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Last Updated : मंगलवार, 24 सितम्बर 2024 (22:24 IST)

पं. दीनदयाल उपाध्याय : स्वावलंबी और समर्थ समाज निर्माण के प्रेरक

पं. दीनदयाल उपाध्याय : स्वावलंबी और समर्थ समाज निर्माण के प्रेरक - Pt. Deendayal Upadhyaya is the motivator of building a self reliant and capable society
-डॉ. मोहन यादव
 
विलक्षण व्यक्तित्व के धनी, ऋषि राजनेता, एकात्म मानव दर्शन तथा अंत्योदय के प्रणेता और हमारे मार्गदर्शकपंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के चरणों में कोटिश: नमन। संपूर्ण समाज, मानवता और राष्ट्र के लिए समर्पित श्रद्धेय दीनदयाल जी ने राष्ट्र निर्माण के लिए जो सूत्र दिए हैं वह भारतीय संस्कृति, परंपरा, देशज ज्ञान और एकात्म पर केंद्रित हैं।
 
श्रद्धेय दीनदयाल जी ने जनसंघ की स्थापना से लेकर अंतिम सांस तक, अपने जीवन को यज्ञ में आहुति की तरह समर्पित किया और समग्र कल्याण का दर्शन दिया। इस दर्शन को विश्व एकात्म मानवदर्शन के रूप में जानता है।
 
पंडित जी मौलिक विचारक थे। उनका कहना था कि हमारी विरासत हजारों साल पुरानी है। हमें अतीत से प्रेरणा लेनी है और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करना है। उनका मानना था, जब समाज आत्मनिर्भर होगा तभी स्वाभिमानी होगा और जब स्वाभिमानी होगा तभी स्वावलंबी होगा। वे कहते थे, हमें देशानुकूल होने के साथ युगानुकूल भी होना है।
 
मौलिक भारतीय चिंतन के आधार पर विकास के लिए पंडित दीनदयाल जी ने एकात्म मानव दर्शन दिया। एकात्म मानव दर्शन में व्यक्ति के सुख की समग्र परिकल्पना की गई है। इसमें शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के समन्वय तथा एकात्मता का विचार है। यह दर्शन समस्त मानव के उत्थान पर केंद्रित है। इसमें सहज, सरल और सरस समाज निर्माण का मार्ग है। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का सबका साथ, सबका विकास और सबका कल्याण इसी अवधारणा का प्रकटीकरण है।
 
पंडित दीनदयाल जी ने अपने व्याख्यानों में विकास और निर्माण का मंत्र दिया। वे कहते थे, स्वाभिमानी बनो! अपने पुरुषार्थ से स्वाभिमानी कैसे बना जाए वह इसका भी उल्लेख करते थे। उन्होंने देश-दुनिया को चतुर्पुरुषार्थ की संकल्पना दी।ए पुरुषार्थ हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। यह चतुर्पुरुषार्थ मन, बुद्धि,आत्मा और शरीर के संतुलन से संभव हैं। इनके द्वारा ही एक आदर्श समाज और आदर्श राष्ट्र का निर्माण हो सकता है।
 
पहला पुरुषार्थ धर्म है जिसमें शिक्षा, संस्कार और व्यवस्थाहै तो दूसरे अर्थ में साधन, संपन्नता और वैभव आता है। अर्थ उपार्जन सही तरीके से हो, इसके लिए पंडित दीनदयाल जी ने मानव धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इस तरह धर्मानुकूल, अर्थातउचित मार्ग से अर्थ उपार्जन करने का मार्ग प्रशस्त किया। तीसरा पुरुषार्थ है काम, जिसमें मन की समस्त कामनाएं शामिल हैं। मनुष्य को संतुलित, समयानुकुल और सकारात्मक स्वरूप में कार्य करना चाहिए। चौथा पुरुषार्थ है मोक्ष, अर्थातसंतोष की परम स्थिति। यदि व्यक्ति संतोषी होगा तो वह समाज और राष्ट्र निर्माण का आधार बन सकता है।
 
इन 4 पुरुषार्थों की अवधारणा के अनुसार यदि व्यक्ति और समाज को विकास के अवसर दिए जाएं तो स्वावलंबी और समर्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है। इस समाज की परिकल्पना हमारे वेदों में की गई है। यही पंडित दीनदयाल जी की एकात्म मानव दर्शन की मूल अवधारणा है।
 
पंडित दीनदयाल जी की स्वावलंबी समाज निर्माण की अवधारणा को हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी विश्वकर्मा योजना, आत्मनिर्भऱ भारत, स्टार्टअप इंडिया, वोकल फॉर लोकल, एक भारत श्रेष्ठ भारत आदि योजनाओं के माध्यम से धरातल पर लाने को प्रयासरत हैं। इन योजनाओं ने समाज को सशक्त बनाया और हर जन की अंतरात्मा को पुरुषार्थ करने के लिए प्रेरित किया है।
 
अंत्योदय अर्थात समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अंत्योदय के लिए जो मार्ग बताया था, वह माननीय प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में धरातल पर दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी गांव, गरीब, किसान, वंचित, शोषित, युवा और महिलाओं के कल्याण के लिए संकल्पित हैं। देश के गरीब से गरीब व्यक्ति के जीवन में सामाजिक सुरक्षा, मुद्रा, जनधन, उज्ज्वला, स्वच्छता मिशन, शौचालय निर्माण, दीनदयाल ग्राम ज्योति, प्रधानमंत्री आवास, जन औषधि केंद्र तथाआयुष्मान भारत जैसीजनकल्याणकारी योजनाओं से अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है।
 
मुझे यह बताते हुए संतोष है कि हम समाज के सभी वर्गों की सहभागिता के साथ, सबके विकास को ध्यान में रखते हुए कार्य कर रहे हैं। प्रदेश में प्रत्येक स्तर पर त्वरित पारदर्शी उत्तरदायी तथा संवेदनशील शासन व्यवस्था सुनिश्चित करने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से हम हर जन के कल्याण और प्रदेश के विकास के लिए चार मिशन, युवा शक्ति मिशन, गरीब कल्याण मिशन, किसान कल्याण मिशन और नारी सशक्तिकरण मिशन बनाकर काम करने जा रहे हैं। इससे युवा, गरीब, किसान और महिलाओं के समग्र विकास पर कार्य किया जाएगा। यह मिशन पंडित दीनदयाल जी के अंत्योदय कल्याण के लक्ष्य पूर्ति में सहभागी बनेंगे।
 
मध्यप्रदेश में गरीब कल्याण के लिए कई योजनाएं और कार्य अमल में लाए जा रहे हैं। इनमें इंदौर की हुकुमचंद मिल के 4 हजार 800 श्रमिक परिवारों को उनका अधिकार दिया गया है। स्वामित्व योजना के माध्यम से 23 लाख 50 हजार लोगों को भू-अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं।
 
मुख्यमंत्री जनकल्याण योजना 2.0 के अंतर्गत 30 हजार 500 से अधिक श्रमिक परिवारों को 670 करोड़ रुपए से अधिक की अनुग्रह सहायता प्रदान की गई है और सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना से प्रतिमाह 55 लाख 60 हजार से अधिक हितग्राहियों को पिछले एक वर्ष में लगभग 4 हजार करोड़ रुपए से अधिक की पेंशन राशि वितरित की गई। इसी तरह तेंदूपत्ता संग्राहकों का मानदेय 3 हजार रुपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर चार हजार रुपए किया गया। पीएम जन-मन योजना से विशेष पिछड़ी जनजातियों को अधोसंरचना, बिजली की उपलब्धता, आहार अनुदान तथा अन्य समुचित व्यवस्था के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं।
 
पंडित दीनदयाल जी ने एकात्म मानवदर्शन और अंत्योदय से भारत राष्ट्र के कल्याण का जो मार्ग बताया, वह आकार ले रहा है। गरीब से गरीब व्यक्ति के जीवन में बदलाव आए, उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हों और उनका जीवन सफल हो, ऐसे हर संभव प्रयास करना श्रद्धेय पंडित दीनदयाल जी के दर्शन का मूल भाव है। भारत, वर्ष 2047 तक विश्व की महाशक्ति बनने के संकल्प के साथ प्रगति पथ पर अग्रसर है। भारत को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने के लिए हमें दीनदयाल जी के मौलिक चिंतन और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा को आत्मसात करना होगा।
 
हमारे पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शक, राष्ट्रनिर्माण के दृष्टा, विराट समर्पण के प्रतीक,मां भारती की सेवा में जीवनपर्यंत समर्पित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को एक बार पुन: नमन।
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