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एक सकारात्मक मुहिम : हां, हम सब हिंदी मीडियम वाले हैं

एक सकारात्मक मुहिम : हां, हम सब हिंदी मीडियम वाले हैं - A positive campaign: Yes, we are all Hindi medium
हिंदी बोलने वालों की संख्या तो 50 करोड़ से भी ज़्यादा है, लेकिन हिंदी मीडियम वाले अभी भी किसी न किसी हीन ग्रंथि से ग्रस्त दिखते हैं। किसी एक दिन हिंदी का गुणगान और शेष दिन उसके नाम पर शर्म करने से बेहतर है हालात को बदलने के लिए कुछ किया जाए। विज्ञान, तकनीक, कारोबार, इनोवेशन, शोध और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में हिंदी को मजबूत बनाने और हिंदी भाषियों को इन क्षेत्रों की तरफ आकर्षित करके हम हालात बदलने की तरफ़ बढ़ सकते हैं। क्योंकि हिंदी को बाज़ार और रोज़गार की भाषा बनाए बिना उसके प्रति स्थायी आकर्षण तथा आत्मविश्वास पैदा करना मुश्किल है।

हिंदी के जाने-माने तकनीक विशेषज्ञ बालेन्दु शर्मा दाधीच ने इस दिशा में एक मुहिम छेड़ी है, जिसे नाम दिया है- ‘हम हिंदी मीडियम’। उनकी कोशिश है कि हिंदी भाषियों को नए तथा आधुनिक कौशलों से लैस किया जाए ताकि वे नए अवसरों का लाभ उठाएं और खुद भी अवसर पैदा करें। हर शनिवार को इस समूह के जरिए सैंकड़ों हिंदी भाषियों को तकनीक, विज्ञान और अन्य आधुनिक क्षेत्रों में नए कौशल का ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया जाता है। समूह का स्लोगन है-
सीखो-सिखाओ
कौशल बढ़ाओ
कुछ कर दिखाओ।

पहले पहल इसका फ़ेसबुक पेज बनाकर फौलादी इरादों से लोगों को जोड़ा गया ताकि लोगों में अपनी भाषा के ज़रिए कुछ कर दिखाने का जज़्बा पैदा हो। इसके जनक तकनीक विद बालेंदु शर्मा दाधीच के सामने अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज, विजय शेखर शर्मा (पेटीएम), कपिल देव, मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, आशुतोष राणा, इरफान खान, गीतांजलि श्री जैसे अनगिनत आदर्श हैं और दाधीच का मानना है कि अगर वे कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं। वे इसे एक जनांदोलन की शक्ल देना चाहते हैं, ताकि कौशल विकास का यह सिलसिला चंद लोगों या दिखावटी दावों तक ही सीमित न रहे।

वे ‘हिंदी मीडियम’ (हिंदी माध्यम से पढ़ाई करना) को हीनता की ग्रंथि से बाहर निकालकर आत्मविश्वास तथा सम्मान का प्रतीक बना देना चाहते हैं। बालेंदु कहते हैं, अपने ही देश में अपनी भाषा बोलने, समझने, लिखने से हमारा आत्मविश्वास हिलना नहीं चाहिए। हमारे भीतर वह दमखम होना चाहिए कि जहां तमाम लोग अंग्रेज़ी में बोल रहे हों, वहां पर हम हिंदी में प्रखरता के साथ अपनी बात कह सकें- बिना इस बात की फ़िक्र किए कि कौन कैसी प्रतिक्रिया देता है। वह काबिलियत होनी चाहिए जिसकी बदौलत आज की प्रतिद्वंद्विता भरी दुनिया में भी हम अपनी जगह बना सकें- रोज़गार के लिए, कारोबार के लिए और अपनी पहचान के लिए।

वे हिंदी के व्यापक, उदार तथा आधुनिक चेहरे का प्रतिनिधित्व करना पसंद करते हैं। वे हिंदी को रचनात्मक और सकारात्मक सामाजिक आंदोलन की रीढ़ बना रहे हैं। वे कहते हैं कि हमें अपनी सोच बदलने के लिए खुद आगे आना है, खुद को और ज़्यादा सक्षम बनाना है,और सबसे ऊपर, हिंदी के प्रति हीनता का भाव निकाल फेंकना है, क्योंकि हिंदी की स्थिति हम ही बदल सकते हैं और हमारी स्थिति हिंदी बदल सकती है। चलिए, हम गुंजा दें आसमान यह घोषणा करके कि हां, हम सब हिंदी मीडियम वाले हैं और हिंदी मीडियम में दम है।