ऑपरेशन खुलवाकर फिर पुत्र ही जन्म देना है, बात जहरीली है...
कितने धूमधाम से कन्या जिमाई, उनकी पूजा की, पैर धोये, खिलाया-पिलाया, दक्षिणा दी ताकि मातारानी प्रसन्न हों और सारे सुख प्रदान करें। पर खुद के घर कन्या जन्म न होने पाए इसका पूरा ख्याल कुछ लोगों द्वारा रखा जाता है। ऐसे ही कुछ हादसे नजर में आते हैं. जैसे एक दिन मैं डॉ.जया मिश्र जो मेरी भतीजी है और मातारानी की कृपा से मरीजों का उस पर अटूट विश्वास रहता है, से बातों बातों में ऐसी बातें मालूम हुईं जो लगती छोटी हैं पर उनकी मार बड़ी गहरी है और तो और पूरे देश का, धर्म का भविष्य इससे अंधकारमय होने का खतरा दबे पांव बढ़ता चला जा रहा है।
हो यह रहा है कि अधिकतर यदि परिवार में किसी दंपत्ति को पहली संतान पुत्र हो जाये तो वो फिर दूसरी संतान के बारे में सामान्यतः विचार नहीं करते। कई मामलों में तो वे महिला का ऑपरेशन भी करा देते हैं। इसमें शिक्षित/अशिक्षित होने का कोई भी फर्क नहीं पड़ता। सामाजिक पारिवारिक मान्यताएं व परम्पराएं भी हावी रहती हैं। अच्छी परवरिश, आर्थिक कारणों के साथ साथ कन्याओं के साथ जुड़े हुए सामाजिक दोयम दर्जे की सोच व व्यवहार भी कन्या न होने देने का एक कारण होता है। पर केवल देश का एक धर्म विशेष वर्ग ही इससे तीव्र गति से प्रभावित हो रहा है। अपने आसपास नजर डालें, ऐसे कई परिवार हैं जिनके परिवार को वे पुत्र मात्र के साथ पूर्ण मान चुके हैं।
बात यहीं खत्म न हो रही। दुर्भाग्यवश यदि बालक की अल्पावधि/कमउम्र में मृत्यु हो जाती है तो उस महिला का पुनः ऑपरेशन खुलवाया जा रहा है, ताकि वो गर्भवती हो उन्हें संतान दे सके। एक बात और गौरतलब है कि अधिकांशतः नसबंदी पुरुष नहीं महिलाओं की कराई जाती है। पुरुष इसे अपनी मर्दानगी पर खलल समझता है. इसलिए ये क्रिया भी महिलाओं को ही झेलना है,स्वास्थ्य की परवाह किये बिना। कम बच्चे अच्छे बच्चे, शेर के बच्चे दो ही अच्छे, कम संतान सुखी इंसान जैसे कई नारे तो सरकार ने दिए पर नागरिकों द्वारा सामान रूप से इन्हें पालन न करवा पाने का दण्ड समूचे राष्ट्र की असंतुलित होती आबादी से चुकाना पड़ रहा है।
बात को आगे बढ़ाने से पहले डॉ. जया मिश्रा की पोस्ट पर भी नजर डालते हैं। उन्होंने अपनी दो पेशेंट का परिचय दिया है, अनीता और संजू बाई(नाम बदल दिए गए हैं) दोनों ही बहुत खुश नजर आ रही हैं। क्योंकि दोनों को लड़का हुआ है। इनकी परेशानी यह थी कि इन्होंने नसबंदी करा ली थी और उसके बाद इनके लड़कों की मृत्यु हो गई थी। मैंने जेके हॉस्पिटल में इन दोनों का नस खोलने का ट्यूबो प्लास्टी का ऑपरेशन किया था, जो सफल रहा।
आमतौर पर गांव में आजकल एक रिवाज चल रहा है। विशेषकर कुछ समुदायों में....एक लड़का होने के बाद नसबंदी का ऑपरेशन करवाने का। अभी तक लगभग 200 से ऊपर नसबंदी खोलने के ऑपरेशन मैं कर चुकी हुं। लगभग 90%ऑपरेशन सफल होते हैं। कई बार गांव में एक बच्चा जिसकी मां ने अपने ऑपरेशन करा लिया है उस बच्चे की मृत्यु हो जाती है। अभी कुछ दिन पहले 3 मरीज का ऑपरेशन किया जिनके बच्चों की मृत्यु का कारण सांप का काटना था।कई बार होज में गिरना, ट्रैक्टर के नीचे आ जाना या कोई बीमारी के कारण बच्चों के बच्चों की मृत्यु हो जाना जैसे कारण रहते हैं।
यह मेरा फेवरेट ऑपरेशन है क्योंकि इसे में पूरे दिल से करती हूं। एक बच्चे के बाद अगर बच्चा नहीं चाहिए तो copper-t जैसे उपाय भी किए जा सकते हैं। कई बार सीधे नसबंदी कराना वह भी पहले बच्चे की उम्र 5 साल से कम है, मेरे हिसाब से गलत होता है ईश्वर ना करें ऐसी समस्या कभी आए। लड़कियों के संख्या के कम होने का भी एक बहुत बड़ा कारण है एक लड़के के बाद नसबंदी का ऑपरेशन करवाना।
दुख तब होता है जब आंकड़े कहते हैं कि इन दुर्घटनाओं का शिकार ज्यादातर केवल महिलाएं हो रही हैं। उनकी अपनी मर्जी कहीं भी शामिल है या नहीं कोई नहीं समझना चाहता। वे मशीन हैं। छोटे परिवारों की मानसिकता ने यदि क्षणिक सुख दिए हैं तो सामजिक दीर्घावधि संकटों के बीज भी बो दिए हैं। जरुरत है इन छोटे लगने वाले पर खतरनाक परिणाम को अपने में समेटे वृहद विनाशकारी विचारधाराओं के प्रति सजग होने की। सावधानी बरतने की। व्यक्ति, घर, समाज और देश में घटती कन्या के कारणों को समूल नष्ट करने की। वरना वे दिन दूर नहीं जब हमें अपने देश का नाम हिंदुस्तान नहीं कुछ और सुनने को मिले और हम किसी इतिहास और कहानियों किस्सों का हिस्सा मात्र बन जाएं...