मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज एक दिन के बिहार दौरे पर जा रहे है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का आज होने वाला बिहार दौरा सियासी गलियारों में चर्चा के केंद्र में बना हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज राजधानी पटना में सामाजिक,राजनीतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होंगे। मध्यप्रदेश की बागडोर संभालने के बाद पहली बार बिहार पहुंच रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव राज्य में यादव समाज के सबसे बड़े सामाजिक संगठन श्रीकृष्ण चेतना मंच बैनर तले आयोजित सम्मान समारोह में सहभागिता करेंगे। उसके बाद वह भाजपा प्रदेश कार्यालय में सांसदों,विधायकों सहित प्रदेश के तमाम पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। वहीं मुख्यमंत्री इस्कॉन मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पटना दौरे के कई सियासी मायने निकाले जा रहे है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मध्यप्रदेश की कमान डॉ.मोहन यादव को सौंपकर बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। यहीं कारण है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के 13 दिसंबर के शपथ ग्रहण कार्यक्रम का सजीव प्रसारण राज्यों में यादव बाहुल्य इलाको में प्रदेश भाजपा की तरफ से किया गया था और आज जब डॉ. मोहन यादव पहली बार पटना पहुंच रहे है तो भाजपा ने उनके स्वागत के लिए पोस्टर औऱ बैनरों से राजधानी की सड़कें पाट दी है।
बिहार की राजनीति पिछले कई दशकों से अगर यादव फैक्टर के आसपास घूम रही है तो इसकी वजह यादव समाज की 14.26 प्रतिशत आबादी है। ऐसे में भाजपा बिहार में डॉ. मोहन यादव के सहारे यादव वोट बैंक को लुभाने की कोशिश में जुटी हुई है।
लोकसभा चुनाव में बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंकं को अपने पाले में करने के लिए भाजपा जो रोडमैप तैयार किया है,मध्यप्रदेश के डॉ. मोहन यादव की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी उसी का एक अंग है। उत्तर प्रदेश और बिहार में यादव समुदाय एक बड़े वोट बैंक के तौर पर वहां के क्षेत्रीय दलों के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं। बिहार में राजद के साथ जेडीयू की भी इस समुदाय में जबरदस्त पकड़ रही है। ऐसे में डॉ. मोहन यादव को बिहार में उतारकर भाजपा ने बिहार की राजनीति में अपना बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेला है।
कई लोकसभा सीटों पर यादव वोट निर्णायक- बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से लगभग 11 सीटों पर यादव वोटनिर्णायक भूमिका में रहता हैं। ऐसी सीटों में अररिया, किशनगंज, जहानाबाद, बांका, मधुबनी, सिवान, नवादा, उजियारपुर, छपरा, मधेपुरा, पाटलिपुत्र जैसी सीटें शामिल हैं। लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टी यादव वोटर्स को अपने पक्ष में गोलबंद कर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहता है। दरअसल बिहार में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की एक बार फिर से सक्रियता बढ़ने और यादव वोट बैंक को लामबंद करने की कोशिशों को देखते हुए इसका रुख भाजपा की तरफ करने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव बिहार के मैदान में उतरने जा रहे हैं।
नीतीश और लालू का खेल खराब करेंगे डॉ. मोहन यादव?- बिहार की राजनीति पिछले कई दशकों से एमवाई (MY-मुस्लिम-यादव)समीकरणों के आसपास घूमती आई है। लालू और नीतीश बीते कई दशकों से इसी एमवाई समीकरणों के साथ सत्ता का सुख भोगते रहे हैं लेकिन अब भाजपा ने यादव वोट बैंक को साधने के लिए अपना कार्ड चल दिया है। बिहार में भाजपा को मजबूती देने पार्टी ने अब यादवों को एक जुट करने की रणनीति के तहत काम करना शुरु कर दिया है और इस चुनावी बिसात के केंद्र में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं।
लंबे समय से सत्ता में होने के चलते नीतीश कुमार के सामने भी इस बार जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर देखी जा रही है। पिछले विधानसभा चुनावों में भी उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत और सीटों का ग्राफ काफी नीचे चला गया। लालू प्रसाद की आरजेडी को लेकर भी आम जनमानस में भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर छवि बनती है। ऐसे में जनता के सामने आरजेडी और जेडीयू को छोड़ कर बिहार में कोई मजबूत विकल्प भी नजर नहीं आता है। आरजेडी,जेडीयू मुस्लिम और यादवों की मजबूत किलेबंदी से बिहार में सरकार बनाते आया है।
उत्तर प्रदेश और बिहार का यादव समाज राजनीति में नई संभावनाएं तलाश रहा है। दोनों ही राज्यों के पिछले विधानसभा चुनावों के परिणामों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वोटर अब नई संभवानाओं को तलाश रहा है। दिल्ली का रास्ता यूपी और बिहार से गुजरता है। ऐसे में यादव समाज के राजनीतिक महत्व और उनकी उपयोगिता को समझा जा सकता है। डॉ. मोहन यादव के बिहार दौरे के बाद भाजपा उत्तर प्रदेश में भी उन्हें उतारने की तैयारी कर रही है। इससे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव जैसे नेताओं की मुश्किलें बढ़नी तय हैं। डॉ. मोहन यादव का ट्रंप कार्ड चलकर भाजपा देश के सबसे अधिक सांसदों वाले प्रदेश यूपी में समाजवादी पार्टी के वोट बैंक को सीधा प्रभावित कर सकती है।