यह सवाल सिर्फ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (मामाजी) से ही नहीं है, बल्कि केन्द्र सरकार समेत उन सभी राज्य के मुख्यमंत्रियों से है, जहां बोर्ड की परीक्षाएं रद्द कर दी गईं। दरअसल, 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाएं लगभग सभी राज्यों में रद्द कर दी गई हैं। इन सभी परीक्षाओं के लिए विद्यार्थियों से परीक्षा शु्ल्क भी लिया गया था। ऐसे में प्रश्न उठना भी चाहिए कि जब परीक्षाएं ही नहीं तो शुल्क कैसा?
सीबीएसई 12वीं में ही करीब 14 लाख विद्यार्थी परीक्षा में बैठने वाले थे। मध्यप्रदेश में ही 10वीं और 12वीं की परीक्षा में करीब 15 लाख विद्यार्थी बैठने वाले थे। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि कोरोना (Corona) काल में पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे परिवारों को यह परीक्षा शुल्क की राशि लौटाई जाएगी?
मध्यप्रदेश में 10वीं और 12वीं की परीक्षा के लिए बोर्ड ने 900 रुपए शुल्क रखा गया था। इसके अलावा इसके लिए 10 हजार रुपए तक लेट फीस भी तय की गई थी। बोर्ड की अधिसूचना के अनुसार 15 दिसंबर 2020 तक 900 रुपए शुल्क के साथ फॉर्म भरे गए थे, जबकि 31 दिसंबर तक 2000 रुपए और 31 जनवरी 2021 तक 5000 रुपए विलंब शुल्क के साथ परीक्षा फॉर्म भरे गए।
वहीं, पहले प्रश्न पत्र (परीक्षा शुरू होने से पहले) से एक माह पहले विद्यार्थी 10 हजार रुपए विलंब शुल्क के साथ परीक्षा फॉर्म भर सकता था। हालांकि अनुसूचित जाति और जनजाति के विद्यार्थियों को जाति और आय प्रमाण पत्र के आधार पर परीक्षा शुल्क में छूट भी दी जाती है। ऐसे में यह राशि करोड़ों में होती है।
कहां हुई सरकार को बचत : परीक्षा रद्द होने के बाद कई मद ऐसी हैं, जहां बोर्ड को सीधी-सीधी बचत हुई है। अभी सिर्फ मार्कशीट जारी करने में जो खर्च होना है, वही होना है। बोर्ड को परीक्षा सेंटर बनाने के लिए लगने वाला खर्च बच गया। साथ ही कॉपी चेक करने में लगने वाला खर्च भी इस बार नहीं होगा।
जानकारी के मुताबिक 12वीं की कॉपी चेक करने के लिए परीक्षक को 13 रुपए का भुगतान किया जाता है, जबकि 10वीं की कॉपी जांचने के लिए 12 रुपए पारिश्रमिक दिया जाता है। इसके अतिरिक्त मुख्य परीक्षक को 600 रुपए (वाहन भत्ते सहित) और उपमुख्य परीक्षक/सुपरवाइजर को 530 रुपए (वाहन भत्ते सहित) पारिश्रमिक के रूप में दिए जाते हैं।
इसके अलावा कॉपी और पेपर जिले व केंद्र तक पहुंचाने और परीक्षा संपन्न होने के बाद लिखित सामग्री केंद्र से जिले व फिर मूल्यांकन केंद्र तक पहुंचाने का परिवहन व्यय जो कि लाखों में होता है, वह भी बच गया। बताया जा रहा है कि इस बार प्रायोगिक परीक्षाएं भी नहीं हुईं, यह व्यय भी बच गया।
...और यह सबसे बड़ा खर्च भी बचा : इसके साथ ही मध्यप्रदेश सरकार एक और बड़ी राशि बच गई, जो कि मेधावी छात्रों को हर साल प्रदान की जाती है। वर्ष 2020 में सरकार ने कक्षा 12वीं की परीक्षा में 80 प्रतिशत तथा उससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले 40 हजार 542 विद्यार्थियों को 25 हजार प्रति विद्यार्थी के मान से 101 करोड़ रुपए प्रदान किए थे। इस बार चूंकि परीक्षा ही नहीं हो रही है, ऐसे में मेधावी योजना पर भी सरकार का खर्च नहीं होगा।
सीबीएसई और देश के अन्य राज्यों को अलग रख भी दें तो मध्यप्रदेश सरकार को ही इस बार करीब 150-200 करोड़ रुपए की बचत हो रही है। ऐसे में यदि सरकार बच्चों को अंक सूची तैयार करने का खर्चा काटकर परीक्षा शुल्क की राशि लौटा देती है, तो बुरे वक्त में यह राशि लोगों के काम आएगी।