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#अधूरीआजादी : जो लिंकन ने किया, वह नेहरू क्यों नहीं कर सकते थे?

#अधूरीआजादी : जो लिंकन ने किया, वह नेहरू क्यों नहीं कर सकते थे? - Abraham Lincoln, Jawaharlal Nehru, American Civil War
अब्राहम लिंकन की "प्रेसिडेंशियल टाइमलाइन" "अमेरिकन सिविल वॉर" के एकदम समांतर थी। 1861 से 1865 तक! यानी लिंकन का लगभग पूरा कार्यकाल गृहयुद्ध से जूझते बीता। 
 
लेकिन यह सिविल वॉर था क्या? यह अमेरिकी मेनलैंड और "साउथ" में बसे अश्‍वेतों के बीच छिड़ी स्वायत्तता की लड़ाई थी, जिसमें साउथ के मिसिसिपी, टेक्‍सस, टेनसी, वर्जीनिया जैसे स्‍टेट अपना एक पृथक "कंफ़ेडरेट" चाहते थे। मांग जायज़ थी। अश्वेतों के साथ अतिचार होता था। नस्लवाद था। दासप्रथा थी। बहुसंख्यकों द्वारा शोषित अल्पसंख्यक थे, जबकि ये गोरे बहुसंख्यक स्वयं औपनिवेशिक ताक़तों के वंशज थे, वहां के मूल निवासी तो रेड इंडियन आदिवासी थे। यह सब "वेल डॉक्यूमेंटेड" है! 
 
यानी भारत से ठीक उलट स्थिति थी!  
 
बंटवारे की मांग सामने आई। लेकिन लिंकन को ये मंज़ूर नहीं था। 
 
लिंकन सिविल वॉर को उसकी परिणति तक ले गए, किंतु "अमेरिकी यूनियन" को अक्षुण्‍ण और अविभाज्य रखते हुए। अश्वेतों का तुष्टीकरण उन्होंने संविधान में तेरहवें संशोधन के मार्फ़त दासप्रथा को समाप्‍त करके कर दिया। अब एक कुशल "राजनेता" और संवेदनशील "महामानव", दोनों ही रूपों में लिंकन की विरासत सुरक्षित थी। 
 
अलबत्ता इतिहासकारों में इसको लेकर मतभेद हैं कि लिंकन का "थर्टीन्‍थ अमेंडमेंट" उनकी मानवीय करुणा का द्योतक था या फिर वे एक चतुर राजनेता की तरह "स्‍लैव ट्रैड" को ख़त्‍म कर "कंफ़ेडरेट स्‍टेट्स" की आर्थिक रूप से कमर तोड़ देना चाहते थे। ठीक उसी तरह, जैसे हमारे यहां प्राचीन भारत के इतिहासकारों में विभेद है कि अशोक का धम्‍म करुणा से प्रेरित था या जनसांख्यिकीय राजनीति से?
 
लेकिन लिंकन ने अमेरिका को टूटने नहीं दिया, जबकि अमेरिकी गोरे वहां की नीग्रो आबादी के समक्ष स्पष्टतया ऐतिहासिक अपराधी थे। 
 
भारत में वैसा ही अमरत्व का अवसर जवाहरलाल नेहरू के समक्ष आया था, जबकि आश्चर्य कि बंटवारे की मांग उनके द्वारा की जा रही थी, जिन्होंने उल्टे ऐतिहासिक रूप से भारत को लूटा-खसोटा था। वह लुटेरों द्वारा लूट के मुआवज़े की मांग थी! हर लिहाज़ से अनुचित और अनैतिक और असंभव! बहुसंख्यकों के अंतर्तम पर अमरीकी गोरों की तरह कोई अपराध बोध न था, इतिहास उनके पक्ष में था! 
 
और इसके बावजूद हमारे कर्णधार ने क्या किया?
 
भारत का इतिहास शायद ही कभी नेहरू को 1947 में दिखाई गई उनकी विवशता के लिए माफ़ करे, जबकि अमेरिका का इतिहास हमेशा लिंकन को 1865 में उनके द्वारा दिखाई गई दूरदर्श‍िता के लिए आशीष देता रहता है।
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