि एक व्यक्ति ब्लड डोनेट करवाता है और एक स्टाक तो दूसरा व्यवसाय जिसमें सभी की हिस्सेदारी तय होती है।
पीड़ित व्यक्तियों का एक बार तो कलेजा फट जाता है कि जो ब्लड अभी तक स्टाक में नहीं था वह रुपये का नाम लेते ही कई यूनिट तुरंत कैसे उपलब्ध हो जाता है?
लेकिन कहते हैं न कि मरता क्या न करता सो वे किसी भी तरह रूपये का इंतजाम कर जीवन की भीख लेते हैं। वहीं अगर जिसके पास रुपया न हुआ वह दम तोड़ने के लिए तैयार हो जाता है।
आप विश्वास नहीं करेंगे लेकिन यह सच है कि पर्दे के पीछे से वर्तमान समय में शासकीय चिकित्सालयों का ब्लडबैंक हो या कोई और अशासकीय ब्लडबैंक ‘खून के दलाल’ हर समय हर जगह सक्रिय रहते हैं।
कई विश्वसनीय सूत्रों के माध्यम से पता चलता रहा कि रक्तदान करवाकर रूपये कमाने का व्यवसाय शहरों एवं कस्बों के विभिन्न ब्लड बैंको में बड़े जोरों-शोरों से फल-फूल रहा है, किन्तु इस पर कोई भी जांच नहीं होती माना कि जांच के नाम पर खानापूर्ति कर दी गई।
इसी श्रृंखला में कई एनजीओ और संस्थाओं के साथ नाम भी जुड़े होते हैं जो समाजसेवा के नाम पर अग्रिम पंक्ति पर खड़े होते इतना ही नहीं उनकी संलिप्तता जगजाहिर होने के बावजूद भी कई दांव-पेंचो की जोरजमाइश करते हुए उन्हें पाक साफ घोषित कर दिया जाता है।
किन्तु फिर भी इस तरह के कार्य चलते रहते हैं तो आप ही तय कीजिए कि किस व्यवस्था पर विश्वास किया जाए?यह सब ठीक है कि सरकारी मशीनरी कुछ नहीं करती किन्तु हम सभी का अनभिज्ञ बने बैठे रहना कोई न्यायोचित कर्तव्य नहीं है।
आखिर! हमारी चुप्पी क्या दर्शाती है?
क्या हमने इस तरह के घ्रणित कृत्यों के लिए समाजसेवा की आड़ में अनुमति दे दी है? कि आप जो चाहो वह कर सकते हो क्योंकि आप पर समाजसेवी और तंत्र के अंग होने के ठप्पा लगने के कारण आपको कोई भी कुछ नहीं कह सकता। समाजसेवा के नाम पर लोगों को ठगने की प्रवृत्ति कब तक चलेगी? क्या आपके मानव होने का अर्थ ही शून्य हो गया कि आप धन कमाने के लोभ में ऐसे कार्य करने लगे।
यहां इस बात की बिल्कुल भी खिलाफत नहीं की जा रही है कि रक्तदान न करें बल्कि हमें बढ़चढ़कर मदद के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन आप सोचिए न! कि आप अगर किसी जरूरतमंद की मदद करने के लिए रक्तदान कर रहे हैं, किन्तु दूसरी ओर ये खाल ओढ़े हुए खून पिपासु भेड़िए उसी खून को बेचकर अपनी मोटी कमाई का जरिया बना रहे हों तो आप सब पर क्या बीतेगी?
क्या आप उन्हें माफ कर पाने में सक्षम होंगे या खुद को कोसेंगे? आपने कभी यह पता किया कि आप जो रक्तदान कर रहे हैं वह वास्तव में किसी जरूरतमंद के लिए ही उपयोग में आ रहा है या कि ब्लडबैंक में जमाकर उसको बेचने के लिए रिजर्व किया जा रहा है?
एक सामान्य नागरिक या रक्तदाता होने के कारण आपके पास यह भी अधिकार नही है कि ब्लड डोनेशन एवं स्टाक सम्बंधित जानकारी ले सकें? बाकी प्रशासन से ऐसे किसी भी मामले में किसी भी तरह की जांच एवं कार्रवाई करने की अपेक्षा न करनी चाहिए बल्कि ये उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर हौसला अफजाई करते रहते हैं ,इतना ही नहीं बल्कि इस गोरखधंधे में प्रशासनिक ढांचे का भी परसेंटेज फिक्स होने की बातें सामने आया करती हैं।
खैर! समाज के ऐसे कोढ़ को नष्ट करने की बजाय हम उसे अपना भाग्य समझकर छोड़ देते हैं, जबकि ऐसे लाईलाज होने का दावा करने वाले मर्ज को जड़ से काट देना चाहिए। मामला यह नहीं है कि किसी से प्रतिद्वंदिता बन जाएगी या कि इसका हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा लेकिन अगर आप ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और गलत के विरुद्ध आवाज नहीं उठाएंगे तो कैसे काम चलेगा?
सरकारी तंत्र के साथ ही हम सभी की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है ऐसे सभी लोगों को ऐहसास करवाएं कि ये जो रक्तदान के नाम पर कालाबाजारी का गोरखधंधा कर रहे हैं उन तक सभी की नजर है तथा किसी न किसी दिन उनकी भी गर्दन नप सकती है।
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नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)