महात्मा गांधी के सबसे बड़े आलोचक ओशो रजनीश
ओशो रजनीश ने अपने एक प्रवचन में कहा था कि यदि मैं आपको समझ में नहीं आता हूं तो मेरी आलोचना जरूर करना, क्योंकि उपेक्षा से मुझे डर लगता है। समर्थन भले ही कम हो, लेकिन आलोचक होना चाहिए।...उपरोक्त बातें लिखने का आशय यह कि ओशो रजनीश महात्मा गांधी के सबसे बड़े आलोचक जरूर थे लेकिन उनकी आलोचना में ही उनका समर्थन छुपा हुआ था।
ओशो की एक किताब है : 'अस्वीकृति में उठा हाथ'। यह किताब पूर्णत: गांधी पर केंद्रित है। ओशो ने अपने अधिकतर प्रवचनों में गांधीजी की विचारधारा का विरोध किया है। उनका मानना था कि यह विचारधारा मनुष्य को पीछे ले जाने वाली विचारधारा है। यह आत्मघाती विचारधारा है। ओशो कहते हैं, 'गांधी गीता को माता कहते हैं, लेकिन गीता को आत्मसात नहीं कर सके, क्योंकि गांधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को कहां रखेगी? तो गांधी उपाय खोजते हैं, वे कहते हैं कि यह जो युद्ध है, यह सिर्फ रूपक है, यह कभी हुआ नहीं।'
कृष्ण की बात गांधी की पकड़ में कैसे आ सकती है? क्योंकि कृष्ण उसे समझाते हैं कि तू लड़। और लड़ने के लिए जो-जो तर्क देते हैं, वह ऐसा अनूठा है, जो कि इसके पहले कभी भी नहीं दिया गया था। परम अहिंसक ही दे सकता है, उस तर्क को। ओशो कहते हैं, मेरी दृष्टि में कृष्ण अहिंसक हैं और गांधी हिंसक। दो तरह के लोग होते हैं, एक वे जो दूसरों के साथ हिंसा करें और दूसरे वे जो खुद के साथ हिंसा करें। गांधी दूसरी किस्म के व्यक्ति थे।
ओशो कहते हैं कि महात्मा गांधी सोचते थे कि यदि चरखे के बाद मनुष्य और उसकी बुद्धि द्वारा विकसित सारे विज्ञान और टेक्नोलॉजी को समुद्र में डुबो दिया जाए, तब सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। और मजेदार बात इस देश ने उनका विश्वास कर लिया! और न केवल इस देश ने बल्कि दुनिया में लाखों लोगों ने उनका विश्वास कर लिया कि चरखा सारी समस्याओं का समाधान कर देगा। दूसरी बात यह कि दरिद्र को नारायण कहने का मतलब यह कि आप दरिद्रता को महिमामंडित कर रहे हैं। दरिद्र को नारायण कहने के कारण देश में दरिद्रता फैल गई है। यदि दरिद्रता और गरीबी को सम्मान देंगे तो आप कभी उससे मुक्त नहीं हो सकते।
ओशो कहते हैं कि यह देश सदियों से महात्माओं को पूजने वाला देश रहा है और जब कोई व्यक्ति महात्मा जैसे कपड़े पहनकर कोई बात कहेगा तो निश्चित ही उसकी बात को महत्व दिया जाएगा। महात्मा गांधी इस देश की चेतना में इस कदर बैठ गए हैं कि उन्हें बाहर निकालना मुश्किल है। ओशो का मानना था कि मुझे गांधी और उनके चरित्र से कोई दिक्कत नहीं है परंतु उनके विचार और उनके निर्णय ने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है। ओशो ने गांधी की सिर्फ आलोचना ही नहीं कि उन्होंने उनके कई विचारों का समर्थन भी किया है।
संदर्भ : 'अस्वीकृति में उठा हाथ'