Mother Day 2024 : भारत में मां का बहुत महत्व माना गया है। यहां पर नदी, गाय, भूमि और सभी देवियों को मां माना गया है। भारत के प्राचीन काल में गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, विश्ववारा, लोपामुद्रा, विद्योत्तमा, अहिल्या आदि ऐसी कई साध्वियां थीं जिन्हें माता कहा जाता है। इसी तरह मध्यकाल में भी बहुत सी संत महिलाएं थीं जिन्हें आज मां की तरह पूजा जाता है। जैसे, मां अहिल्याबाई होळकर, संत मीराबाई, संत मुक्ताबाई, सहजोबाई, लाल देद, अक्का महादेवी, गंगा महासती, कराईक्कल अम्मैय्यर, अंडर गोडादेवी आदि। आओ जानते हैं आधुनिक काल महिला संतों को जो मातृत्व की प्रतीक हैं।
1. अमृतानंदमयी अम्मा : अध्यात्म की दुनिया में सबसे ज्यादा चमकता हुआ नाम मां अमृतानंदमयी अम्मा को सभी अम्मा कहते हैं और वे मां की तरह ही सभी को दुलार करती हैं। उनका जन्म नाम सुधामणि इदामाननेल। उनका जन्म 27 सितंबर 1953 को कोल्लम में हुआ था। दक्षिण भारत में उन्हें अम्मा कहते हैं। उन्हें पुरी दुनिया 'गले लगाने वाली संत' के रूप में जानती है। उनका मठ संपूर्ण विश्व में मानव सेवा और सामाजिक कार्यों के लिए भी जाना जाता है।
2. मां निर्मला देवी : उन्होंने सहजयोग का आंदोलन चलाकर खुद को स्थापित किया। उन्हें श्रीमाताजी कहा जाता है। श्री माताजी को उनके नि:स्वार्थ कार्य के लिए और सहजयोग के माध्यम से उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं के उल्लेखनीय परिणामों के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में जन्मीं श्री निर्मला साल्वे को बाद में निर्मला श्रीवास्तव (शादी के बाद) के रूप में जाना जाने लगा। 21 मार्च 1923 को माता निर्मला देवी का जन्म हुआ था।
3. मां अमृत साधना : ओशो की संन्यासन और उनकी कई किताबों की अनुवादक हैं मा अमृत साधना। वह 70 के दशक की शुरुआत से ही ओशो के साथ रही हैं। ओशो के जाने के बाद ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट की सभी गतिविधियों में शामिल रहकर उन्होंने सभी पर मां जैसा प्यार लुटाया है। उन्होंने भारतीय समाचार पत्रों के लिए ध्यान, स्वास्थ्य और खुशहाली आदि पर कई विचार-लेख लिखे हैं।
4. श्रीमाता : फ्रासंसी मूल की श्रीमाता का जन्म नाम मीर्रा अल्फासा था। वह श्री अरविंदों की शिष्या थीं। वे अरविंदों के पुद्दुचेरी आश्रम में रहती थीं। श्रीमां का जन्म 1878 में पैरिस में हुआ था। उनके पिता टर्किस इहुदी मरिस तथा माता माथिलडे इजिप्टियन थीं। 1914 में वह अरविंदों आश्रम आ गई। 1920 में वह अरविंदों आश्रम की मार्गदर्शक बन गई थीं।
5. एनी बेसेंट : आध्यात्मिक और राजनीतिक रूप से सोए हुए भारत को जगाने के लिए भारत को अपना घर कहने वाली एनी बेसेंट ने दुनियाभर के धर्मों का गहन अध्ययन किया। उन धर्मों को जाना-परखा और बाद में समझा कि वेद और उपनिषद का धर्म ही सच्चा मार्ग है। एनी का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को लंदन में हुआ। उनका जन्म नाम एनी वुड था। वे थियोसॉफी सोसाइटी से जुड़ी हुई थी जिसे मादाम ब्लावाटस्की ने प्रारंभ किया था। 24 दिसंबर 1931 को अड्यार में अपना अंतिम भाषण दिया। 20 सितंबर 1933 को शाम 4 बजे, 86 वर्ष की अवस्था में, अड्यार, चेन्नई में देह त्याग दी। 40 वर्ष तक भारत की सेवा करके उसे आध्यात्मिक और राजनीतिक रूप से जगाने के लिए उन्हें धन्यवाद।
6. शारदा देवी : शारदा देवी (जन्म- 22 सितंबर, 1853, मृत्यु- 20 जुलाई, 1920) रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी थीं। रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवी को आध्यात्मिक ज्ञान दिया और देवी शारदा बाद में मां शारदा बन गईं। 1888 ई. में परमहंस के निधन के बाद उनके रिक्त स्थान पर उन्होंने की आश्रम का कामकाज संभाला। रामकृष्ण परमहंस ने शारदादेवी से विवाह किया था। उनकी पत्नी पहले उन्हें पागल समझती थी बाद में उन्हें समझ आया कि यह तो ज्ञानी और सिद्ध है। रामकृष्ण परमहंस अपनी पत्नी को मां कहते थे, जो उम्र में उनसे बहुत छोटी थी।
मां शारदा देवी और स्वामी विवेकानंद के बाद सिस्टर निवेदिता ने आश्रम का कामकाज संभाला। स्वामी विवेकानंदजी की शिष्या सिस्टर निवेदिता पूरे भारतवासियों की स्नेहमयी बहन थीं। सिस्टर निवेदिता का असली नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबुल था। 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड में जन्मी मार्गरेट नोबुल हिन्दू धर्म और स्वामीजी से प्रभावित होकर संन्यासी बन गई। सिस्टर निवेदिता ने जिस छोटे से विद्यालय की नींव रखी थी आज यह विद्यालय 'रामकृष्ण शारदा मिशन भगिनी निवेदिता बालिका विद्यालय' के नाम से जाना जाता है। 13 अक्टूबर 1911 को पर चिरनिद्रा में लीन हो गई।
- अनिरुद्ध जोशी